Atmadharma magazine - Ank 026
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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: ५६ : आत्मधर्म मागशर : २४७२
१९. पर्यायनुं सामर्थ्य बेहद छे ते अहीं बताववुं छे. द्रव्य–गुण तो पूरा छे ज, परंतु तेनी पूर्णताने
स्वीकारनार कोण छे? द्रव्य–गुण पूरा अने वर्तमान पर्याय पण पूरी छे ते पर्यायनुं जे अनंत सामर्थ्य छे ते
सामर्थ्यने तो ज्ञाननी पर्याय ज जाणे छे. जो के जाणनार ज्ञाननो उपयोग तो असंख्य समयनो छे परंतु
“असंख्य समयमां पूरुं सामर्थ्य छे” एम ते नथी जाणतुं, पण “एकेक समयनी अवस्थामां पूरेपूरुं सामर्थ्य छे”
एम ते जाणे छे, अने तेनी एक समयमां प्रतीति करे छे. पूर्णने ज्ञानमां लेतां असंख्य समय लागे छे परंतु
तेनी प्रतीत तो एक ज समयमां छे.
२०. भगवानने पूर्णदशा प्रगटी गई ते पूर्णदशामां पूरेपूरुं ज्ञान अने आनंद सामर्थ्य एक समयमां छे
आम जे पर्याये कबुल्युं तेनुं पण अनंत माहात्म्य छे, तो पछी द्रव्य–गुणनां तो शुं माहात्म्य करवां!! जे जीवे
पोतानी पर्यायमां सिद्धनी कबुलात करी तेणे सूक्ष्मताथी तो पोताना आत्मा साथे सिद्धदशानी एकता करी छे,
तेनामां अने महावीरमां क्यांय आंतरो रहे नहि.
२१. कोण आ वातनी हा पाडे छे? कोनुं ज्ञान आ स्वीकार करे छे? आ वातने प्रतीतमां लेनार कोण
छे? जेने पोताना सत्मां आ वात बेठी तेने परनी ओशियाळ रहेती नथी. अहो! भवरहित थई गयेला
भगवानने जेणे पोताना निर्णयमां बेसाडया तेने भवरहित भावनो केटलो पोरह अने केटलो उत्साह!
एने ते हवे भव होय? जो सिद्ध भगवानने भव होय तो एने
[भवरहित भगवानने जेणे कबुल्या तेने]
भव होय एटले के तेने भव होय ज नहि. सिद्धदशाने वार लागे ए अहीं पालवे तेम नथी पोतानी पर्यायमां
सिद्धने समाडया अने हवे पोतानी सिद्धदशाने वार लागे ए केम चाले? भाणां तैयार कर्या, भाणे जमवा
बेसाडया अने हवे खाली भाणां खडखड खखडे अर्थात् पीरसतां वार लागे ते पालवे नहि–तेम–पोतानी
पर्यायमां सिद्ध भगवानने स्वीकार्या, पोतानी पर्यायरूपी भाणुं तैयार कर्युं अने हवे सिद्धदशारूपी पकवान्न
पीरसातां वार लागे ते पालवतुं नथी. अहो! जुओ तो खरा! आमां तो निर्णय अने केवळज्ञान वच्चेना
आंतराने तोडी नाखे एटलुं जोर छे.
२२. जेना ज्ञानमां केवळज्ञाननुं परिपूर्ण सामर्थ्य जणायुं अने तेनो ज महिमा थयो तेने निर्णयरूपे
केवळज्ञान प्रगटी गयुं छे. केवळज्ञान फरे तो तेनो निर्णय फरे! भले हजी वर्तमान उघाड केवळज्ञान जेटलो नथी
छतां पण वर्तमान निर्णयमां तो आखुंय केवळज्ञान आवी गयुं छे, तेथी कह्युं के निर्णयरूपे केवळज्ञान प्रगटी गयुं
छे. “विचारदशाए केवळज्ञान थयुं छे, ईच्छादशाए केवळज्ञान थयुं छे” एम ज्यां कह्युं छे त्यां पण आ ज
आशय छे. केवळज्ञाननो निर्णय कर्यो तेनुं केवळज्ञान पाछुं फरे ज नहि–एवी अप्रतिहतभावनी ज वात छे. ‘आ
तो पोताना ज अंदरना भावो घोळाय छे, परनो कोई महिमा करतुं नथी, सौ पोताना ज भावोने घोळी रह्यां
छे.’
२३. आ सुखी केम थवाय तेनी वात चाले छे. जेओ सिद्ध थई गया छे तेमने माटे आ वात नथी परंतु
जेओ सिद्ध थवाना छे तेमने सिद्ध थवा माटेनी आ वात छे. सिद्धदशामां भगवानने अगुरुलघुगुणना कारणे
उत्पाद–व्यय थाय छे, तेमने तो दरेक समये पूर्ण आनंद छे; छतां पर्याय तो बदल्या ज करे छे एटले के पहेली
पर्यायनो जे आनंद छे ते ज आनंद बीजी पर्यायमां नथी, परंतु तेना जेवो ज बीजी पर्यायनो बीजो आनंद छे.
आ रीते सिद्धदशामां आनंदनी जात बदलती नथी परंतु काळ बदली जाय छे.
२४. अहीं कोईने एम थाय के सिद्ध भगवानने आनंद छे तेमां आ आत्माने शुं? तेने कहे छे के–भाई!
सिद्धने आनंद छे एम नक्की कोण करे छे? नक्की करनार पोते छे के बीजो? नक्की करनारे पोताना ज्ञाननो ज
महिमा कर्यो छे अने तेमां सिद्ध अने केवळज्ञानी ए तो बधाय निमित्त तरीके आव्यां छे.
२५. कोनां ज्ञानमां आ वात समजाय छे? आ वात कोनुं ज्ञान कबुले छे? भगवाननुं ज्ञान कबुले छे के
पोतानुं ज्ञान कबुले छे? पोतानुं ज ज्ञान कबुले छे. पुण्य–पापना भावमां अटकनारुं ज्ञान आ कबुलतुं नथी
परंतु पुण्य–पापरहित सिद्धदशा तरफ वळेलुं ज्ञान आ कबुले छे. अरूपी चैतन्य आत्म तेजना माहात्म्य पासे
जगतमां कोईनुं माहात्म्य नथी. आत्मानुं चैतन्य तेज केवळज्ञानरूपे परिणमे छे त्यारे तो चार क्षायोपशमिक
ज्ञानोनुं माहात्म्य पण रहेतुं नथी; आवो चैतन्य स्वरूपी भगवान आत्मा पोते ज स्वतंत्रपणे परिपूर्ण ज्ञान
अने सुखरूपे थाय छे तेथी ते ज ‘स्वयंभू’ छे. ‘स्वयंभू’ एटले स्वतंत्र पणे आत्मानुं ज्ञान–सौख्यरूप
परिणमन ते ज महिमावंत मंगळिक छे.