मागशर : २४७२ आत्मधर्म : ५७ :
२६. जेणे एक आत्मानी परिपूर्ण दशा ज्ञानमां कबुली तेणे पोताना ज्ञानमां अनंता सिद्ध आत्माओनो
स्वीकार कर्यो अने पोतानुं पण तेवुं ज स्वरूप छे एम कबुल्युं एटले तेणे भंग–भेदनो नकार कर्यो. “जेवी मारा
ज्ञानमां जणाणी छे तेवी ज सिद्धदशा स्वरूपे परिणमवुं ते ज मारो स्वभाव छे, ऊणीदशा के भंगभेदरूपे
परिणमवुं ते मारूं स्वरूप नथी; सिद्धने हुं जाणुं छुं एम बोलाय छे पण खरेखर तो हुं मारी ज पर्यायने जाणुं छुं
तेमां तेओ जणाई जाय छे–एवुं मारूं सामर्थ्य छे” आम स्वनुं बहुमान आववुं जोईए.
२७. दरेक जीव जो के पोतानी ज पर्यायना सामर्थ्यने जाणे छे परंतु तेने पोताना ज्ञाननो भरोसो
आवतो नथी तेथी ते परनुं बहुमान करवामां रोकाय छे अने स्वने भूली जाय छे; परंतु “हुं मारा
ज्ञानसामर्थ्यने जाणुं छुं, परने हुं खरेखर जाणतो नथी, अने मारूं ज्ञानसामर्थ्य तो परिपूर्ण छे.” एम स्वनो
महिमा आवे तो कोई परनो महिमा आवे नहि. आत्मा पोते असंख्य प्रदेशे अनंत गुणनो पिंड छे, तेने
संभारतां ते आखो पिंड पर्यायमां आवी जाय छे. एक समयनी अवस्थामां अनंत गुणनो पिंड वर्तमानरूप
आवी जाय छे अने तेनो एक समयमां ख्याल करनार मारी पर्याय छे. आ रीते ज्ञाननी पोतानी अवस्थाना
सामर्थ्यना गाणां गवाणां छे.
२८. अहो! आज तो अपूर्व भावो आव्या छे, आत्मामां आ भावोने ओगाळवा जेवा छे. पोणी कलाक
एकधारी अपूर्व व्याख्या आवी छे, आवी सरस वात कोई वखते थई नथी. आजे तो कोई जुदी ज जातथी
घूंटाणुं छे...अलौकिक अमृत नीकळ्युं छे..........आ रीते अपूर्व मंगळिक थयुं...........
पात्रतानुं पहेलुं पगथियुं गृहीत अने अगृहीत मिथ्यात्वनो : : : त्याग
रा. मा. दोशी
मिथ्यात्वनो अर्थ
प्रथम आपणे मिथ्यात्व एटले शुं अने मिथ्यात्व कोने कहेवाय, तेनुं वास्तविक लक्षण (चिह्न) शुं छे ते
विचारीए.
मिथ्यात्वमां बे शब्दो रहेलां छे. (१) मिथ्या अने (२) त्व. मिथ्या एटले खोटुं अने त्व एटले पणुं.
एटले के खोटापणुं, फोगटपणुं, जुठापणुं, ऊंधापणुं, विपरीतपणुं आदि अनेक मिथ्यात्वना अर्थो थाय छे.
अहीं जीवमां पोतामां मिथ्यापणुं–ऊंधापणुं शुं छे ते जोवानुं छे. कारण के जीवने अनादि काळथी दुःख
थया करे छे अने तेने अनादिथी मटाडवानो प्रयत्न पण ते करे छे, पण ते मटतुं के ओछुं थतुं नथी. वळी ते दुःख
समये समये अनंतु छे अने अनेक प्रकारनुं छे. पूर्वना पुण्यना योगे कोई एक सामग्रीनो संयोग थतां कोई एक
प्रकारनुं दुःख ओछुं थयुं होय एम तेने लागे छे पण वास्तविक रीते जोईए तो खरेखर तेने दुःख ओछुं थयुं
नथी कारण के ज्यां एक प्रकारनुं दुःख गयुं न होय त्यां तो बीजा दुःखनी लाळ थया ज करे छे.
हवे मूळभूत भूल वगर दुःख होय नहि, दुःख छे तेथी भूल पण छे ज अने ते भूल ज आ महादुःखनुं
कारण छे वळी जो ते भूल नानी होय तो दुःख थोडुं अने अल्पकाळनुं होय, पण मोटी भूल छे तेथी दुःख मोटुं
अने अनादिनुं छे. हवे दुःख तो अनादिकाळनुं छे–अनंतु छे माटे एम नक्की थयुं के मिथ्यात्व एटले के जीव
संबंधीनी ऊंधी समजणरूप–भूल मोटामां मोटी अने अनंती छे केमके जो भयंकर भूल न होय तो भयंकर
दुःख न होय. महान भूलनुं फळ ते महान दुःख छे; माटे महान दुःख टाळवानो साचो उपाय महान भूल
टाळवी ए छे.
दुःख छे ते नक्की करीए
कोई कहे के जीवने दुःख केम कहेवाय? पैसा, खावापीवानी सगवड, जोईए ते मळतुं होय छतां तेने
दुःखी केम कहेवाय?
तेने उत्तर:–भाई! तने परवस्तु मेळववानी ईच्छा थाय छे के नहि? मने पर सामग्री, पैसा वगेरे होय
तो ठीक! ए बधा होय तो मने सुख थाय एवी तने अंतरथी ईच्छा थाय छे के नहि! बस! ईच्छा थाय छे