कारतक : २४७२ भगवान श्री महावीर निर्वाण महोत्सव अंक : ३५ :
तेमनो अभिप्राय साचो नथी, अने “उपादाननी शक्तिथी ज सर्व कार्य थाय” एम माननार थोडा ज जीवो छे
तोपण तेओ ज्ञानी छे, तेमनो अभिप्राय साचो छे. सत्यने संख्या साथे संबंध नथी.
छप्पनियाना दुष्काळ वखते ढोरमां उभा रहेवानी पण शक्ति रही न हती, तेने सांगडा नांखीने उभा
करे तो पण पाछा पडी जाय. ज्यां भूख्या ढोरमां पोतामां ज उभा रहेवानी शक्ति न होय त्यां सांगडा वडे तेने
केम उभा राखी शकाय? जो उपादानमां ज शक्ति होय तो कार्य थाय छे, परंतु जो उपादानमां ज शक्ति न होय
तो कोई निमित्तवडे कार्य थई शकतां नथी.
आत्माना स्वभावथी ज आत्मानां बधां काम थाय छे. पुण्य–पापना परिणाम पोताना करवाथी थाय
छे. पोते जेवा परिणाम करे तेवा थाय छे. बीजा जीवोना आशीर्वाद मळी जाय तो पुण्य थाय अने पुण्यनो समुद्र
फाटीने आत्मानी मुक्ति थाय–ए वात खोटी छे. आत्मानुं कार्य पराधीन नथी. भगवाननी साक्षात् हाजरी पण
तेने तारवा समर्थ नथी, अने माथुं कापनार दुश्मन पण तने डुबाडवा समर्थ नथी. ‘दरेक पदार्थ भिन्न छे, हुं
जुदो आत्मा अने तुं जुदो आत्मा, हुं तने कांई करी शकुं नहि, तारा भावे तुं समज तो तारूं कल्याण थाय’ एम
भगवान तो स्वतंत्रता जाहेर करीने उपादान उपर जवाबदारी नांखे छे. उपादाननी जागृति वगर कदी पण
कल्याण थतुं नथी.
निमित्त कहे छे:–
देव जिनेश्वर गुरु यती, अरू जिन आगम सार;
ईह निमित्त तें जीव सब, पावत हैं भव पार. ८.
अर्थ:–निमित्त कहे छे के जिनेश्वरदेव, निर्ग्रंथ गुरु अने वीतरागनां आगम उत्कृष्ट छे; ए निमित्तोवडे
सर्वे जीव भवनो पार पामे छे.
जिनेश्वरदेव श्री सर्वज्ञ भगवानने मान्यावगर कदी आत्मानी मुक्ति न थाय; कांई कुदेवादिने मानवाथी
मुक्ति थाय नहि, माटे पहेलांं जिनेश्वरदेवने ओळखवा जोईए. आ रीते पहेलांं निमित्तनी जरूर तो आवी ने?
निमित्तनी जरूर आवे छे माटे पचास टका मारी मददथी कार्य थाय छे–आम निमित्तनी दलील छे.
अहीं, जीव ज्यारे पोतानुं कल्याण करे त्यारे निमित्त तरीके श्रीजिनेश्वरदेव ज होय, ते सिवाय कुदेवादि
तो निमित्त तरीके न ज होय–एटलुं खरूं छे, परंतु श्रीजिनेश्वरदेव आत्मानुं कल्याण करी दे अगर तो पचास
टका मदद करे ए वात खरी नथी.
साचा देव, निर्ग्रंथगुरु अने त्रिलोकनाथ परमात्माना मुखथी नीकळेल ध्वनि ते आगमसार–ए त्रण
निमित्तो वगर मुक्ति न थाय. अहीं ‘आगमसार’ कह्युं छे, एटले आगमना नामे बीजा अनेक पुस्तको होय
तेनी वात नथी पण सर्वज्ञनी वाणीथी परंपरा आवेल सत्–शास्त्रोनी वात छे; बीजा कोई कुदेव–कुगुरु के
कुशास्त्र तो सतनुं निमित्त पण थई शके नहि, सत्देवादि ज सतनुं निमित्त होय. आटली वात तो साची छे; तेने
ज वळगीने निमित्त कहे छे के भाई, उपादान! बहु न फाटीए, एकांत पोतानुं ज न ताणीए, कांईक निमित्तनुं
पण राखीए! एटले के निमित्तनी पण मदद छे एम ते कहेवा मागे छे.
निमित्तनी दलीलनो एक अंश एटलो साचो छे के–आत्मकल्याणमां साचा ज देव–गुरु–शास्त्र निमित्तरूपे
हाजर होय, एनी हाजरी वगर त्रणकाळमां कोई मुक्ति पामे नहि. बधा मार्गो सरखा ज छे–एम माननार तो
त्रणकाळ त्रणलोकमां सम्यग्दर्शन पामे नहि, ऊलटो मिथ्यात्वना महापापनी पुष्टि करे; एटले सर्वज्ञ वीतराग
देव, साधक संतमुनि, अने सर्वज्ञनी वाणी ज निमित्त होय एटलुं तो साचुं परंतु तेनाथी आत्मानुं कल्याण थाय
नहि, ते कोई आत्महितमां मदद करे नहि. कल्याण तो आत्मा पोते पोताथी समजे तो ज थाय.
समजवानी शक्ति तो बधा आत्मामां त्रिकाळ छे. ज्यारे ते शक्तिनी संभाळ करीने आत्मा समजे त्यारे
निमित्तरूपे परवस्तु साचा देव वगेरे ज होय. कुदेवादिने मानतो होय अने साचुं समजे एम न ज बने. आ
वातने आगळ करीने निमित्त एम कहे छे के पहेलांं मारी ज जरूर छे, माराथी ज कल्याण थाय छे.
उपादान तेनी ए दलील तोडी नांखे छे:–
यह निमित्त ईह जीवके, मिल्यो अनंती बार;
उपादान पलटयो नहि, तो भटक्यो संसार. ९.
अर्थ:–उपादान कहे छे के ए निमित्तो आ जीवने अनंतीवार मळ्यां, पण उपादान–जीव पोते पलटयो
नहीं तेथी ते संसारमां भटक्यो.
जो देव–गुरु–शास्त्रनुं निमित्त आत्मानुं कल्याण करी देता होय तो, आ जीव साक्षात् त्रणलोकना नाथ
पासे अनंतवार गयो, छतां समज्या वगर धोयेल मूळा जेवो