Atmadharma magazine - Ank 027
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४७२ : आत्मधर्म : ६९ :
• निश्चयनो आश्रय
अने व्यवहारनो निषेध •
आत्मानुं जे वीर्य कार्य करे छे ते तो अवस्थारूप (वर्तमान) ज छे, परंतु
ते वर्तमान वीर्यने वर्तमानना लक्ष उपर [अवस्था द्रष्टिमां] टकावे अने
त्रिकाळी अंतर स्वभाव तरफ वीर्यनुं जोर न करे तो विकल्प टळे
–नहि अने सम्यग्दर्शन थाय नहि–
सद्गुरुदेवश्रीनुं व्याख्यान का. सु. ७ : २४७२
अनंत प्राणीओने अनंतकाळथी पोताना निश्चय स्वभावनुं माहात्म्य न आवतां राग अने विकल्पनो
सूक्ष्म पक्ष रही जाय छे; ते व्यवहारनो सूक्ष्म पक्ष कई रीते छे तेनुं स्वरूप कहेवाशे. ध्यान राखीने समजजो.
जीवने ज्ञानमां पर वस्तु, विकल्प तेमज आत्मानो स्वभाव पण जणाय छे, तेना ख्यालमां एम तो
आवे छे के आत्मा वस्तु राग के परवस्तु जेटली नथी; आम ख्यालमां आववा छतां रागमां आत्मानुं वीर्य
अटकी जाय तो व्यवहारनो पक्ष रहे छे. आत्माना वीर्यने पर तरफना वलणथी जुदुं पाडी, शुभरागनुं जे लक्ष
थाय ते शुभराग उपर पण लक्ष आपतां, स्वभावना ज्ञानवडे वीर्यने ते शुभभावमां न अटकावतां, ते शुभथी
पण जुदा एवा आत्मस्वभाव तरफ वीर्यने वाळे तो जीवे निश्चयना आश्रये व्यवहारनो निषेध कर्यो छे.
आत्मा वर्तमानमां ज ज्ञानादि अनंत स्वभावगुणनो पिंड छे; तेनी अवस्थामां वर्तमान अशुभ
अवस्था थाय तेने छोडवानुं तो जीवने मन थाय केमके एमां अशुभ उपरथी शुभमां वीर्य जोडवुं ते तो वर्तमान
पूरतुं ज वीर्यनुं कार्य छे. नग्न दीगंबर जैननो साधु थईने पंचमहाव्रतनो शुभराग तेम ज देव–गुरु–शास्त्रनी
श्रद्धा करीने तेमनी कहेली वात ख्यालमां आववा छतां सम्यग्दर्शनना अभावने लीधे जीवने सूक्ष्मपणे
व्यवहारनी पक्कड रही जाय छे.
ज्ञानमां शुभ अने अशुभ बंनेनो ख्याल करीने जीव अशुभमांथी शुभमां तो वीर्यने फेरवी नांखे छे
परंतु ते वर्तमान पूरता शुभरागमां वीर्यनुं जे वजन छे ते जो उपाडीने स्वभाव तरफ ढाळे तो व्यवहारनो पक्ष
छूटे. आत्माना स्वभावमां विकार नथी, विकार क्षणिक छे अने पर पदार्थो जुदां छे एम तो ख्यालमां लीधुं
एटले (१) शरीर वगेरे पर वस्तु तो हुं नहि एम ज्ञानमां धार्युं (२) कर्म जड छे ते आत्माथी जुदा छे एम
शास्त्रथी ख्यालमां लीधुं अने (३) अशुभभाव थाय तेने अवस्थाना लक्षमां रही–रहीने फेरव्यो–अवस्था
द्रष्टिमां ज रही–रहीने अवस्थामां अशुभने फेरवीने शुभ कर्या. शुभभाव, अशुभभाव अने शुभाशुभरहित
आत्मस्वभाव तेने ख्यालमां तो लीधा तेम ज अशुभ थाय छे तेने आत्मवीर्य वडे छोडीने शुभ कर्या परंतु,
स्वभाव तरफ पुरुषार्थनुं जोर जवुं जोईए तेने बदले, वर्तमान शुभ उपर ज तेनुं पुरुषार्थनुं वजन अटकी रह्युं–
तेथी निश्चयनो आश्रय थयो नहि अने व्यवहारनो पक्ष गयो नहि.
जीवने ज्ञानमां परवस्तुओ, शुभ तेमज अशुभ कोने कहेवां ते अने शुभाशुभथी रहित स्वभाव छे ते
ख्यालमां आववा छतां वीर्यनुं वजन ते शुभ तरफथी छूटीने स्वभावना जोर तरफ न जाय तो ते जीवने
निश्चयनो विषय जे स्वभाव ते रुचिकर थयो नथी एटले तेनुं वीर्य स्वभाव तरफ जतुं नथी–पण व्यवहारमां ज
अटक्युं छे.
अशुभमांथी शुभभाव करवो तेमां वीर्य वर्तमान पूरतुं छे, अने शुभ–अशुभ रहित स्वभावनी रुचिना
वीर्यनुं त्रिकाळी जोर छे. स्वभावनी रुचिना त्रिकाळी जोरमां शुभना वलणमांथी वीर्य छूटीने स्वभावना
माहात्म्यमां वीर्यनुं जोर आवतां, त्रिकाळीनी द्रष्टिथी सहज ज वर्तमान पूरता व्यवहारनो निषेध थई जाय छे–
निषेध करुं एवो विकल्प होतो नथी...आ रीते निश्चयनय व्यवहारनयनो निषेध करे छे.
जाणवामां ‘राग मारुं स्वरूप नथी’ एम व्यवहारनो निषेध ते पण राग छे. हुं जीव छुं–विकार मारुं
स्वरूप नथी ए प्रकारे नव तत्त्वादिकना विचारना वर्तमानपूरता भाव उपर जे वीर्यनुं वजन अटके परंतु
स्वभावथी पराङमुख वलणथी छूटीने अंतर स्वभावमां वळवा माटे वीर्यनुं वलण काम न करे तो ते वलण
व्यवहारनी रुचिमां टकयुं छे पण निश्चय स्वभाव तरफ तेनुं वलण ढळ्‌युं नथी; अने जे वीर्यनुं वलण निश्चय
स्वभावमां ढळे छे ते वीर्यमां वर्तमाननुं वलण
[व्यवहारनो पक्ष] छूटी