: ३६ : भगवान श्री महावीर निर्वाण महोत्सव अंक कारतक : २४७२
पाछो आव्यो. उपादान पोतानी शक्तिथी समज्यो नहि. भगवान कंईक अपूर्व स्वरूप कहे छे–एम परमार्थ
समजवानी दरकार न करी अने व्यवहारनी पोते मानी राखेली वात आवतां एम मानी ले छे के–हुं आम ज
कहेतो हतो, ते ज भगवाने कह्युं–एम पोताना गजथी भगवाननुं माप करी ऊलटुं पककडने द्रढ करे छे. निमित्त
तो सर्वोत्कृष्ट छे, छतां उपादान न पलटे तो समजाय नहि. अनंतवार साचा मणी रत्नोनी सामग्री वडे साक्षात्
तीर्थंकरनी पूजा करी पण निमित्तना अवलंबन रहित पोतानुं स्वाधीन स्वरूप न समज्यो तेथी धर्म न थयो,
त्यां तीर्थंकर शुं करे?
वळी साचा ज्ञानी गुरु अने सत्शास्त्रो पण अनंतवार मळ्यां, पण पोते अंतरथी स्वभावने समजीने
पोतानी दशा पलटावी नहि तेथी जीव संसारमां ज भटक्यो.
निमित्ते कह्युं हतुं के–देव–गुरु–शास्त्रना निमित्तने पामीने जीव भवपार पामे छे. तेनी विरुद्धमां उपादाने
कह्युं के उपादान–जीव पोते धर्म न समज्यो तो साचा देव–गुरु–शास्त्र मळवा छतां ते संसारमां रखडे छे. जो
जीव पोते सत् समजे तो देव–गुरु–शास्त्रने समजवानुं निमित्त कहेवाय, पण जो जीव समजे ज नहि तो निमित्त
पण केम कहेवाय? उपादान जो पोते कार्यरूपे थाय तो सामी चीजने निमित्त कहेवाय, पण उपादान पोते कार्यरूप
थाय ज नहि तो निमित्त पण कहेवाय नहि. पेंथीए–पेंथीए तेल नाखीने सुंदर माथुं कर्युं–एम क्यारे कहेवाय?
के जो माथामां वाळनी पेंथीओ होय तो, पण जो माथे वाळ ज न होय तो उपमा कोने? तेम सामी चीजने
‘निमित्त’ एवी उपमा क्यारे अपाय के जो उपादान पोते जागृत थईने समजे तो सामाने निमित्तनी उपमा
अपाय, परंतु उपादान ज न होय तो निमित्त शेनुं कहेवाय? माटे कार्य तो उपादानने ज आधीन थाय छे.
साचा देव गुरु शास्त्रना निमित्त वगर तो कदी पण सत्य न ज समजाय, परंतु तेथी पोतानी
समजवानी तैयारी थाय त्यारे कोई देव गुरु शास्त्रने शोधवा जवुं पडे एवुं उपादान पराधीन नथी. पोतानी
तैयारी होय त्यां निमित्तनो जोग जरूर होय ज एवो नियम छे. धर्मक्षेत्र महाविदेहमां वीस महा धर्मधूरंधर
तीर्थंकरो अनादि होय ज छे. महाविदेहमां तीर्थंकरो न होय तेम कदी न बने. जो पोतानी तैयारी होय तो गमे
त्यां सत् निमित्तनो जोग बने ज. अने जो पोतानी तैयारी न होय तो सत् निमित्तनो जोग बने छतां पण
पोताने सत्नो लाभ न थाय.
अहीं आ संवादमां निमित्त तरफनी दलील करनार जीव एवो लीधो छे के ते डाह्यो छे, समजवा खातर
दलील करे छे, ते छेवटे उपादाननी बधी साची वात कबूल करशे. ते एवो हठाग्रही नथी के पोतानुं ज खेंच्या करे.
सत्य–असत्यनो निर्णय करीने सत्यनो तुरत ज स्वीकार करे एवा ज जीवनी अहीं वात छे.
देहादिनी क्रियाथी मुक्ति थाय के पुण्यथी धर्म थाय एवा पोताना ऊंधी मान्यताना खीचडा जीवे राख्या,
तो भगवान पासे जईने तेमनो उपदेश सांभळवा छतां पण धर्मनो किंचित् लाभ जीवने न थयो. भगवान तो
कहे छे–देहनी क्रिया आत्मा करी ज शकतो नथी अने पुण्य ते विकार छे तेनाथी आत्मधर्म नथी–आवी वात तेने
बेठी नहि. जो पोते समजे तो लाभ थाय अने त्यारे भगवान वगेरेने निमित्त कहेवाय; साचा निमित्त वगर
ज्ञान न थाय परंतु साचा निमित्त होवा छतां पोते न समजे तोपण ज्ञान थाय नहि एटले निमित्तथी ज्ञान
थाय नहि. तो पछी निमित्ते शुं कर्युं? ए तो मात्र हाजरीरूपे जुदुं लटकी रह्युं.
सामान्य रीते माणसो पण घणी वार कहे छे के “में तो एने घणुं कह्युं पण ए मींढ थई गयो” एटले के
मारा कहेवानी तेना उपर जराय असर न थई. परंतु भाई रे! ते माने तो पण तेना भावे माने छे अने न
माने तोपण तेना भावे तेम करे छे, कोईनी असर बीजा उपर थती ज नथी. निमित्त अने उपादान बंने स्वतंत्र
पदार्थो छे.
जीवने समजवानां निमित्तो अनंतवार मळ्या छतां पोतानी उपादान शक्तिथी पोते समज्यो नहि तेथी
ते संसारमां रखडयो, माटे निमित्तनी कांई असर उपादान उपर नथी.
श्रावण वद–१४ ता– ६–९–४५
उपादान–निमित्तनो संवाद वंचाय छे, नव दोहानुं व्याख्यान थई गयुं छे. उपादान एटले शुं? जे
पोताना स्वभावथी काम करे ते उपादान छे अने ते काम वखते साथे बीजी चीज हाजर होय ते निमित्त छे.
उपादान अने निमित्त ए बंनेनो जेम छे तेम निर्णय करवो ते पण एक धर्म छे. धर्म बीजा पण छे, एटले के
साचा निर्णयपूर्वक रागद्वेष टाळीने स्थिरता करवी ते