‘राग’ नी व्यापक व्याख्या
राग ते विकार होवाथी
आत्मानुं स्वरूप नथी, आत्मानो
स्वभाव राग रहित छे; आम
कहेतां “स्त्री, कुटुंब, लक्ष्मी,
आबरू, मान वगेरेनो प्रेम ते
राग” एटली ज रागनी व्याख्या
लोको माने छे, अने तेथी स्त्री,
कुटुंब वगेरेना रागने छोडीने देव–
गुरु–धर्म प्रत्ये राग करी तेमां धर्म
मानी ल्ये छे, परंतु तेम नथी; जेम
स्त्री, कुटुंब, पैसा उपरनो प्रेम ते
राग छे तेम देव–गुरु–धर्म प्रत्येनो
प्रेम ते पण राग छे, अने तेथी ते
आत्मानुं स्वरूप नथी, ते रागथी
पण धर्म थतो नथी.
स्त्री, कुटुंब, पैसा प्रत्येना
रागनी अशुभ लागणी तेमज
देव–गुरु–धर्मनी भक्ति–पूजाना
रागनी शुभ लागणी ते बंने राग
छे, अने ते लागणी पण छोडीने
आगळ जतां ‘हुं आत्मा छुं,
ज्ञानस्वरूप छुं’ एम विचार करवो
तेमां पण गुणगुणीभेदनो विकल्प
छे तेथी ते पण राग ज छे. ज्ञान
गुण आत्माथी जुदो पडतो नथी
छतां जुदो विचारमां लेतां राग
आवे छे. आ रीते स्त्री–पैसा वगेरे
तरफनो अशुभराग के देव–गुरु–
धर्म संबंधी शुभ राग तेम ज
पोताना आत्मा संबंधी विकल्पनो
शुभ राग ते बधोय राग ज होवाथी
बंधनुं लक्षण छे. शुभ–अशुभराग ते
आत्मानुं लक्षण नथी; शुभअशुभ
रागने बाद करतां बाकी जे एकलुं
ज्ञान रहे छे ते ज आत्मानुं लक्षण
छे, अने ते ज आत्मानो धर्म छे.
आत्माना स्वरूपमांथी बहार
लक्ष जईने जे शुभ के अशुभ रागनी
वृत्ति ऊठे ते वृत्ति आत्मानी स्वतंत्र
अनाफळ दशाने रोकती होवाथी
बंधन छे. एकला अभेद
शुद्धात्मस्वभावना अनुभव सिवाय
कोई पण लागणी ऊठे ते बधो राग
ज छे. रागनी आवी व्यापक व्याख्या
जेओ समजता नथी तेओ स्त्री,
कुटुंब, धन वगेरे तरफनो अशुभराग
छोडीने देव–गुरु धर्म प्रत्येना
शुभरागमां धर्म मानीने ते रागमां
अटकी जाय छे, परंतु आत्मानुं
स्वरूप तो बधा प्रकारना रागरहित
छे एने समजवानो तेओ प्रयत्न
करता नथी, अने तेथी सम्यग्दर्शन
थतुं नथी.
अनेक उपवासनो शुभराग
करवामां जे पुण्य बंधाय तेना करतां
एक समयना मिथ्यात्वनुं पाप वधारे
छे; केमके गमे तेटला उपवासना
पुण्य भेगां करवामां आवे तोपण
मिथ्यात्वना महापापने टाळवा ते
समर्थ नथी. उपवासनो शुभभाव
ते राग छे अने मिथ्यात्व टाळीने
सम्यग्दर्शन करवुं ते धर्म छे.
हजारो उपवास करतां
सम्यग्दर्शननुं फळ जुदी जातनुं छे,
केमके उपवासना शुभरागनुं फळ
बंधन छे अने सम्यग्दर्शननुं फळ
मुक्ति छे. बंधमार्ग अने
मुक्तिमार्गने जुदा ओळखवा
जोईए.
देव–गुरु–शास्त्र ते पर छे,
पर लक्षे गमे तेटलो राग घटाडीने
शुभ राग गमे तेटलो करे तोपण
तेनाथी बंधन ज छे, राग ते
आत्माना धर्मनो उपाय नथी,
पण रागथी विपरीत लक्षणवाळुं
एवुं ज्ञान ते ज आत्माना धर्मनो
उपाय छे; माटे राग ते आत्मा
नथी अने ज्ञान ते आत्मा छे–
एम समजण करो.
[मागशर सुद ९ सं. २००२
समयसार]
भगवानश्री कुंदकुंद प्रवचनमंडप
१०पप०७।। आत्मधर्म अंक २७ मां जणाव्या मुजब.
७२८/– पोष वद ०)) सुधीमां नीचे मुजब आव्या.
२प/– गांधी ललुभाई मगनलाल चूडा
१०१/– पारेख प्रभुलाल देवकरण राजकोट
प१/– देसाई रतीलाल वर्धमान मोरबी
प१/– चंदनबेन (देसाई रतीलाल वर्धमानना पुत्र वधु)
मोरबी
२प०/– शेठ वनेचंद जेचंद राजकोट
२प०/– शेठ प्रेमाभाई महासुखराम अमदावाद
७२८/–
१०६२३प।। एक लाख छ हजार बसो साडी पांत्रीस रूपीया.
नोट–हवे पछीनी छूटक रकमो एक साथे योग्य
समये आपवामां आवशे.
अम घेर प्रभुजी पधार्या
सुवर्णपुरीमां सनातन जैनमंदिरमां
देवाधिदेव श्री सीमंधर भगवंतनी परम
पूजनीक प्रतिष्ठा फागण सुद २ ना रोज
थयेली छे; अने दरवर्षे फागण सुद २ ना
रोज आ पवित्र प्रसंग महोत्सवपूर्वक
उजवामां आवे छे, आवता फागण सुद २
ना रोज ते महोत्सव उजवामां आवशे.
सुधारो अंक – २७
आत्मधर्म अंक २७ पानुं ६९ कोलम १ लीटी
११ मां ‘शुभराग उपर पण लक्ष आपतां’ एम छे
तेने बदले ‘शुभराग उपर पण लक्ष न आपतां’ एम
वांचवुं.