: ३४ : भगवान श्री महावीर निर्वाण महोत्सव अंक कारतक : २४७२
आत्मस्वरूपनी ओळखाण पछी ज्यांसुधी स्वरूपनी पूरी भक्ति न थाय अर्थात् वीतरागता न थाय
त्यांसुधी वच्चे शुभराग आव्या वगर रहे नहि, अने शुभरागना निमित्तो पण आवे ज, परंतु रागथी के
निमित्तथी जैन–समकिती धर्म मानता नथी, रागथी के निमित्तथी जे धर्म माने ते मिथ्याद्रष्टि छे.
निमित्त कहे छे के भले रागथी के निमित्तथी समकिती धर्म नथी मानता, परंतु सामे जो सोय पडी हशे
तो सोयनुं ज्ञान थशे के कातरनुं? सामे माणसनुं चित्र जोईने माणसनुं ज्ञान थशे के बीजुं? माटे सामे जेवुं
निमित्त होय तेवुं ज ज्ञान थाय एटले के निमित्तथी ज ज्ञान थाय छे–माटे निमित्तनुं जोर छे. आवी निमित्तनी
दलील छे. निमित्तनी पड लांबी छे, अज्ञानीओ निमित्तथी ज थाय एम माननारा छे.
उपादानने जाणनारा ज्ञानीओ कहे छे के–निमित्तथी ज्ञान थतुं ज नथी, पण उपादाननी शक्तिथी ज थाय
छे. ज्ञान तो पोतानी स्मृतिथी थाय छे, सोय देखवाथी ज्ञाननी स्मृति थई नथी. सोय जोवानुं काम ज्ञाने कर्युं के
सोये? ज्ञानथी ज जाणवानुं कार्य थयुं छे. जो सोयथी ज्ञान थतुं होय तो आंधळा पासे सोय मूकतां तेने ते
संबंधी ज्ञान थवुं जोईए, परंतु तेम थतुं नथी; केमके आंधळामां ज शक्ति नथी. सोय तो जड छे, जडमांथी ज्ञान
आवे नहि. अज्ञानीनी द्रष्टि पर–निमित्त उपर पडी होवाथी ते स्वाधीन ज्ञानने जाणतो नथी, तेथी ते परना
कारणे ज्ञान थयुं–एम माने छे. उपादान स्वरूपनी वात पण जगतना अज्ञानीओ पूछता नथी; “चोखा अग्नि
वगर पाके? न ज पाके, माटे चोखा अग्निथी पाकया के चोखाथी? ” अग्निथी चोखा पाकया एम आंधळी
द्रष्टिए देखाय तेवुं छे. परंतु देखती द्रष्टिए तो चोखा चोखाथी ज पाकया छे, पाकरूप अवस्था चोखामां ज थई
छे, अग्निमां नथी थई. चोखामां ज स्वत: पाकवानी शक्ति छे तेथी ते पाकया छे, अग्नि के पाणीथी ते पाकया
नथी. तेवी ज रीते रोटली पोताथी पाकी छे अग्नि के तावडीथी पाकी नथी.
निमित्त दलील मूके छे के:–हे उपादान! रोटली पोताथी पाकी छे, अग्निथी रोटली पाकी नथी–एम
जगतमां कोण कहे छे? तुं आखा संसारने पूछी जो. ‘घउंना परमाणुओनी पाकी अवस्था थवानी हती त्यारे
तावडी अने अग्निनी हाजरी हती–पण तेनाथी रोटली थई नथी’ आवी तारी लांबी लांबी वात जगतमां कोण
करे छे? सीधी अने टुंकी वात छे के अग्निथी रोटली पाकी, एमां पूछवुं छे शुं? माटे उपादाननी शक्तिथी ज कार्य
थाय छे ए वात खोटी छे.
हवे उपादान जवाब आपे छे:–
उपादान बिन निमित्त तुं कर न सकै ईक काज;
कहा भयो जग ना लखै, जानत है जिनराज. ७.
अर्थ:–उपादान कहे छे, अरे निमित्त! एक पण कार्य उपादान विना थई शकतुं नथी, जगत न जाणे तेथी
शुं थयुं? जिनराज ते जाणे छे. ७.
उपादान श्रीजिनराजने पोताना पक्षमां राखीने वात करे छे. अरे निमित्त! तुं रहेवा दे. जगतना दरेक
पदार्थनां कार्य पोतानी शक्तिथी ज थई रह्यां छे. कोई पर तेने शक्ति आपतुं नथी. जो जीव आवुं स्वरूप समजे
तो पोताना भाव तरफ जोवानो तेने अवकाश रहे, अने पोताना भावमां दोष टाळीने गुण करे. परंतु कर्मो मने
हेरान करे अने सद्गुरु मने तारे–एम जो निमित्तथी कार्य थतुं माने तो तेमां क्यांय पोते तो आव्यो ज नहि,
पोताना सामे जोवानो अवकाश ज तेमां न रह्यो, अने पराधीन द्रष्टि ज रही.
रोटली अग्निथी पाकी नथी पण पोतामां ज त्रेवड छे तेथी ते पाकी छे, अग्नि अने तावडी होय छतां
कांई रेती पाके नहि केमके तेनामां तेवी शक्ति नथी. पाकी पर्याय थई ते रोटलीनी थई छे के तावडीनी? रोटली
पोते ते पर्यायरूपे थई छे माटे रोटली स्वयं पाकी छे.
जो शिष्यना ज उपादानमां समजवानी त्रेवड न होय तो गुरु शुं करे? श्रीगुरु लाख प्रकारे वात करे
परंतु शिष्यने पोतानी त्रेवड वगर समजाय नहि, एटले उपादान वगर एक पण कार्य थाय नहि.
निमित्ते कह्युं हतुं के जगतना प्राणीओ उपादाननी वात पण जाणता नथी; उपादान कहे छे के–जगतना
अंध प्राणीओ उपादाननुं स्वरूप न जाणे तेथी शुं? परंतु त्रिलोकनाथ तीर्थंकर मने जाणे छे. जगतना घणा
आंधळाओ तने माने तेमां तारूं शुं वळ्युं? मारे तो एक त्रिलोकनाथ सर्वज्ञदेव बस छे. हजारो गाडरडां होय
पण एक सिंह तेनी सामे बस छे. ज्यां सिंह आवे त्यां बधाय गाडरडां पूछडां लईने भागी जाय, तेम
“निमित्तथी काम थाय” एवो अभिप्राय जगतना अनंत जीवोनो छे परंतु ते बधा अज्ञानी छे तेथी