: ५८ : आत्मधर्म मागशर : २४७२
ते ज दुःख छे कारण जो तने दुःख न होय तो परवस्तु मेळवीने सुख लेवानी ईच्छा थाय नहि.
अहीं अज्ञानपूर्वक ईच्छानी वात छे, कारण अज्ञान–भूल टळ्या पछी अस्थिरताने लईने थती जे ईच्छा
तेनुं दुःख अल्प छे. मूळ दुःख अज्ञानपूर्वकनी ईच्छानुं ज छे. ईच्छा कहो, दुःख कहो, अकळामण कहो के मूंझवण
कहो, बधानो अर्थ एक ज छे. ते मिथ्यापणानुं फळ छे. पोताना स्वरूपनी अभानदशामां ईच्छा वगर जीवनो
एक समय पण जतो नथी. निरंतर पोताने भूलीने ईच्छा थया ज करे छे अने ए ज दुःख छे.
जीवनी मोटी भयंकर भूल छे तेथी मोटुं दुःख छे एटले के जीवने एक पछी एक ईच्छा सांध मारती–
अटक्या वगर थया ज करे छे, ते महान दुःख छे. तेनुं कारण मिथ्यात्व–ऊंधी मान्यता–महान भुल छे. मिथ्यात्व
शुं छे? ते हवे कहेवाय छे:–
मिथ्यात्व शुं छे?
जो मिथ्यात्व ते द्रव्य के गुण होय तो टाळी न शकाय, पण जो मिथ्यात्व ते पर्याय होय तो पर्याय
बदलावी–मिथ्यात्व टाळी शकाय.
हवे मिथ्यात्व ते ऊंधाई छे. ऊंधाई कहेतां ज एम आव्युं के ते फेरवीने सवळाई करी शकाय छे.
मिथ्यात्व ते जीवना कोई एक गुणनी वर्तमान ऊंधी अवस्था छे अने अवस्था छे ते समये समये पलटे छे.
तेथी मिथ्यात्व एक समयनी अवस्था होवाथी ते टाळी शकाय छे.
जीवना कया गुणनी ऊंधी अवस्था ते मिथ्यात्वभूल छे?
हुं कोण छुं, मारूं साचुं स्वरूप शुं छे, आ क्षणिक सुखदुःखनी लागणीओ थाय छे ते शुं छे? पुण्य–पापनो
विकार शुं छे? परवस्तु देहादि मारा छे के नहि एम स्व–परनी यथार्थ मान्यता करनारो जे गुण ते गुणनी
ऊंधीदशा ए मिथ्यात्व छे एटले के आत्मामां मान्यता–(श्रद्धा) नामनो त्रिकाल गुण छे तेनी ऊंधी
अवस्था ते मिथ्यात्व छे.
जीव जेवी पोते मान्यता धरावे तेवुं ते आचरण करे. एटले के ज्यां जीवनी मान्यतामां भूल होय त्यां
तेनुं वर्तन ऊंधु होय, होय ने होय ज. जीवनी मान्यता ऊंधी होय अने आचरण साचुं होय एम कोई काळे बने
ज नहि. ज्यां ज्यां ऊंधी मान्यता होय त्यां ज्ञान पण ऊंधु ज होय.
‘मिथ्या’ नो अर्थ खोटुं, ऊंधु, जूठुं अथवा तो विपरीत अने ‘त्व’ एटले ते पणुं. आ भूल मोटी भयंकर
छे एम कह्युं केमके ज्यां मान्यता मिथ्या होय त्यां आचरण अने ज्ञान पण ऊंधा होय अने ते ऊंधाईमां महान
दुःख होय. एवी मिथ्यात्वरूपी भयंकर भूल ते शुं छे? ते विचारीए.
स्वरूपनी मान्यता करनार श्रद्धा नामनो जीवनो जे गुण छे तेने पोते पोताथी ऊंधो कर्यो छे, तेने मिथ्या
मान्यता कहेवाय छे; ते अवस्था छे तेथी टळी शके छे.
ते भयंकर भूल कोण टाळे? जीवनी पोतानी ते अवस्था होवाथी जीव पोते ते टाळी शके छे. पोताना
स्वरूपनी सौथी महा–मोटी भयंकरमां भयंकर–महा भयानक भूल ते कयारथी चाली आवे छे?
वर्तमानमां तने भूल छे? जो वर्तमानमां तने भूल छे तो पूर्वे पण भूल हती. जो पूर्वे तद्न भूल
वगरनो थई गयो हो तो वर्तमान भूल आवे नहि. पूर्वे पाकीन खसे एवी साची समजण–मान्यता करी होय
अने खसी गई होय तो? एवा प्रश्ननो उत्तर आपे छे.
जेने थोडुं साचुं ज्ञान थयुं होय ते ज्ञानमां कदी भूल थवा न दे. जेम हुं दशाश्रीमाळी वाणियो छुं एवुं
ज्ञान पोते कदी भूली जतो नथी; ‘हुं दशाश्रीमाळी वाणियो’ ए नाम तो जन्म्या पछी पोते मान्युं छे...२५–५०
वरसथी शरीरनुं नाम मळ्युं छे; कांई आत्मा पोते वाणियो नथी छतां ते घूंटाईने केटलुं द्रढ थई गयुं छे! ज्यारे
बोलावो त्यारे कहे के ‘हुं वाणियो, हुं कोळी वाघरी नहि.’ आ थोडा वरसथी मळेलुं शरीरनुं नाम पण भूलातुं
नथी तो परवस्तु–शरीर–वाणी–मन बहारना संयोगो तथा पर तरफना वलणथी थतां राग–द्वेषना विकारी
भावोथी भिन्न पोताना शुद्ध आत्मानुं पूर्वे पाकुं भान, साची समजण करी होय तो ते केम भूलाय? जो पूर्वे
पाकी साची समजण करी होय तो वर्तमानमां ऊंधाई न होय.–वर्तमानमां ऊंधाई देखाय छे माटे पूर्वे पण जीवे
ऊंधाई ज करी छे.
तुं–आत्मा अनंतगुणनो पिंड अनादि अनंत छो. ते अनंत गुणोमां एक मान्यता–श्रद्धा नामनो गुण
पण अनादिअनंत छे. ते मान्यता नामना गुणनी अवस्था तारी ऊंधाईथी अनादिथी ते ऊंधी करी छे. अने
तेने तुं लंबाव्ये जाय छे. भूल–ऊंधाई वर्तमान अवस्थामां छे तेथी ते टळी शके छे.