: ४० : भगवान श्री महावीर निर्वाण महोत्सव अंक कारतक : २४७२
निमित्तना संयोग उपर आधार न रह्यो, पण उपादानना भाव उपर आधार रह्यो. गृहस्थ जो हिंसादि तीव्र पाप
कषाय न करे तो नरकमां न जाय अने अज्ञानी त्यागी पण जो तीव्र कलुषित परिणाम करे तो ते नरकमां जाय.
क्षायकसम्यग्द्रष्टि धर्मात्मा चक्रवर्तीराजमां होय अने लडाईमां हजारो मनुष्योना संहार वच्चे उभा होय,
पोते पण बाण छोडता होय–छतां–अंतरमां भान छे के आ मारूं स्वरूप नथी. हुं पर जीवनुं कांई करवा समर्थ
नथी, मारी अस्थिरताना कारणे मने रागनी वृत्ति आवी जाय छे ते पण मारूं स्वरूप नथी, आवुं भान छे तो ते
नरके जता नथी. माटे परजीवनी हिंसा ते नरकनुं कारण नथी पण अंतरना अशुभभाव ते ज नरकनुं कारण छे.
निमित्ते बारमा दोहामां ‘निमित्तथी पाप थाय छे’ एवी दलील करी हती, हवे ‘निमित्तथी पुण्य थाय
अने जीव सुखी थाय छे’ एम दलील करे छे:–
दया दान पूजा किये, जीव सुखी जग होय;
जो निमित्त जुठो कहो, यह कयौं मानै लोय. १४.
अर्थ:–निमित्त कहे छे के–दया, दान, पूजा करे तो जीव जगतमां सुखी थाय छे. जो तमे कहो छो तेम
निमित्त जूठूं होय तो लोको तेने केम माने?
परजीवनी दया, लक्ष्मी वगेरेनुं दान अने भगवाननी पूजादिथी जीवने पुण्य बंधाय छे. ए रीते दयामां
परजीवनुं निमित्त, दानमां लक्ष्मीनुं निमित्त अने पूजामां भगवाननुं निमित्त छे अने ए परनिमित्तथी जीव
पुण्य बांधीने जगतमां सुखी थाय छे. तमे कहो छो के उपादान स्वतंत्र छे अने पुण्यथी के पर वस्तुथी सुख
नथी, परंतु आ तो प्रत्यक्ष छे के दया वगेरेथी पुण्य करे तो सारी सामग्री मळे अने जगतमां जीव सुखी थाय;
जो निमित्तथी सुख न मळतुं होय तो आम केम बने? आवी निमित्तना पक्षनी दलील छे. आमां त्रण प्रकारे
निमित्तनो पक्ष आव्यो–(१) पर निमित्तथी पुण्य थाय (२) पुण्य करवाथी बाह्य वस्तु मळी अने (३)
बाह्यवस्तु मळवाथी जीवने सुख मळे छे. आम आखुं जगत* पुण्यना संयोगोमां पोताने सुखी माने छे, माटे
निमित्तनुं ज बळ छे!
उपादान पक्ष निमित्तपक्षनी अत्यारसुधीनी बधी दलीलो तोडी पाडे छे, तेम आ दलीलने पण तोडी नाखे छे:–
* ‘आखुं जगत’ कहेतां जगतना बधा अज्ञानी जीवो–एम समजवुं. ज्ञानीओ जगतथी पार छे, तेओ
पोताना स्वभावमां छे. ‘आखुं जगत’ कहेतां अहीं तेमनो समावेश थतो नथी.
दया दान पूजा भली, जगतमांहि सुखकार;
जहां अनुभवको आचरन, तहां यह बंध विचार. १५
अर्थ:–उपादान कहे छे–दया, दान, पूजाना शुभभाव जगतमां बाह्य सगवड आपे, पण अनुभवना
आचरणनो विचार करतां ए बधा (–शुभभाव) बंध छे, [–धर्म नथी].
परजीवनी दयामां राग घटाडे, दानमां तृष्णा घटाडे अने पूजा भक्तिमां शुभराग करीने जे पुण्य बंधाय
छे ते जगतमां संसारना विकारी सुखनुं कारण छे–खरेखर तो ते दुःख ज छे. साचा सुखनुं स्वरूप जाणनारा
सम्यग्ज्ञानीओ ते पुण्यने अने तेना फळने सुख मानता नथी. ते पुण्यभाव रहित पोताना शुद्ध पवित्र
आत्मानो अनुभव ते ज साचुं सुख छे, पुण्यभावथी तो आत्माने बंधन थाय छे, माटे ते दुःख ज छे, अने तेनुं
फळ दुःखनुं ज निमित्त छे. पुण्य तो आत्माना गुणने रोके छे अने जडनो संयोग आपे छे, तेमां आत्माना
गुणनो लाभ थतो नथी. जो साची समजणवडे आत्माने ओळखीने तेनो अनुभव करे तो परम सुख अने
साचो लाभ थाय. आमां पुण्य अने निमित्त [–पुण्यनुंफळ] ए बंनेथी सुख थाय ए वात उडाडी दीधी. पुण्य
पण दुःखदायक ज छे अने पुण्यना फळ तरीके बाह्यमां धूळ–धमाहानो संयोग–जेने अज्ञानी जीवो सुख कहे छे
ते–मळे परंतु ते जडमां आत्मानो लाभ के सुख किंचित नथी ज.
निमित्ते कह्युं हतुं के पुण्यथी जीव सुखी थाय छे, अहीं उपादान कहे छे के–कोई पण जातना पुण्य परिणाम
थाय ते आत्माने बांधे छे, आत्माना अविकारी धर्मने रोके छे. आथी अशुभथी बचवा शुभभाव न करवा–एम
न समजवुं परंतु ते पुण्य परिणाम आत्माना धर्मने–सुखने मददगार नथी–एम समजवुं. आत्मानी ओळखाण
करे तो ज धर्म थाय, परंतु घणा पुण्य करे तो ते आत्माना धर्मने निमित्तरूपे नीवडे–एम कदी छे ज नहि.
उपादान स्वरूप आत्मानुं ज बळ छे, निमित्तनुं बळ नथी.
जुओ तो खरा! आ बायडी–छोकरावाळा गृहस्थे सां. १७५० मां बनाव्युं छे. उपादान–निमित्तना
स्वरूपने केटलुं स्पष्ट कर्युं छे! बधाय पडखाथी दलीलो करी छे. जेम कोईने कोई साथे वांधो पड्यो होय तो तेनी
विरुद्ध दलीलो करी दावो करे, त्यां न फावे एटले मोटी कोर्टमां जाय अने त्यां पण न फावे एटले