Atmadharma magazine - Ank 025
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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कारतक : २४७२ भगवान श्री महावीर निर्वाण महोत्सव अंक : ३७ :
बीजो चारित्र धर्म छे. आत्मवस्तुमां अनंत धर्मो छे. धर्म एटले स्वभाव. आत्मानो जे भाव संसारना विकार
भावथी बचावीने अविकारी स्वभावमां धारी राखे ते आत्मानो धर्म छे. तेथी स्वभावने समजवो ते ज पहेलो
धर्म छे. जे जीव स्वभावने न समजे तेने जन्म–मरणना नाशनो अने मुक्तिदशा प्रगटवानो लाभ न मळे. जे
स्वाधीन स्वभावने नथी समज्या एवा अज्ञानीओ बीजी चीज होय तो आत्मानुं कल्याण थाय एम माने छे,
तेओनो निर्णय ज ऊंधो छे, तेमने आत्म कल्याणना साचा उपायनी खबर नथी.
ज्यारे आत्मकल्याणनी भावनावाळो जीव सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञानद्वारा आत्मानो निर्णय करे त्यारे
सत्देव–गुरु–शास्त्रनी निमित्तरूप हाजरी होय छे, पण ते कोई देवगुरु–शास्त्र आत्मानी समजण करावी देता
नथी. पोते पोताना ज्ञानथी साचुं समजे तो समजाय. ज्ञान वगर छ छ मासना उपवास कर्या छतां साची
समजण न करी तेथी आत्मकल्याण थयुं नहि.
प्रश्न:–आ बधी झीणी वात अमारे शुं कामनी?
उत्तर:–आ आत्मानी वात छे. आत्मानुं कल्याण करवुं होय तो कल्याण क्यां थाय छे अने कई रीते थाय
छे ते ओळखवुं जोईए. पोतानुं कल्याण पोताना ज स्वभावनी शक्तिथी थाय छे, परथी थतुं नथी. जो पोतानो
स्वभाव समजे तो साची श्रध्धानो लाभ थाय अने खोटी श्रध्धानुं महा नुकशान टळे–आ ज प्रथम कल्याण छे.
आत्मानो निर्णय साचा देव–गुरु–शास्त्रथी प्रगटे एम ज्यारे निमित्ते कह्युं त्यारे उपादाने तेनो उत्तर
आप्यो के भाई! ए निमित्तो तो अनंतवार जीवने मळ्‌यां, पण जाते स्वभावनो महिमा लावी असंग
आत्मतत्त्वनो निर्णय न कर्यो तेथी संसारमां रखडयो, माटे कोई निमित्त आत्माने लाभ करे नहि.
हे भाई! जो परनिमित्तथी आत्माने धर्म थाय–एवी परद्रव्याश्रित द्रष्टि करीश तो परद्रव्यो तो अनंत–
अपार छे तेनी द्रष्टिमां क्यांय अंत नहि आवे अर्थात् अनंत पर पदार्थनी द्रष्टिथी छूटीने स्व स्वभावने
जोवानां टाणा कदी नहि आवे. पण हुं परद्रव्योथी भिन्न छुं, मारामां परनो प्रवेश नथी, मारूं कल्याण मारामां
ज छे–एवी स्वाधीन द्रव्यनी द्रष्टि करतां अनंत परद्रव्यो उपरनी द्रष्टि छूटी जाय छे अने स्वभाव द्रष्टिनी द्रढता
थाय छे. अने स्वभाव तरफनी द्रढता ए ज कल्याणनुं मूळ छे. परचीज त्रणकाळ–त्र्रणलोकमां आत्माने
लाभनुकशान करवा समर्थ नथी. पोताना भावमां पोते ऊंधो पडे तो रखडे अने सवळो पडे तो मुक्त थाय.
प्रश्न:–पैसा, शरीर वगेरे जे अमारां छे ते तो अमने लाभ करे के नहि?
उत्तर:–मूळ सिध्धांतमां ज फेर छे, पैसा वगेरे तमारां छे ज नहि. पैसा अने शरीर तो जड छे–अचेतन
छे–पर छे. आत्मा तो चेतन–ज्ञानस्वरूप छे. जड अने चेतन ए बंने वस्तुओ त्रिकाळ जुदी ज छे, कोई एक
बीजानी छे ज नहि. पैसा वगेरे आत्माथी जुदा छे ते आत्माने मदद करे नहि. पण साचुं ज्ञान आत्मानुं पोतानुं
होवाथी ते आत्माने मदद करे छे. पैसा–शरीर वगेरे कोई चीज आत्माना धर्मनुं साधन तो छे ज नहि, परंतु
तेनाथी आत्माने पुण्य–पाप पण थतां नथी. ‘पैसा मारा’ एवो जे ममत्व भाव छे ते भाव अज्ञान छे–पाप छे,
अने ते ममता घटाडे तो ते भावथी पुण्य छे; पैसाने लीधे पाप के पुण्य नथी. पैसा मारा अने हुं ते राखुं एवो
जे ममत्वरूप भाव ते महापाप छे. जो खरेखर ममता घटाडे तो दानादि शुभकार्यमां लक्ष्मी खरचवानो भाव
आव्या वगर रहे ज नहि. अहीं तो निमित्त–उपादाननुं स्वरूप समजवानो अधिकार चाले छे.
निमित्त तरफथी दलील करनार जीव शास्त्रोनो जाणनार छे, शास्त्रोनी केटलीक वातो तेणे जाणी छे तेथी
ते वातोने रजु करीने ते तर्क करे छे. जेणे दाखलो लख्यो होय तेने वच्चे कांईक पूछवानुं होय अने ते प्रश्न करी
शके, परंतु जेणे स्लेट कोरी राखी होय अने कंईज लख्युं न होय ते शुं प्रश्न करे? तेम जेणे कांईक शास्त्राभ्यास
कर्यो होय अगर श्रवण करीने केटलीक वात पकडी होय ते दलील करीने प्रश्न पूछे, परंतु जेणे कदी शास्त्र उघाडयुं
न होय अने शुं वात चाले छे तेनी पण खबर न होय ते शेना प्रश्नो पूछे?
अहीं शिष्य शास्त्र वांचीने प्रश्न करे छे के–हे उपादान! आत्मानो धर्म पोताना उपादानथी ज थाय छे,
निमित्त कंई करतुं नथी–एम तमे कहो छो, परंतु भव्य जीवोने क्षायकसम्यकत्व थाय छे ते तो केवळी–श्रुत–
केवळीनी पासे होय तो ज थाय छे, एम शास्त्रोमां कह्युं छे, तो त्यां निमित्तनुं जोर आव्युं के नहि?
आवी दलील निमित्त करे छे:–
कैं केवली कैं साधु के निकट भव्य जो होय;
सो क्षायक सम्यक लहै, यह निमित्त बल जोय. १०.