कारतक : २४७२ भगवान श्री महावीर निर्वाण महोत्सव अंक : ४१ :
काउन्सीलमां अपील करे ए रीते जेटला बने तेटला
प्रयत्नो करे, तेम अहीं निमित्त पण नवी नवी अनेक
दलीलो करे छे, फेरवी फेरवीने जेटली बने तेटली बधी
दलीलो करे छे–परंतु तेनी एके दलील उपादान सामे
टकी शकती नथी, उपादाननी तो एक ज वात छे के–
आत्मा पोताना उपादानथी स्वतंत्र छे, आत्मनी
साची श्रद्धा, ज्ञान अने स्थिरता ते ज कल्याणनो
उपाय छे, बीजो कोई पण उपाय नथी. छेवट निमित्त
अने उपादान बंनेनी दलीलोने बराबर जाणीने,
यथार्थ निर्णयद्वारा सम्यग्ज्ञानरूपी न्यायाधीश चूकादो
आपशे, तेमां उपादाननी जीत अने निमित्तनी हार
थशे.
[उपादान–निमित्तना संवादना कूल ४७ दोहरा
छे, ते बधा उपर पर्युषण दरम्यान व्याख्यान थई
गयेल छे–तेमांथी दोहा १ थी १५ सुधीनुं व्याख्यान
अत्रे आपेल छे.]
।। “।।
श्री सद्गुरुदेवाय नमः
स.म्य.क.द.श.न
: प्रगट करनार :
रामजी माणेकचंद दोशी
(१)
सम्यग्दर्शन शा माटे?
प्रश्न:– सम्यग्दर्शनथी धर्मनी शरूआत थाय छे एम
ज्ञानीओ कहे छे, तो सम्यग्दर्शन विनानां ज्ञान अने चारित्र
केवां होय?
उत्तर:–सम्यग्दर्शन न होय तो अगीआर अंगनो
ज्ञाता पण मिथ्याज्ञानी छे; अने तेनुं चारित्र पण
मिथ्याचारित्र छे. अहीं आशय ए छे के सम्यग्दर्शन विना
व्रत, तप, जप भक्ति, प्रत्याख्यान आदि जे कांई आचरण
छे ते सर्वे मिथ्याचारित्र छे; माटे सम्यग्दर्शन शुं छे, ते केवी
रीते प्राप्त थई शके छे ते जाणवानी जरूर छे.
(२)
सम्यग्दर्शन शुं छे?
प्रश्न:–सम्यग्दर्शन शुं छे? ते द्रव्य छे, गुण छे के
पर्याय छे?
उत्तर:–सम्यग्दर्शन ते जीवद्रव्यना श्रद्धा गुणनी एक
निर्मळ पर्याय छे. आ जगतमां छ द्रव्यो छे तेमां एक चेतन
द्रव्य [जीव] छे, अने पांच अचेतन–जड द्रव्यो [पुद्गल,
धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाश अने काळ] छे. जीव
द्रव्य अर्थात् आत्मवस्तुमां अनंत गुणो छे, तेमां एक गुण
श्रद्धा [मान्यता–विश्वास–प्रतीत] छे, ते गुणनी अवस्था
अनादिथी ऊंधी छे तेथी जीवने पोताना स्वरूपनी भ्रमणा छे,
ते अवस्थाने मिथ्यादर्शन कहेवामां आवे छे; ते श्रद्धा गुणनी
सवळी [शुद्ध] अवस्था ते सम्यग्दर्शन छे. आ रीते
आत्माना श्रद्धा गुणनी शुद्ध पर्याय ते सम्यग्दर्शन छे.
(३)
श्रद्धागुणनी मुख्यताए निश्चय सम्यग्दर्शननी
व्याख्या
(१)–श्रद्धा गुणनी जे अवस्था प्रगट थवाथी पोताना
शुद्ध आत्मानो प्रतिभास थाय ते सम्यग्दर्शन छे.
(२)–सर्वज्ञ भगवाननी वाणीमां जेवुं पूर्ण आत्मानुं
स्वरूप कह्युं छे तेवुं श्रद्धान ते निश्चय सम्यग्दर्शन छे. [निश्चय
सम्यग्दर्शन निमित्तने, अधूरी के विकारी पर्यायने, भंग–भेदने
के गुणभेदने स्वीकारतुं नथी–लक्षमां लेतुं नथी.]
नोंध–घणा माणसो मात्र एक सर्व व्यापक आत्मा छे
एम माने छे अने ते आत्माने कूटस्थ मात्र माने छे, पण
तेमना कहेवा मुजब चैतन्यमात्र आत्माने मानवो ते
सम्यग्दर्शन नथी.
(३)–स्वरूपनुं श्रद्धान.
(४)–आत्म श्रद्धान. [पुरुषार्थसिद्धि उपाय गाथा–
२१६]
(५) स्वरूपनी यथार्थ प्रतीति [मोक्षमार्ग प्रकाशक
पानुं–३२२–३२८]
(६) परथी भिन्न पोताना आत्मानी श्रद्धा–रुचि.
[समयसार कलश ६; छह–ढाळा–त्रीजीढाळ गाथा–२]
नोंध:–अहीं ‘परथी भिन्न ए शब्दो एम सूचवे छे के
सम्यग्दर्शनने पर वस्तु, निमित्त, अशुद्धपर्याय, उणी शुद्धपर्याय
के भंग–भेद ए कांई स्वीकार्य नथी. सम्यग्दर्शननो विषय
[लक्ष्य] पूर्ण ज्ञान–घन त्रिकाळी आत्मा छे [पर्यायनी अपूर्णता
वगेरे सम्यग्ज्ञाननो विषय छे].
(७)–विशुद्ध ज्ञान–दर्शन स्वभाव स्वरूप निज
परमात्मानी रुचि ते सम्यग्दर्शन. [जयसेनाचार्य कृत टीका–
हिंदी समयसार पानुं ८]
नोंध:–अहीं ‘निज’ शब्द छे, ते अनेक आत्माओ छे
तेमनाथी पोतानी भिन्नता बतावे छे.