एकांत छे.
निश्चयनो आश्रय थतो नथी; आम होवाने लीधे जेओ बंने नयोनो आश्रय करवा जेवो माने छे तेओ बंने
नयोने एकमेक मानता होवाथी एकांतवादी छे.
(निश्चयनी) द्रष्टि थई अने अवस्था गौण थई गई. आम निश्चयने मुख्य अने व्यवहारने गौण करे छे तेथी ज
ते ‘नय’ कहेवाय छे.
द्रष्टिमां एकला निश्चय स्वभावनुं वजन न आपे तो व्यवहारने गौण करी स्वभाव तरफ वळी शके नहि अने
सम्यग्दर्शन थाय नहि. जो वर्तमान चालता विकारभाव तरफनुं जोर तोडीने स्वभाव तरफ जोर आपे तो ते
अवस्थामां स्वभावरूपी कार्य आवे. ज्ञान अने वीर्यनी द्रढता स्वभाव तरफ ढळे ते निश्चयनी मुख्यता थई अने
रागादि विकल्पने जाण्या पण ते तरफ ढळ्यो नहि–तेने मुख्य न कर्या ते ज व्यवहारनयनो निषेध थयो, त्यां पण
व्यवहारनुं ज्ञान तो छे अने ते ज्ञानमां व्यवहारनी गौणता वर्ते छे.
भूमिका सुधी राग रहेशे, छतां द्रष्टिमां कदी रागनी मुख्यता नहि थाय... त्रिकाळी स्वभाव ए ज मुख्य छे,
एटले द्रष्टिना जोरथी ते निश्चयस्वभाव तरफ ढळतां ढळतां अने रागरूप व्यवहारने तोडतां तोडतां संपूर्ण
वीतरागता अने केवळज्ञान थई जशे. केवळज्ञान थया पछी संपूर्ण नय–पक्षनो ज्ञाता छे त्यां कांई मुख्य–गौण
पणुं रहेतुं नथी–विकल्प नथी.
त्रिकाळी स्वभावमां ढळी शकतो नथी. अने त्रिकाळी स्वभाव तरफना वजनवाळो पहेलांं बंनेनो ख्याल करीने
स्वभावमां ढळे छे. स्वभावनी जेणे द्रढता करी तेणे व्यवहारने मोळो पाडी दीधो. हजी व्यवहारनो सर्वथा
अभाव थयो नथी, पण जेम जेम स्वभावमां ढळतो जाय तेम तेम व्यवहारनो अभाव थतो जाय छे.
जुदो छे एवुं जे ज्ञान छे ते तरफ वीर्यने ढाळ्युं एटले तरत ज सम्यग्दर्शन थयुं. जो स्वभावनी रुचि करे तो वीर्य
स्वभाव तरफ ढळे, पण जेने रागनुं पोषण अने रुचिकरपणुं छे तेने व्यवहारनुं वलण खसतुं नथी. ज्यां सुधी
मान्यतामां अने रुचिना वीर्यमां निरपेक्ष स्वभाव न रुचे अने राग रुचे त्यां सुधी एकांत मिथ्यात्व छे.
छतां, एकला चैतन्य स्वभाव तरफना वीर्यना अभावे तेने मिथ्यात्व रही जाय छे. एकलो चैतन्य स्वभाव छे
ते तरफना जोरे वर्तमान तरफथी खसवुं जोईए–आ ज दर्शन विशुद्धि छे. ज्ञानना उघाड उपर, कषायनी मंदता
उपर के त्याग उपर जोर नथी परंतु दर्शन विशुद्धि उपर ज आखुं जोर छे.
अने व्यवहारना आश्रये बंधन छे, परंतु ए तो सलाहने ख्यालमां लीधी पण–तेम मान्युं नहि. शास्त्रे कहेलां
बंने पडखांने ख्यालमां तो ल्ये परंतु पोतानी रुचिमां आवे ते माने, रुचि तो पोताना वीर्यमां रही, तेमां
भगवान के शास्त्रनुं जाणपणुं काम न आवे.