: १०४ : आत्मधर्म : फागण : २४७२ :
गुरु–शास्त्रने यथार्थ ओळखे तो तेने पोताना आत्मानी ओळखाण थाय ज अने तेनो दर्शनमोह क्षय पामे ज.
अहीं ‘जे द्रव्यगुण पर्यायपणे अर्हंतने जाणे छे तेने....’ एम कह्युं पण सिद्धने जाणवानुं केम न कह्युं?
तेनुं कारण ए छे के अहीं शुद्धोपयोगनो अधिकार चाले छे, शुद्धोपयोगथी पहेलांं अरिहंतपद प्रगटे छे तेथी अहीं
अरिहंतने जाणवानी वात लीधी छे. वळी जाणवामां निमित्तरूप सिद्ध न थाय पण अरिहंत निमित्तरूप थाय,
तेम ज पुरुषार्थनी जागृतिथी अरिहंत दशा प्रगटी गया पछी अघाति कर्मो टाळवा माटे पुरुषार्थ नथी एटले के
प्रयत्नथी केवळज्ञान–अरिहंतदशा पमाय छे तेथी अहीं अरिहंतनी वात करे छे. खरेखर तो अरिहंतनुं स्वरूप
जाणतां सर्वे सिद्धभगवाननुं स्वरूप पण तेमां आवी ज जाय छे.
अरिहंतना द्रव्य–गुण–पर्याय जेवुं ज पोताना आत्मानुं स्वरूप जाणीने, शुद्धोपयोगनी हारमाळा वडे
जीव अरिहंतपद पामे छे. जे अरिहंतना द्रव्य–गुण पर्याय स्वरूपने जाणे छे तेनो मोह नाश पामे ज छे. अहीं
‘जो जाणदि’ एटले के ‘जे जाणे छे’ –एम कहीने ज्ञाननो पुरुषार्थ सिद्ध कर्यो छे, जेओ ज्ञानवडे जाणे छे तेनो
मोह क्षय पामे छे; पण जेओ ज्ञानवडे जाणता नथी तेनो मोह क्षय पामतो नथी.
आमां एम कह्युं के जे अरिहंतने द्रव्यपणे गुणपणे अने पर्यायपणे जाणे छे ते पोताना आत्माने जाणे छे
अने तेनो मोह क्षय पामे ज छे.
अरिहंतने द्रव्य–गुण पर्यायपणे कई रीते जाणवा अने मोह कई रीते नाश पामे छे ते हवे पछी कहेवाशे.
(प्रवचनसारजी गाथा–८० टीका.) –चालु
ज्ञान गोष्टि
१. प्रश्न–जीव अने द्रव्यमां शुं फेर?
उत्तर:– जीव कहेतां एकलुं जीवद्रव्य ख्यालमां आवे छे अने द्रव्य कहेतां छए द्रव्यो ख्यालमां आवे छे.
२. प्र. –मोक्ष सुख क्यां होय? अहीं ते भोगवी शकाय के नहि?
उ–मोक्ष सुख आत्मानी शुद्ध पर्यायमां होय छे अने आत्मामां ते भोगवी शकाय छे; मोक्षसुखनो संबंध
बहारना क्षेत्र साथे नथी.
३. प्र–प्रतिजीवी गुण अने अनुजीवी गुण एटले शुं?
उ–वस्तुनो जे गुण बीजाना अभावनी अपेक्षा राखे तेने अर्थात् अभावस्वरूप गुणने प्रतिजीवी गुण कहे छे
अने जे गुण बीजानी अपेक्षा न राखे तेने अर्थात् भावस्वरूप गुणने अनुजीवी गुण कहे छे.
४. प्र–एकेन्द्रिय अने निगोदमां शुं फेर? तमने बेमांथी कयुं गमे?
उ–निगोदना बधा जीवोने एकेन्द्रिय कहेवाय पण बधा एकेन्द्रियने निगोद न कहेवाय. आ बेमांथी एकेय सारूं नथी.
प. प्र–छ द्रव्योमांथी खंड द्रव्य केटलां छे?
उ–छए द्रव्यो पोताना स्वरूपे अखंड छे, अने परथी जुदां छे. परमाणुना स्कंधने खंडरूप कही शकाय, केमके ते
स्कंधमांथी परमाणुओ छूटा पडी जाय छे.
६. प्र–रूपी, अरूपी, मूतिक अने अमूर्तिक एमांथी जीवने कया कया विशेषणो लागु पडे छे?
उ–जीव अरूपी अने अमूर्तिक छे. जड वस्तुनुं रूप जीवमां नथी तेथी अरूपी कहेवाय छे पण पोताना ज्ञान
वगेरेनी अपेक्षाए तो ते स्वरूपी छे, जीवमां पोतानुं रूप छे, ज्ञान, दर्शन वगेरे जीवनुं स्वरूप छे.
७. प्र. बाह्यक्रिया अने अभ्यंतर क्रिया एटले शुं?
उ–खरेखर ज्ञाननी शुद्ध पर्याय ते आत्मानी अभ्यंतर क्रिया छे अने राग ते बाह्य क्रिया छे, अने उपचारथी
राग ते अभ्यंतर क्रिया तथा शरीरादिनी क्रिया ते बाह्य क्रिया छे.
८. प्र–चैतन्यनी क्रिया शेमां होय अने शेमां न होय?
उ–चैतन्यनी क्रिया चैतन्यमां होय अने चैतन्यनी क्रिया जडमां न होय.
९. प्र–धर्मद्रव्य एटले शुं?
उ–जे द्रव्य गति करतां जीव अने पुद्गलने उदासीन निमित्त छे तेने धर्मद्रव्य कहे छे.
१०. प्र–माछलीने गति करवामां पाणी निमित्त थाय छे तो पाणी धर्मद्रव्य छे के नहि?
उ–पाणी धर्मद्रव्य नथी, केमके पाणी तो रूपी वस्तु छे, रूपीपणुं ते पुद्गलनो गुण छे माटे पाणी ते पुद्गलनी
दशा छे.
११. प्र–पुद्गल द्रव्य कया गुणवडे जाणे अने कया गुणवडे जणाय?
उ–पुद्गल द्रव्य जड छे तेथी तेनामां जाणवानी शक्ति ज नथी, तेना ‘प्रमेयत्व’ गुणने लीधे ते जीवना ज्ञानमां
जणाय छे.