वस्तुस्वरूप बताव्युं छे. सम्यग्द्रष्टिने हजी केवळज्ञान थयुं नथी त्यारपहेलांं पोताना केवळज्ञाननी भावना करतां
वस्तुस्वरूप विचारे छे. सर्वज्ञता थतां वस्तुस्वरूप केवुं जणाशे तेनुं चिंतवन करे छे.
न आवे तो ते पर्याय अटकी जाय–एम बनतुं नथी. ‘निमित्त न होय तो? ’ ए प्रश्न ज अज्ञानभरेलो छे,
उपादानस्वरूपनी द्रष्टिवाळाने ते प्रश्न न ऊठे; वस्तुमां पोताना क्रमथी ज्यारे अवस्था थाय त्यारे निमित्त होय
ज छे, एवो नियम छे.
चीज हाजर होय छे. परमाणुनी काळी दशाना क्रमने फेरववा कोई समर्थ नथी. तडकामां वच्चे हाथ राखतां नीचे जे
पडछायो थाय छे ते हाथना कारणे थयो नथी, पण त्यांना परमाणुनी ज ते समयनी क्रमबद्ध अवस्था काळी थई छे.
परमाणुमां बपोरना त्रण वागे काळी दशा थवानी छे एम सर्वज्ञदेवे जोयुं होय, अने हाथ मोडो आवे तो
परमाणुमां त्रण वागे काळीदशा थवी अटकी जाय ने? ना, एम बने ज नहि. परमाणुमां बराबर त्रण वागे काळी
दशा थवानी होय तो बराबर ते ज वखते हाथ वगेरे निमित्त स्वयं हाजर होय ज; सर्वज्ञदेवे त्रण वागे परमाणुनी
काळी दशा थशे एम जोयुं अने जो निमित्तना अभावने लीधे ते दशा मोडी थाय तो सर्वज्ञनुं ज्ञान खोटुं ठरे! परंतु
ते असंभव छे. जे वखते वस्तुनी जे क्रमबद्ध अवस्था थवानी होय छे ते वखते निमित्त न होय एम बने ज नहि,
निमित्त होय खरूं पण निमित्त कांई ज करे नहि. अहीं उपरमां पुद्गलनुं द्रष्टांत लीधुं, तेम हवे जीवनुं द्रष्टांत आपी
समजावे छे. कोई जीव केवळज्ञान पामवानो होय अने शरीरमां वज्रऋषभनाराचसंहनन न होय तो केवळज्ञान
अटकी जाय एवी मान्यता तद्न असत्य पराधीन द्रष्टिनी छे. जीव केवळज्ञान पामवा तैयार थयो अने शरीरमां
वज्रऋषभनाराचसंहनन न होय एम कदापि बने ज नहि. ज्यां उपादान पोते तैयार थयुं त्यां निमित्त स्वयं होय
ज. जे समये उपादान कार्यरूप परिणमे ते ज समये बीजी चीज निमित्तरूप हाजर होय, निमित्त पाछळथी आवे
एम बने नहि, जे वखते उपादाननुं काम ते ज वखते निमित्तनी हाजरी–आम होवा छतां उपादानना कार्यमां
निमित्त कांई ज मदद, असर के फेरफार करे नहि. निमित्त न होय एम न बने अने निमित्तथी कार्य थाय एम पण
न बने. चेतन के जड द्रव्यमां तेनी पोतानी जे क्रमबद्ध अवस्था ज्यारे थवानी होय छे त्यारे अनुकूळ निमित्त होय
छे. आवो जे स्वाधीनद्रष्टिनो विषय छे ते सम्यग्द्रष्टि ज जाणे छे, मिथ्याद्रष्टिओने वस्तुनी स्वतंत्रतानी प्रतीत नथी
एटले तेनी द्रष्टि निमित्त उपर जाय छे.
ते जाणे छे के जे काळे जे वस्तुनी जे पर्याय थाय छे ते तेनी क्रमबध्ध व्यवस्था छे, हुं मात्र जाणनार छुं; आम
ज्ञानीने पोताना जाणनार स्वभावनुं भान छे तेथी सर्वज्ञ भगवाने जाणेला वस्तुस्वरूपनुं चिंतवन करीने ते
पोताना ज्ञाननी भावना वधारे छे के जे काळे जेम बने तेम हुं तेनो ज्ञायक ज छुं, मारा ज्ञायक स्वरूपनी
भावना करतां करतां मारूं केवळज्ञान प्रगटवानुं छे.
पण कांई मिथ्याकल्पना के दुःखना आश्वासन माटे नथी. आवी पडेला कोई पण संयोग वियोगने आपदानुं
कारण सम्यग्द्रष्टिओ मानता ज नथी, पण ज्ञाननी अधूरी दशाना कारणे पोतानी नबळाईथी अल्प राग–द्वेष
थाय छे, ते वखते संपूर्ण ज्ञानदशा केवा प्रकारनी होय तेनुं तेओ नीचे प्रमाणे चिंतवन करे छे.