Atmadharma magazine - Ank 029
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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: १०२ : आत्मधर्म : फागण : २४७२ :
अटके एम बने ज नहि, केमके अर्हंत जेवा पोताना पूर्ण स्वभावनो निर्णय कर्यो छे; जेणे पूरा स्वभावनो निर्णय
कर्यो तेणे क्षेत्र, कर्म के काळना कारणे मारी पर्याय अटकी जाय एवी पुरुषार्थ हीनतानी वात उडाडी दीधी. द्रव्य–गुण–
पर्यायथी पूरा स्वभावनो निर्णय कर्यो. पछी पूरानो पुरुषार्थ ज करवानो रह्यो, पण क्यांय अटकवानुं न रह्युं.
आ मोहक्षयना उपायनी वात छे. पोताना ज्ञानमां जेणे अरिहंतना द्रव्य–गुण–पर्यायने जाण्यां तेना
ज्ञानमां केवळज्ञाननो हारडो ज गूंथाशे–तेनी पर्याय केवळज्ञान तरफनी ज थवानी.
पोतानी पर्यायमां जेणे अर्हंतना द्रव्य गुण पर्यायने जाण्यां तेणे पोताना आत्माने जाण्यो अने तेनो
मोह क्षय पामे ज छे–केटली खूबीथी वात करी छे. वर्तमानमां आ क्षेत्रे क्षायक समकीत नथी छतां ‘मोह क्षय
पामे छे’ एम कहेवामां अंतरनुं एटलुं जोर छे के जेणे आ वातनो निर्णय कर्यो तेने वर्तमान भले क्षायक
समकीत न होय तो पण तेनुं समकीत एटलुं जोरदार अप्रतिहत छे के तेमां क्षायकदशा थतां सुधी वच्चे भंग
पडवानो ज नथी. सर्वज्ञ भगवाननो आश्रय लईने कुंद–कुंदाचार्यदेव कहे छे के जे जीव द्रव्य–गुण–पर्यायवडे
अर्हंतना स्वरूपनो निर्णय करे छे ते पोताना आत्माने पण तेवो ज जाणे छे अने ते जीव क्षायकसमकीतना ज
रस्ते छे; अधूरी के ढीली वात अमे करता नथी.
पंचमकाळना मुनिराज आ वात करे छे अने पंचमकाळना जीवोने माटे मोहक्षयनो उपाय आमां
बताव्यो छे. बधा जीवोने माटे एक ज उपाय छे, पंचमकाळना जीवने माटे कोई जुदो उपाय नथी. जीव तो बधा
काळे पूरेपूरो ज छे, तो पछी तेने कोण रोकी शके? कोई रोकतुं नथी. भरतक्षेत्र के पंचमकाळ ए कोई जीवने
पुरुषार्थ करता रोकता नथी. कोण कहे छे के पंचमकाळे भरतक्षेत्रथी मुक्ति नथी? अत्यारे पण
महाविदेहक्षेत्रमांथी ध्यानस्थ मुनिने उपाडीने कोई भरतक्षेत्रमां मूकी जाय तो, पंचम काळ अने भरतक्षेत्र होवा
छतां पण, ते मुनि पुरुषार्थ वडे क्षपकश्रेणी मांडीने केवळज्ञान अने मुक्ति पामे छे; माटे ए सिद्ध थयुं के काळ के
क्षेत्रना कारणे मोक्ष अटकतो नथी. पंचमकाळे भरतक्षेत्रे जन्मेलो जीव ते भवे मोक्ष पामतो नथी तेनुं कारण
काळ के क्षेत्र नथी परंतु ते जीव पोते ज पोतानी योग्यताना कारणे मंद पुरुषार्थी छे तेथी बहारमां पण तेवां ज
निमित्तो छे. जो जीव पोते तीव्र पुरुषार्थ करी मोक्ष पामवा लायक होय तो तेने बहारमां पण क्षेत्र वगेरे अनुकूळ
निमित्तो होय ज. एटले काळ के क्षेत्र उपर जोवानुं न रह्युं पण पुरुषार्थ उपर जोवानुं रह्युं. पुरुषार्थ अनुसार
धर्म छे, काळ के क्षेत्र अनुसार धर्म नथी.
जे अरिहंतने जाणे छे ते पोताना आत्माने जाणे छे एटले के जेवा द्रव्य–गुण–पर्याय स्वरूपे अरिहंत छे
तेवा ज स्वरूपे हुं छुं, जेवडा अरिहंतना द्रव्य–गुण–पर्याय छे तेवडा ज मारा द्रव्य–गुण–पर्याय छे, अरिहंतनुं
पर्याय सामर्थ्य पूरेपूरुं छे तेम मारी पर्यायनुं सामर्थ्य पण पूरेपूरुं ज छे, वर्तमानमां ते सामर्थ्यने रोकनार जे
विकार छे ते मारुं स्वरूप नथी आम जे जाणे छे तेनो मोह ‘
खलु जादि लयं’ अर्थात् चोक्कस क्षय पामे छे; आ
ज मोह क्षयनो उपाय छे.
० – •– – टीका – •– – ०
“जे खरेखर अर्हंतने द्रव्यपणे, गुणपणे अने पर्यायपणे जाणे छे ते खरेखर आत्माने जाणे छे, कारण के
बंनेमां निश्चयथी तफावत नथी;” अहीं ‘खरेखर जाणवानी’ वात करी छे. मात्र धारणा तरीके अरिहंतने जाणे
तेनी वात अहीं गणी नथी केमके ते तो शुभराग छे, जगतनी लौकिक विद्या जेवुं ते छे, तेमां आत्मानी विद्या
नथी. खरेखर जाण्युं क्यारे कहेवाय? के अरिहंत प्रभुना द्रव्यगुण पर्याय साथे पोताना आत्माना द्रव्य–
गुणपर्यायने मेळवे के जेवो अरिहंतनो स्वभाव तेवो मारो स्वभाव छे–आवा निर्णयपूर्वक जाणे तो खरेखर
जाण्युं कहेवाय; ए रीते जे खरेखर अर्हंतने द्रव्य गुण पर्याय स्वरूपे जाणे छे ते खरेखर पोताना आत्माने जाणे
छे अने तेने सम्यग्दर्शन थाय छे.
अरिहंत भगवानने जाणवामां सम्यग्दर्शन आवी जाय छे. स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षामां कह्युं छे के णादं
जिणेण णियदं... ...” एमां एवो आशय छे के जिनेन्द्र देवे जे जाण्युं तेमां कंई फरे नहि. आटलुं जाणतां
अरिहंतना केवळज्ञाननो निर्णय पोतामां आवी गयो–ते यथार्थ निर्णय सम्यग्दर्शननुं कारण थाय छे. सर्वज्ञदेवे
जेम जाण्युं छे तेम ज थाय–आ निर्णयमां जिनदेवना अने पोताना केवळज्ञान सामर्थ्यनी प्रतीत आवी गई.
अरिहंत जेवो ज पोतानो परिपूर्ण