Atmadharma magazine - Ank 025
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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कारतक : २४७२ भगवान श्री महावीर निर्वाण महोत्सव अंक : ३९ :
नहि अने जेवो गयो हतो तेवो कोरो ने कोरो अज्ञानपणे पाछो फर्यो. कोई जीवो तो ऊलटा ऊंधा पडी कहे के–
शुं आ कहे छे ते एक ज मार्ग हशे? जगतना बधाय मार्गो खोटा?
भगवाननी सभामां उपशम–क्षयोपशम समकिती जीवो होय छे तेओ पण जो द्रढपुरुषार्थवडे
क्षायकसमकित पोते करे तो ज थाय छे; अने घणाने पोते नथी करता तेथी, नथी पण थतुं. माटे निमित्तनुं बळ
छे ज नहि. जो निमित्तनुं कांई पण जोर होय तो भगवान पासे जे गया ते बधाय जीवोने क्षायकसमकित केम न
थयुं? समवसरणमां भगवान पासे जे जीव जाय ते बधा समजी ज जाय एम नथी, पण जेनो धणी (आत्मा)
समजीने सवळो थाय तेने आत्मानी एवी प्रतीति प्रगटे के जे पाछी न ज फरे. अहो! परम महिमावंत परिपूर्ण
आत्म स्वभाव! आ स्वभावनुं अवलोकन करतां करतां ज केवळज्ञान थायछे–आवी द्रढ प्रतीति जे जीव सवळो
थईने समजे तेने ज थाय छे, पण भगवाननी वाणी सांभळवा छतां जे सवळो पडतो नथी ते जीवने समकित
थतुं नथी, माटे निमित्तनुं जोर नथी. जेना पोताना पगमां जोर नथी एवा ढोर सांगडाथी उभा रही शके नहि,
तेम पोताना आत्माना बळ वगर–साची समजण वगर साक्षात् भगवान पासे जईने पण अंतरमां घरनो
स्वछंद घाल्यो तेथी साचुं ज्ञान न थयुं. माटे भगवाननी समीपे जवाथी क्षायक समकित थतुं नथी परंतु
उपादाननी जागृतिथी ज जाय छे.
हवे निमित्त बीजी रीते दलील मूके छे:–
हिंसादिक पापन किये, जीव नर्कमें जाहि;
जो निमित्त नहिं कामको, तो ईम काहे कहाहि. १२.
अर्थ:–निमित्त कहे छे–जे हिंसादिक पाप करे छे ते नर्कमां जाय छे, जो निमित्त कामनुं न होय तो एम शा
माटे कह्युं?
परजीवनी हिंसा, जुठुं, परिग्रह, चोरी अने अब्रह्मचर्य वगेरे पापथी जीव नर्कमां जाय छे. ए बधामां
निमित्तनुं ज जोर छे. हिंसामां परजीवनुं निमित्त, जुठामां भाषानुं निमित्त, परिग्रहमां परवस्तुनुं निमित्त
चोरीमां पण पैसावगेरेनुं निमित्त अने अब्रह्मचर्यमां शरीरनुं निमित्त–ए बधां निमित्तनी जरूर पडे छे के नहि?
माटे निमित्त ज नरकमां लई जाय छे. पर वस्तुना निमित्तथी ज हिंसादि पापो थाय छे, कांई एकला आत्माथी
हिंसा, चोरी वगरे थतां नथी; माटे जो निमित्तनुं जोर न होय तो आ हिंसादि करनार नरकमां जाय छे ए केम
बने? परवस्तु ज तेमने नरकनुं कारण थाय छे, माटे निमित्तनुं बळ आव्युं के नहि? आवी दलील निमित्ते करी.
हवे उपादान तेनुं समाधान करे छे–
हिसामे उपयोग जिहां, रहे ब्रह्मके राच;
तेई नर्क में जात है, मुनि नहि जाहि कदाच. १३.
अर्थ:–हिंसादिमां जेनो उपयोग (चैतन्यना ५रिणाम) होय अने जे आत्मा तेमां राची रहे ते ज नर्कमां
जाय छे, भाव–मुनि कदापि नर्कमां जता नथी.
परजीवनी हिंसा अने जडनो परिग्रह ए वगेरेमां जीवने जो ममत्वरूप अशुभभाव थाय छे तो ज ते
नरकमां जाय छे. कोई परवस्तुना कारणे के पर जीव मर्या ते कारणे कोई जीव नरकमां जता नथी; परंतु जे
जीवोनो उपयोग अशुभपरिणामोमां लीन थई रह्यो छे ते ज नरकमां जाय छे. परजीव मरे के राजपाटना अनेक
संयोग होय तेथी जीव नरकमां जतो नथी पण में राज कर्युं, में पर जीवने मार्यो, पैसा मारां ए वगेरे
ममत्वपरिणामथी ज जीव नरकमां जाय छे. भावमुनि कदी पण नरकमां जता नथी. कोईवार मुनिना पग नीचे
जीव आवी जवाथी कदाच कोई जीव मरी जाय तोपण साचा मुनि कदी नरकमां जता नथी केमके तेमने ऊंधा
भाव–हिंसक परिणाम नथी. ऊंधाभाववाळो नरकमां जाय छे, पण कांई निमित्तवाळा नरकमां जाय–एम नथी.
प्रश्न:–आपे कह्युं के निमित्तवाळा नरकमां जता नथी, तो अमारे घणा पैसा वगेरे परिग्रह राखवामां
वांधो नथी ने?
उत्तर:–निमित्त दोषनुं कारण नथी परंतु पोताना ममत्वभाव तो जरूर दोषनुं कारण छे. पैसा राखवानो
भाव थयो ते कांई ममता वगर थतो हशे? ममता ते ज पापभाव छे. घणा पैसाथी के परजीवना मरवाथी
आत्मा नरकमां जतो नथी परंतु परजीवने मारवानो हिंसकभाव अने घणा पैसा राखवानो तीव्र ममत्वभाव
तेथी ज जीव नरकममां जाय छे. कोईने एक रूपियानी ज मूडी होय पण ममत्वभाव घणो होय तो ते नरके जाय
अने बीजा पासे करोडो रूपियानी मूडी होय छतां ममत्वभाव थोडो होय तो ते नरके जाय नहि, एटले