Atmadharma magazine - Ank 028
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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: ८० : आत्मधर्म : माह : २४७२
रुचि थाय अने जेने द्रव्यनी रुचि थाय तेनी क्रमबद्ध पर्याय शुद्ध ज थाय, एटले सर्वज्ञ भगवाने जाण्या प्रमाणे
क्रमबद्धपर्याय ज थाय छे, तेमां फेर पडतो ज नथी’ एटलुं नक्की करवामां तो द्रव्य तरफनो अनंत पुरुषार्थ
आवी जाय छे. पर्यायनो क्रम फेरववो नथी, पण रुचि स्व तरफ करवानी छे.
प्रश्न:–जगतना पदार्थोनी अवस्था क्रमबद्ध थाय छे, जड के चेतन बधामां एक पछी एक क्रमबद्ध
अवस्था श्री सर्वज्ञदेवे जोई ते प्रमाणे ज अनादि अनंत समयबद्ध ज थाय छे–तो पछी आमां पुरुषार्थ करवानो
कयां रह्यो?
उत्तर:–एकला आत्मा तरफनो पुरुषार्थ करे त्यारे ज क्रमबद्धपर्यायनी श्रद्धा थाय छे. जेणे पोताना
आत्मामां क्रमबद्धपर्यायनो निर्णय कर्यो के अहो! जड अने चैतन्य बधानी अवस्था क्रमबद्ध स्वयं थया करे छे,
हुं परमां शुं करूं? हुं तो मात्र जेम थाय तेम जाणुं एवुं मारूं स्वरूप छे; आवा निर्णयमां परनी अवस्थामां ठीक–
अठीक मानवानुं न रह्युं पण ज्ञातापणुं रह्युं, एटले ऊंधी मान्यता अने अनंतानुबंधी कषाय नाश थया. अनंत
परद्रव्यना कर्तृत्वपणानो महा मिथ्यात्वभाव टळीने पोताना ज्ञाता स्वभावनी अनंती द्रढता थई–आवो
स्वतरफनो अनंत पुरुषार्थ क्रमबद्धपर्यायनी श्रद्धामां थयो छे.
बधा द्रव्यनी अवस्था क्रमबद्ध थाय छे, हुं तेने जाणुं पण हुं कोईनुं कांई करुं नहि एवी मान्यता द्वारा
मिथ्यात्वनो नाश करीने, परथी पाछो फरी जीव स्व तरफ वळे छे. सर्वज्ञदेवना ज्ञानमां जे भास्युं तेमां फेर
पडतो नथी, बधा पदार्थोनी समये समये जे अवस्था क्रमबद्ध होय ते ज थाय छे, आवा निर्णयमां सम्यग्दर्शन
आवी गयुं. आमां कई रीते पुरुषार्थ आव्यो ते कहे छे. १–परनी अवस्था तेना क्रम प्रमाणे थया ज करे छे, हुं
परनुं करतो नथी एम नक्की कर्युं एटले बधा पर द्रव्यनुं अभिमान टळी गयुं. २–ऊंधी मान्यताथी परनी
अवस्थामां ठीक–अठीकपणुं मानीने जे अनंतानुंबंधी रागद्वेष करतो ते टळी गयो. आ रीते, क्रमबद्धपर्यायनी
श्रद्धा करतां पर द्रव्यना लक्षथी खसीने पोते पोताना रागद्वेष रहित ज्ञातास्वभावमां आव्यो एटले के पोताना
हित माटे परमां जोवानुं अटकी गयुं अने ज्ञान पोता तरफ वळ्‌युं; हवे पोताना द्रव्यमां पण एक पछी एक
अवस्था क्रमबद्ध थाय छे. हुं तो त्रणेकाळनी क्रमबद्ध अवस्थाओना पिंडरूप द्रव्य छुं, वस्तु तो ज्ञाता ज छे, एक
अवस्था जेटली वस्तु नथी; अवस्थामां राग–द्वेष थाय ते पर वस्तुना कारणे नथी पण वर्तमान अवस्थानी
नबळाईथी छे ते नबळाई उपर पण जोवानुं न रह्युं, पण पुरुषार्थथी परिपूर्ण ज्ञातास्वरूपमां ज जोवानुं रह्युं, ते
स्वरूपना लक्षे पुरुषार्थनी नबळाई अल्पकाळमां तूटी जवानी छे.
क्रमबद्धपर्याय द्रव्यमांथी आवे छे, परपदार्थमांथी आवती नथी तेमज एक पर्यायमांथी बीजी पर्याय
प्रगटती नथी तेथी पोतानी पर्याय माटे पर उपर के पर्याय उपर जोवानुं न रह्युं पण एकला ज्ञातास्वरूपमां ज
जोवानुं रह्युं; आवी जेनी दशा थई तेणे सर्वज्ञना ज्ञान प्रमाणे क्रमबद्धपर्यायनो निर्णय कर्यो छे.
प्रश्न:–सर्वज्ञ भगवाने जोयुं होय त्यारे आत्मानी रुचि थाय ने?
उत्तर:–सर्वज्ञ भगवान बधुं जाणे छे एम नक्की कोणे कर्युं? जेणे सर्वज्ञ भगवानना ज्ञान सामर्थ्यने
पोतानी पर्यायमां नक्की कर्युं छे तेनी पर्याय संसारथी अने रागथी खसीने पोताना ज्ञानस्वभाव तरफ वळी छे
त्यारे ज तेणे सर्वज्ञनो निर्णय कर्यो छे, जेनी पर्याय ज्ञानस्वभाव तरफ वळी छे तेने आत्मानी ज रुचि छे. ‘
अहो! केवळी भगवान त्रणकाळ त्रणलोकना जाणनार ज छे, तेओ पोताना ज्ञानथी बधुं जाणे छे पण कोईनुं
कांई करता नथी ’ आम जेणे यथार्थपणे नक्की कर्युं तेणे पोताना आत्माने ज्ञाता स्वभावे मान्यो अने तेने
त्रणकाळ त्रणलोकना बधा पदार्थोना कर्तृत्वपणानी बुद्धि टळी गई–एटले के अभिप्राय अपेक्षाए ते सर्वज्ञ थयो
छे. आवो, स्वभावनो अनंत पुरुषार्थ क्रमबद्धपर्यायनी श्रद्धामां आवे छे. क्रमबद्धपर्यायनी श्रद्धा ते नियतवाद
नथी, पण सम्यक पुरुषार्थवाद छे.
सामा द्रव्योनी एक पछी एक जे अवस्था थाय छे तेना कर्ता स्वयं ते ते द्रव्यो छे, पण हुं तेनो कर्ता
नथी, अने मारी अवस्था कोई पर करतुं नथी, कोई निमित्तना कारणे राग–द्वेष थतां नथी, आ रीते निमित्त
अने राग–द्वेषने जाणनार एकली ज्ञाननी अवस्था रही, ते अवस्था ज्ञातास्वरूपने जाणे, रागने जाणे अने
बधा परने पण जाणे, मात्र जाणवानुं ज ज्ञाननुं स्वरूप छे, राग थाय ते ज्ञाननुं ज्ञेय छे पण राग ते ज्ञाननुं
स्वरूप