: माह : २४७२ आत्मधर्म : ८५ :
द्रव्यमां ते निर्णयनी ताकात प्रगटी छे एटले निर्णय करनारे द्रव्यने प्रतीतमां लईने निर्णय कर्यो छे. आवो
निर्णय करनार जीव ज सर्वज्ञनो साचो भक्त छे, तेनुं वलण पोताना सर्वज्ञस्वभाव तरफ ढळ्युं छे अने कयांय
अटक्या वगर अल्पकाळमां ते सपूर्ण सर्वज्ञ थशे. आनाथी विरुद्ध एटले के कोई द्रव्य अन्य द्रव्यनुं कांई करी शके
एम जे माने छे तेणे १–पोताना आत्माने, २–सर्वज्ञना ज्ञानने, ३–न्यायने के ४–द्रव्य–पर्यायने खरेखर मान्या
नथी. १–पोतानो आत्मा परथी भिन्न छे छतां ते परनुं करे एम मान्युं एटले आत्माने पररूपे मान्यो एटले के
आत्माने मान्यो ज नहि. २–वस्तुनी अवस्था सर्वज्ञदेवे जोया प्रमाणे थाय छे तेने बदले हुं ते फेरवी शकुं एम
मान्युं एटले तेणे सर्वज्ञना ज्ञानने साचुं न कबुल्युं. ३–वस्तुनी ज क्रमबद्ध अवस्था थाय छे, त्यां निमित्त कांई
करे के निमित्त फेरफार करी नांखे ए वात कयां रही? निमित्त परनुं कांई ज करतुं नथी, छतां मारा निमित्तथी
परमां कांई फेरफार थाय एम जेणे मान्युं तेणे साचा न्यायने मान्यो नथी. अने ४–द्रव्यनी पर्याय द्रव्यमांथी ज
आवे छे तेने बदले परमांथी द्रव्यनी पर्याय आवे छे एम जेणे मान्युं [अर्थात् हुं परनी पर्याय करूं एम मान्युं]
तेणे द्रव्य–पर्यायना स्वरूपने मान्युं नथी; आ रीते एक ऊंधी मान्यतामां अनंत असत्नुं सेवन आवी जाय छे.
वस्तुमांथी क्रमबद्धपर्याय आवे छे, ते बीजुं कोई करतुं नथी, छतां ते वखते निमित्त हाजर होय छे खरूं,
परंतु निमित्तद्वारा कांई पण कार्य थतुं नथी, निमित्त मदद करे एम पण नथी अने निमित्तनी हाजरी न होय
एम पण बनतुं नथी. जेम ज्ञान बधी वस्तुने मात्र जाणे छे पण कोईनुं कांई करतुं नथी, तेम निमित्त मात्र
हाजर होय छे पण उपादानने ते कांई असर, मदद के प्रेरणा करतुं नथी.
जे समये स्वलक्षना पुरुषार्थ वडे आत्मानी सम्यग्दर्शन पर्याय प्रगटे ते वखते साचा देव–गुरु–शास्त्र
निमित्तरूप होय ज छे.
प्रश्न:–जीवने सम्यग्दर्शन प्रगटवानी तैयारी होय अने साचा देव–गुरु–शास्त्र न मळे तो सम्यग्दर्शन न
थाय ने?
उत्तर:–जीवनी तैयारी होय अने साचा देव–गुरु शास्त्र न होय ए वात बने ज नहि. उपादानकारण
तैयार थाय त्यारे निमित्तकारण स्वयं आवी मळे छे, परंतु कोई कोईना कर्ता नथी. उपादानना कारणे निमित्त
आव्युं नथी, तेमज निमितना कारणे उपादाननुं कार्य थयुं नथी. बंने स्वतंत्रपणे पोतपोताना कार्यना कर्ता छे.
अहो! वस्तुनी केटली स्वतंत्रता! समस्त वस्तुओमां क्रमवर्तीपणुं चाली ज रह्युं छे, एक पछी एक
पर्याय कहो के क्रमबद्धपर्याय कहो, जे पर्याय थवानी ते पर्याय थया ज करे छे, ज्ञानी जीव ज्ञातापणे जाण्या ज करे
छे अने अज्ञानी जीव कर्तापणानुं मिथ्या अभिमान करे छे; जे परनां अभिमान करे छे तेनी पर्याय क्रमबद्ध
हीणी परिणमे छे अने जे ज्ञाता रहे छे तेनी ज्ञान पर्याय क्रमबद्ध खीलीने केवळज्ञान थाय छे.
वस्तुनी अनादि अनंत समयनी पर्यायमांथी एके पर्यायनो क्रम फरे नहि. जेटला अनादि अनंतकाळना
समय तेटली दरेक वस्तुनी पर्यायो छे, पहेलां समयनी पहेला पर्याय, बीजा समयनी बीजी, त्रीजा समयनी
त्रीजी–एम जेटला समय तेटली पर्यायो क्रमबद्ध छे. जेणे आम स्वीकार्युं तेनी द्रष्टि एकेक पर्याय उपरथी खसीने
अभेद द्रव्य उपर द्रष्टि थई अने परथी ते उदास थई गयो. जो कोई एम कहे के हुं परनी पर्याय करी दऊं, तो
तेणे वस्तुनी अनादिअनंतकाळनी पर्यायोमां फेरफार करवानुं मान्युं एटले के वस्तुस्वरूपने विपरीतपणे मान्युं,
तेथी ते मिथ्याद्रष्टि छे.
वस्तु अने वस्तुना गुण तो अनादि अनंत छे, अनादिअनंतकाळना जेटला समयो छे तेटली ते ते
समयनी पर्यायो वस्तुमांथी क्रमबद्ध प्रगटे छे. जे समयनी जे पर्याय छे ते समये ते ज पर्याय प्रगट थाय छे;
आडी अवळी न थाय तेमज पहेलांं–पछी न थाय. पर्यायना क्रममां फेरफार करवा कोई समर्थ नथी. आ
क्रमबद्धपर्यायना सिद्धांतमां तो केवळज्ञान खडुं थई जाय छे. आ तो द्रष्टिना अजर प्याला छे, ते प्याला पचाववा
माटे श्रद्धा–ज्ञानमां अनंत पुरुषार्थ जोईशे. अनादिअनंत अखंड द्रव्यने प्रतीतमां ल्ये त्यारे क्रमबद्धपर्यायनी
श्रद्धा थाय छे; केमके क्रमबद्धपर्यायनुं मूळ तो ते ज छे. जेणे क्रमबद्धपर्यायनी श्रद्धा करी ते अनादिअनंत
पर्यायोनो ज्ञायक अने चैतन्यना केवळज्ञाननी प्रतीतिवंत थई गयो. मारी पर्याय मारा द्रव्यमांथी आवे छे एम
द्रव्य तरफ ढळतां, साधक पर्यायमां अधूराश रही छे तोपण हवे तेने द्रव्य तरफ ज जोवानुं रह्युं, अने ते द्रव्यना
ज जोरे पूर्णता थई जवानी छे.
वस्तुनुं सत्य स्वरूप तो आम ज छे, आ समज्ये ज छूटको छे! वस्तुनुं स्वाधीन परिपूर्ण स्वरूप
ख्याललमां लीधा वगर पर्यायमां शांति आवशे कयांथी? सुख दशा जोईती होय तो ए वस्तुस्वरूप जाणवुं पडशे
के जेमांथी सुख दशा प्रगटी शके छे.