Atmadharma magazine - Ank 028
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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: ८६ : आत्मधर्म : माह : २४७२
अहो! मारी पर्याय पण क्रमबद्ध ज थाय छे–आम जेणे नक्की कर्युं तेने पोतामां समभाव–ज्ञाताभाव थई गयो,
पर्याय फेरववानी आकुळता न रही, पण जे जे पर्याय थाय तेनो ज्ञातापणे जाणनार रह्यो, जे ज्ञातापणे
जाणनार रह्यो तेने केवळज्ञान थतां शी वार? जेने स्वभावमां समभावी ज्ञान नथी एटले के पोताना द्रव्यनी
क्रमबद्ध अवस्थानी जेने प्रतीति नथी ते जीवनी रुचि परमां जाय छे अने तेने विषमभावे क्रमबद्धपणे विकारी
पर्याय थाय छे. ज्ञातापणानो विरोध करीने जे पर्याय थाय छे ते विषमभावे छे (विकारी छे) अने स्वमां द्रष्टि
करीने ज्ञातापणे रहेतां जे पर्याय थाय छे ते समभावे क्रमबद्ध विशेष शुद्ध थती जाय छे.
आमां तो बधुं पोतानी पर्यायमां ज समाय छे. पोतानी क्रमबद्धपर्याय जो स्वद्रष्टिथी करे तो शुद्ध थाय
अने जो परद्रष्टिथी करे तो अशुद्ध थाय, पर साथे संबंध न रह्यो, पण द्रष्टि कई तरफ छे ते उपर क्रमबद्ध
पर्यायनो आधार छे. कोई जीव शुभभाव करवाथी परवस्तु (देव–गुरु–शास्त्र के मंदिर वगेरे) मेळवी शके नहि
अने अशुभभाव करवाथी कोई पैसा वगेरे परवस्तु मेळवी शके नहि. जे परवस्तु जे काळे जे क्षेत्रे आववानी
होय ते ज वस्तु ते काळे ते क्षेत्रे स्वयं आवे छे, पण आत्माना भावने कारणे ते आवती नथी. बधी वस्तुनी
पर्याय तेना क्रमबद्ध नियम प्रमाणे ज थाय छे तेमां फेर पडतो नथी. आ समजणमां वस्तुनी प्रतीति अने
केवळज्ञान स्वभावनुं अनंत वीर्य प्रगटे छे. आ मानतां अनंता परद्रव्योना कर्तृत्वने छेदीने एकलो ज्ञाता थई
गयो, त्यां अभिप्रायमां बधा प्रत्येनो राग–द्वेष टळी गयो, आमां तो अनंतकाळे कदी नहि करेल एवो अपूर्व
सम्यग्दर्शननो पुरुषार्थ छे.
जेम आत्मामां बधी पर्याय क्रमबद्ध ज थाय छे तेम जडमां पण जडनी बधी अवस्था क्रमबद्ध थाय छे.
कर्मनी जे जे अवस्था थाय छे ते आत्मा करतो नथी पण परमाणुनी क्रमबद्धपर्याय छे. कर्मना परमाणुओमां
उदय, उदीरणा वगेरे जे दस अवस्थाओ (करणो) छे ते परमाणुनी क्रमबद्धदशा छे. आत्माना शुभपरिणामने
कारणे कर्मना परमाणुओनी दशा फरी नथी, पण ते परमाणुओमां ज ते टाणे ते दशा थवानी लायकात हती तेथी
ते दशा थई छे. जीवना पुरुषार्थने लीधे कांई कर्मनी क्रमबद्ध अवस्थामां भंग पडी जतो नथी, जीवे पोतानी
दशामां पुरुषार्थ कर्यो अने ते वखते कर्मना परमाणुओनी क्रमबद्धदशा उपशम, उदीरणादिरूप स्वयं होय छे,
परमाणुमां तेनी अवस्था तेनी लायकातथी तेना कारणे थाय छे, पण आत्मा तेनुं कांई करतो नथी.
प्रश्न:–जो कर्म ते परमाणुनी क्रमबद्धपर्याय ज छे तो पछी जैनमां तो कर्मसिद्धांतना थोकबंध शास्त्रो
भरेला छे तेनुं शुं समजवुं?
उत्तर:–भाई रे! ए बधा शास्त्रो आत्माने ज बतावनारा छे. कर्मनुं जेटलुं वर्णन छे तेने आत्माना
परिणाम साथे मात्र निमित्त–नैमित्तिक संबंध छे, आत्माना परिणामो केवाकेवा प्रकारना थाय छे ते समजाववा
माटे उपचारथी कर्ममां भेदपाडी समजाव्युं छे; निमित्त–नैमित्तिक संबंधनुं ज्ञान कराववा माटे कर्मनुं वर्णन छे पण
जडकर्म साथे आत्माने कर्ताकर्मसंबंध जरापण नथी.
प्रश्न:–बंध, उदय, उदीरणा, उपशम, अपकर्षण, उत्कर्षण, संक्रमण, सत्ता, निद्धत्त अने निकाचीत एवा दस
प्रकारना करण [कर्मनी अवस्थाना प्रकार] केम कह्यां छे?
उत्तर:–अहो! एमां पण खरेखर तो चैतन्यनी ज ओळखाण करावी छे. कर्मना जे दस प्रकार पाडया छे
ते आत्माना परिणामोना प्रकार बताववा माटे ज छे. आत्मानो पुरुषार्थ तेवा दस प्रकारे थई शके छे ते
बताववा माटे कर्मना प्रकार पाडी समजाव्युं छे. आत्माना पुरुषार्थ वखते सामा परमाणुओ तेनी लायकात–
प्रमाणे स्वयं परिणमे छे. आमां तो बंनेना निमित्त–नैमित्तिक संबंधनुं ज्ञान कराव्युं छे, परंतु कर्मो आत्मानुं कंई
करे ए वात करी नथी.
एक कर्म–परमाणु पण द्रव्य छे, तेमां अनादि अनंत जे पर्याय थवानी छे ते ज समये समये क्रमबद्ध
थाय छे.
प्रश्न:–कर्मनी उदीरणा थाय एम कह्युं छे ने?
उत्तर:–उदीरणानो अर्थ एवो नथी के पछी थवानी अवस्थाने उदीरणा करीने वहेली लाव्या; कर्मनी
क्रमबद्धअवस्था ज ते प्रकारनी थवानी छे. जीवे पोतामां पुरुषार्थ कर्यो ते बताववा माटे उपचारथी ‘कर्ममां
उदीरणा थई’ एम कह्युं छे; खरेखर कर्मनी अवस्थानो क्रम फरी गयो नथी, परंतु जीवे पोतानी पर्यायमां ते
प्रकारनो पुरुषार्थ कर्यो छे–तेनुं ज्ञान कराववा माटे ज ‘उदीरणा’ कहेवामां आवी छे.
वळी, ‘जीव घणो पुरुषार्थ करे तो घणां कर्मो खरे’ एम कहेवामां आवे छे त्यां पण खरेखर जीवे कर्म