Atmadharma magazine - Ank 029
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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: फागण : २४७२ : आत्मधर्म : १०१ :
प. पू. सद्गुरुदेवश्रीनुं । “। श्री प्रवचनसारजी गाथा
प्रवचन • अरहत स जयवत वरत • ८०
जे खरेखर अर्हंतने जाणे छे ते पोताना आत्माने जाणे ज छे.
आचार्यदेव कहे छे के–शुद्धोपयोगनी प्राप्ति माटे हुं कटिबद्ध थयो छुं; जेम मल्ल कमर बांधीने लडवा ऊभो
थाय तेम हुं मारा सर्व पुरुषार्थना जोरे मोह–मल्लनो नाश करवा माटे कमर कसीने तैयार थयो छुं.
मोक्षाभिलाषी जीव पोताना पुरुषार्थवडे मोहनो नाश करवानो उपाय विचारे छे. भगवानना उपदेशमां
पुरुषार्थ करवानुं कह्युं छे. भगवान पुरुषार्थवडे मुक्ति पाम्या छे अने जे उपाय भगवाने कर्यो ते ज उपाय
बताव्यो छे, ते उपाय जो जीव करे तो ज तेनी मुक्ति थाय, एटले के पुरुषार्थवडे सत्य उपाय करवाथी ज मुक्ति
थाय पण एनी मेळे थाय नहीं.
कोई कहे के “केवळी भगवाने तो बधुं जाणवुं छे के क्यो जीव क्यारे मुक्त थशे अने क्यो जीव मुक्त नहि
थाय; तो पछी भगवान पुरुषार्थ करवानुं केम कहे?” तो एम कहेनारनी वात खोटी छे. भगवाने तो पुरुषार्थ ज
उपदेश्यो छे, भगवानना केवळज्ञाननो निर्णय पण पुरुषार्थवडे ज थाय छे. जे जीव भगवाने कहेला मोक्षमार्गनो
पुरुषार्थ करे छे तेने अन्य बधा साधन स्वयं थई जाय छे. हवेनी आ ८०–८१–८२ ए त्रण गाथामां बहु सरस
वात आवे छे. जेम माता एकना एक बाळकने “हैयानो हार” कहे तेम आ त्रण गाथाओ तो हैयानो हार छे.
मोक्षनी माळानां मोती गूंथाणा छे; त्रण गाथा तो त्रण रत्न (श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र) समान छे. तेमां पहेलां ८०
मी गाथामां मोहनो क्षय करवानो उपाय बतावे छे:–
जो जाणदि अरहंतं दव्वत्तगुणत्त पज्जयत्तेहिं।
सो जाणदि अप्पाणं मोहो खलु जादि तस्स लयं।।
८०।।
जे जाणतो अर्हंतने गुण द्रव्यने पर्ययपणे,
ते जीव जाणे आत्माने, तसु मोह पामे लय खरे. ८०.
अर्थ:– जे अर्हंतने द्रव्यपणे, गुणपणे अने पर्यायपणे जाणे छे, ते (पोताना) आत्माने जाणे छे अने
तेनो मोह अवश्य लय पामे छे.
आ गाथामां मोहनी सेनाने जीतवानो पुरुषार्थ विचारे छे. मोहने जीतवानो पुरुषार्थ कर्यो त्यां सामे
अर्हंतादि निमित्तो तैयार होय ज छे. उपादान जाग्युं त्यां निमित्त तो होय ज. काळ वगेरे निमित्त तो बधा
जीवने सदाय हाजर छे, जीव पोते जेवा प्रकारनो पुरुषार्थ करे तेमां काळने निमित कहेवाय. एक वखते कोई जीव
शुभ–भाव करी स्वर्गमां जाय तो ते जीवने माटे ते काळ स्वर्गनुं निमित्त कहेवाय, बीजो जीव ते ज वखते पाप
करी नरकमां जाय तो तेने माटे ते ज काळने नरकनुं निमित्त कहेवाय, अने कोई जीव ते ज वखते स्वरूप समजी,
स्थिरता करी मोक्ष पामे तो ते जीवने माटे ते ज काळ मोक्षनुं निमित्त कहेवाय छे. निमित्त तो सदाय छे, पण
पोते पोताना पुरुषार्थवडे अर्हंतना स्वरूपनो अने पोताना आत्मानो ज्यारे निर्णय करे छे त्यारे अवश्य क्षायक
समकित प्रगटे छे अने मोहनो क्षय थाय छे.
अर्हंत भगवानना द्रव्य, गुण, पर्यायना स्वरूपने जेणे जाण्युं ते जीव अल्पकाळमां मुक्तिने पात्र थयो
छे, अरिहंत भगवान आत्मा छे, तेमनामां अनंत गुणो छे अने तेमनी केवळज्ञानादि पर्याय छे तेनो निर्णय
कर्यो तेमां आत्माना अनंतगुणो अने पूर्ण पर्यायना सामर्थ्यनो निर्णय आवी गयो, अने ते निर्णयना जोरे
केवळज्ञान अल्पकाळमां ज छे, तेमां वच्चे संदेह पडतो नथी; अहीं आ गाथामां क्षायक समकितनो ध्वनि छे.
“जे अर्हंतने द्रव्यपणे, गुणपणे अने पर्याय पणे जाणे छे ते” आम कहेतां जाणनारना ज्ञाननुं वजन छे.
अर्हंतने जाणनार ज्ञानमां मोह क्षयनो उपाय समाडी दीधो छे. जे ज्ञाने अर्हंत भगवानना द्रव्य; गुण, पर्यायने
पोताना निर्णयमां समाव्या ते ज्ञाने भगवानथी ओछानो अने विकारनो पोतामां अभाव स्वीकार्यो–एटले के
द्रव्यथी, गुणथी अने पर्यायथी परिपूर्णतानो सदभाव निर्णयमां लीधो छे. ‘जे जाणे छे’ आमां जाणनारी तो
वर्तमान पर्याय छे. निर्णय करनारे पोतानी ज्ञानपर्यायमां पूर्ण द्रव्य–गुण–पर्यायनो अस्तिपणे निर्णय कर्यो अने
विकारनो नकार कर्यो. आवो निर्णय करनारनी पूरी पर्याय कोई परना कारणे