: ४२ : भगवान श्री महावीर निर्वाण महोत्सव अंक कारतक : २४७२
(८)–शुध्ध जीवास्तिकाय रूचिरूप निश्चयसम्यकत्व.
[जयसेनाचार्य कृत टीका–पंचास्तिकाय गाथा–१०७ पानुं
१७०]
(४)
ज्ञानगुणनी मुख्यताए निश्चय सम्यग्दर्शननी
व्याख्या
श्रद्धान ते सम्यग्दर्शननुं लक्षण छे. [मोक्षमार्ग प्रकाशक पानुं
३१७–३२० तथा पुरुषार्थसिद्धि उपाय गाथा–२२०]
नोंध:–आ व्याख्या प्रमाणद्रष्टिए छे तेमां नास्ति–
अस्ति बन्ने बताव्यां छे.
(२)–जीवादिनुं श्रद्धान सम्यकत्व छे एटले के
जीवादि पदार्थोनी यथार्थ श्रध्धान ते श्रध्धा स्वभावे आत्मानुं
परिणमन ते सम्यकत्व छे. [समयसार गाथा–१५५. हिंदी
पानुं–२२५ गुजराती पानुं–२०१]
(३)–भूतार्थे जाणेला पदार्थोथी शुध्धात्माना
जुदापणानुं सम्यक्अवलोकन. [जयसेनाचार्य कृत टीका–हिंदी
समयसार पानुं–२२६]
नोंध–कोलम नं–२ तथा ३ एम सूचवे छे के जेने
नव पदार्थोनुं सम्यग्ज्ञान होय तेने ज सम्यग्दर्शन होय, आ
रीते सम्यग्ज्ञान अने सम्यग्दर्शननुं अविनाभावीपणुं बतावे
छे. आ कथन द्रव्यार्थिकनये छे.
(४)– पंचाध्यायीमां ज्ञान अपेक्षाए निश्चय
सम्यग्दर्शननी व्याख्या गाथा– १८६ थी १८९ मां आपी छे,
ते कथन पर्यायार्थिकनये छे. ते गाथामां नीचे प्रमाणे कह्युं छे–
[गाथा–१८६]–“तेथी शुध्धत्व कांई ते नवतत्त्वथी
विलक्षण अर्थांतर नथी, परंतु केवळ नवतत्त्वसंबंधी
विकारोने छोडीने नवतत्त्व ज शुद्ध छे. भावार्थ:–तेथी सिद्ध
थाय छे के केवळ विकारनी उपेक्षा करवाथी नवतत्त्व ज शुद्ध
जीव छे, नवतत्त्वोथी कांई सर्वथा भिन्न शुद्धत्व नथी.”
[गाथा–१८७]– “तेथी सूत्रमां तत्त्वार्थनी श्रद्धा
करवी तेने सम्यग्दर्शन मानवामां आव्युं छे, अने ते पण
जीव–अजीवादिरूप नव छे; × × ×. भावार्थ–विकारनी उपेक्षा
करतां शुद्धत्व नवतत्त्वोथी अभिन्न छे, तेथी सूत्रकारे
[तत्त्वार्थसूत्रमां] नवतत्त्वोनी यथार्थ श्रद्धानने सम्यग्दर्शन
कह्युं छे. × × ×.”
[गाथा–१८८]–आ गाथामां जीव, अजीव, आस्रव,
बंध, संवर, निर्जरा अने मोक्ष ए सात तत्त्वोनां नाम
आप्या छे.
[गाथा–१८९]–“पुण्य अने पापनी साथे ए सात
तत्त्वने नव पदार्थ कहेवामां आवे छे अने ते नवपदार्थ,
भूतार्थने आश्रये, सम्यग्दर्शननो वास्तविक विषय छे.
भावार्थ:–तथा पुण्य अने पापनी साथे ए सात तत्त्व
ज नवपदार्थ कहेवाय छे, अने ते नवपदार्थ यथार्थपणाने
आश्रये सम्यग्दर्शननो यथार्थ विषय छे.”
नोंध–ए ख्यालमां राखवुं के आ कथन ज्ञान
अपेक्षाए छे; दर्शन अपेक्षाए सम्यग्दर्शननो विषय पोतानो
अखंड शुद्ध चैतन्यस्वरूप परिपूर्ण आत्मा छे–ते बाबत उपर
जणावी छे.
(५)–“शुध्धचेतना एक प्रकार छे केमके शुध्ध एक
प्रकार छे. शुध्धचेतनामां शुध्धतानी उपलब्धि थाय छे तेथी ते
शुध्धरूप छे अने ते ज्ञानरूप छे तेथी ते ज्ञान–चेतना छे.”
[पंचाध्यायी गाथा–१९४]
“बधा सम्यग्द्रष्टिओने आ ज्ञानचेतना प्रवाहरूपथी
अथवा अखंड एकधारारूप रहे छे. [पंचाध्यायी गाथा–८५१]
(६)–ज्ञेय ज्ञातृतत्त्वनी यथावत् प्रतीति जेनुं लक्षण
छे ते सम्यग्दर्शन पर्याय. [प्रवचनसार अध्याय ३ गाथा–४२.
श्री अमृतचंद्राचार्य कृत टीका पानुं ३३५]
(७) आत्माने आत्माथी जाणतो जीव ते निश्चय
सम्यग्द्रष्टि छे. [परमात्म प्रकाश गाथा ८२]
(८)–‘तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्’ [तत्त्वार्थसूत्र
अध्याय १ सूत्र २]
(५)
चारित्रगुणनी मुख्यताए
निश्चय सम्यग्दर्शननी व्याख्या
(१) “ज्ञानचेतनामां ‘ज्ञान’ शब्दथी ज्ञानमय
होवाना कारणे शुध्धात्मानुं ग्रहण छे अने ते शुध्धात्मा जे–
द्वारा अनुभूत थाय तेने ज्ञानचेतना कहे छे” [पंचाध्यायी
गाथा १९६–भावार्थ]
(२) “तेनो खूलासो ए छे के–जे वखते, आत्मानो
ज्ञानगुण सम्यकत्वयुक्त थतां आत्मस्वरूपनी उपलब्धि थाय
छे तेने ज्ञानचेतना कहे छे.” [पंचाध्यायी गा.–१९७]
(३) “निश्चयथी आ ज्ञानचेतना सम्यग्द्रष्टिने ज
होय छे.
[पंचाध्यायी गा.–१९८]
नोंध–अहीं आत्मानो जे शुध्धोपयोग छे–अनुभव छे
ते चारित्रगुणनी पर्याय छे.
(४) आत्मानी शुध्ध उपलब्धि सम्यग्दर्शननुं
लक्षण छे.
[पंचाध्यायी गा.–२१५]
नोंध–अहीं एटलुं लक्षमां राखवुं के ज्ञाननी मुख्यताए
तथा चारित्रनी मुख्यताए जे कथन छे तेने सम्यग्दर्शननुं बाह्य