Atmadharma magazine - Ank 025
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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कारतक : २४७२ भगवान श्री महावीर निर्वाण महोत्सव अंक : ४३ :
लक्षण जाणवुं केमके सम्यग्ज्ञान अने अनुभवनी साथे
सम्यग्दर्शन अविनाभावी होवाथी ते सम्यग्दर्शनने
अनुमानथी सिद्ध करे छे, ए अपेक्षाए तेने व्यवहार कथन
कहेवामां आवे छे, अने दर्शन
[श्रद्धा] गुण अपेक्षाए जे
कथन छे तेने निश्चय कथन कहेवामां आवे छे.
(६)
अनेकान्त स्वरूप
दर्शन–ज्ञान–चारित्र संबंधी अनेकान्त स्वरूप
समजवा लायक होवाथी अहीं कहेवामां आवे छे.
(१)–सम्यग्दर्शन–तमाम सम्यग्द्रष्टिओने एटले
चोथा गुणस्थानकथी सिद्ध सुधी बधाने एक सरखुं छे, एटले
के शुध्धात्मानी मान्यता ते बधाने एक सरखी छे–मान्यतामां
कांई फारफेर नथी.
(२)–सम्यग्ज्ञान–तमाम सम्यग्द्रष्टिओने सम्यक्–
पणानी अपेक्षाए ज्ञान एक जातनुं छे, पण ज्ञान कोईने
हीन, कोईने अधिक होय छे. तेरमे गुणस्थानथी सिध्ध
सुधीनुं ज्ञान संपूर्ण होवाथी सर्व वस्तुओने युगपत् जाणे छे.
नीचेना गुणस्थानोमां
[चारथी बार सुधीमां] ज्ञान क्रमेक्रमे
थाय छे अने त्यां जो के ज्ञान सम्यक् छे तो पण ओछुं–वधतुं
छे, ते अवस्थामां जे ज्ञान उघाडरूप नथी ते अभावरूप छे,
पण तेमां विकार नथी, आ रीते सम्यग्दर्शन अने
सम्यग्ज्ञानमां तफावत छे.
(३)–सम्यक्चारित्र–तमाम सम्यग्द्रष्टिओने जे कांई
चारित्र प्रगट्युं होय ते सम्यक् छे, अने दसमा गुणस्थान
सुधी जे प्रगट्युं नथी ते विभावरूप छे. तेरमा गुणस्थाने
अनुजीवी योग कंपनरूप होवाथी विभावरूप छे, अने त्यां
प्रतिजीवी गुणो बिलकुल प्रगट नथी. चौदमा गुणस्थाने पण
उपादाननी कचाश छे तेथी त्यां उदयभाव छे.
(४)–ज्यां सम्यग्दर्शन छे त्यां सम्यग्ज्ञान अने
स्वरूपाचरणचारित्रनो अंश अभेदरूप होय छे अने उपर
कह्या प्रमाणे दर्शनगुणथी ज्ञानगुणनुं जुदापणुं अने ते बंने
गुणथी चारित्रगुणनुं जुदापणुं सिद्ध थयुं ए रीते अनेकांत
स्वरूप थयुं.
(५)–आ भेद पर्यायार्थिकनयथी छे, द्रव्य अखंड
होवाथी द्रव्यार्थिकनये बधा गुणो अभेद–अखंड छे एम
समजवुं.
(७)
दर्शन (श्रद्धा), ज्ञान, चारित्र ए त्रणे गुणोनी
अभेदद्रष्टिए निश्चय सम्यग्दर्शननी व्याख्या
(१) अखंड प्रतिभासमय, अनंत, विज्ञानघन,
परमात्मास्वरूप समयसारने ज्यारे आत्मा अनुभवे छे ते
वखते ज आत्मा सम्यक्पणे देखाय छे–[अर्थात् श्रध्धाय छे]
अने जणाय छे तेथी समयसार ज सम्यक्दर्शन अने
सम्यग्ज्ञान छे. नयोना पक्षपातने छोडीने एक अखंड
प्रतिभासनो अनुभव करवो ते ज ‘सम्यग्दर्शन’ अने
‘सम्यग्ज्ञान’ एवां नाम पामे छे. सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान कांई
अनुभवथी जुदां नथी.
[समयसार गाथा–१४४ टीका–
भावार्थ. गुजराती पानुं–१८४]
[आत्मसिद्धि गाथा–११]
अर्थ–पोताना स्वभावनी प्रतीत, ज्ञान अने अनुभव
वर्ते अने पोताना भावमां पोतानी वृति वहे ते परमार्थ
सम्यकत्व छे.
(८)
निश्चय सम्यग्दर्शननुं चारित्रना भेद
अपेक्षाए कथन
निश्चय सम्यग्दर्शन चोथा गुणस्थानकथी शरू थाय छे,
चोथा अने पांचमा गुणस्थानके चारित्रमां मुख्यपणे राग होय
छे तेथी तेने ‘सराग सम्यक्त्व’ कहेवाय छे. छठ्ठा गुणस्थानके
चारित्रमां राग गौण छे अने पछीना गुणस्थानोमां ते टळतां
टळतां छेवटे संपूर्ण वीतराग चारित्र थाय छे तेथी छठ्ठा
गुणस्थानकथी ‘वीतराग सम्यक्त्व’ कहेवाय छे.
(९)
निश्चय सम्यग्दर्शन संबंधे प्रश्नोतर
प्रश्न:–मिथ्यात्व अने अनंतानुबंधीना निमित्ते थता
विपरित अभिनिवेश रहित जे श्रद्धा छे ते निश्चय सम्यक्त्व छे
के व्यवहार सम्यकत्व छे?
उत्तर:–ते निश्चय सम्यक्त्व छे, व्यवहार
सम्यकत्व नथी.
प्रश्न:–पंचास्तिकायनी गाथा १०७नी संस्कृत टीकामां
तेने व्यवहार सम्यक्त्व कह्युं ते खरूं?
उत्तर:–ए खरूं नथी. तेमां आ प्रमाणे शब्दो छे–
मिथ्यात्वोदयजनित विपरीताभिनिवेश रहितं श्रद्धान
अहीं ‘श्रद्धानं’ कहीने श्रद्धाननी ओळखाण आपी छे, पण
तेने व्यवहार सम्यकत्व कह्युं नथी. व्यवहार अने निश्चय
सम्यकत्वनी व्याख्या तो गाथा १०७ मां कहेल ‘
भावाणं
शब्दना अर्थमां कही छे.
प्रश्न:–अध्यात्म कमलमार्तंडनी ७ मी गाथामां तेने
व्यवहार सम्यक्त्व कह्युं छे ए खरूं?