• िवश्वदशर्न • द्रद्रव्य – गुण – पयार्य •
द्रव्य–गुण–पर्यायमां समस्त विश्वना पदार्थोनुं स्वरूप आवी जाय छे. द्रव्य–गुण–पर्याय ते जैनदर्शननो एकडो छे.
‘द्रव्य’ एटले सदाय एक सरखी रीते टकी रहेनार वस्तु ते द्रव्य छे. गुण एटले द्रव्यनुं विशेषण, अथवा तो द्रव्यना पूरा
भागमां अने तेनी बधी दशामां जे शक्ति रहेली होय तेने गुण कहेवाय छे; अने द्रव्य–गुणनी क्षणे क्षणे बदलती हालत–दशा ते
पर्याय छे. विश्वनी कोई पण चीज कां तो द्रव्य होय, कां तो गुण होय अने कां तो पर्याय होय, आ त्रणमांथी ज एक अवश्य
होय, आ त्रणथी बहार एवुं आ विश्वमां कांई ज नथी. तेथी द्रव्य–गुण–पर्यायनी ओळखाणमां आखा विश्वनी ओळखाण
समाई जाय छे. द्रव्य–गुण–पर्यायनी ओळखाण माटे अहीं केटलाक बोलनी व्याख्या आपवामां आवे छे.
१ जीव (आत्मा) :– द्रव्य छे, ज्ञान वडे ते ओळखाय छे.
२ शरीर:– पर्याय छे; ‘अनंत पुद्गल परमाणु भेगा मळीने ते पर्याय थयेली छे.
३ ताव (मांदगी) :– पर्याय छे, पुद्गल द्रव्यना स्पर्श गुणनी उष्ण पर्याय छे.
४ सिद्ध:– पर्याय छे, जीव द्रव्यनी संपूर्ण शुद्ध पर्याय छे.
५ दया:– पर्याय छे; जीव द्रव्यना चारित्र गुणनी मलिन पर्याय छे.
६ धर्म:– पर्याय छे; जीव द्रव्यनी शुद्ध पर्याय छे.
७ पुण्य–पाप:– पर्याय छे; जीव द्रव्यना चारित्र गुणनी मलिन पर्याय छे.
८ दुःख:– पर्याय छे; जीव द्रव्यना सुखगुणनी मलिन पर्याय छे.
९ उपवास:– पर्याय छे; जीव द्रव्यना चारित्र गुणनी शुद्धदशा छे. जीव द्रव्यनी ओळखाण करीने तेमां एकाग्रता करवी
ते ज निश्चय उपवास छे. (अन्ननो त्याग थवो ते जड द्रव्यनी पर्याय छे.) आत्माना भान सहित आहार संबंधी रागनो
घटाडो ते शुभराग छे तेने व्यवहारथी उपवास कहेवामां आवे छे. ते चारित्रनी विकारी दशा छे.
१० भक्ति–पूजा:– पर्याय छे; जीव द्रव्यना चारित्र गुणनी रागवाळी मलिन पर्याय छे. (शरीरनी हलनचलनादि क्रिया
के शब्दो ते जड द्रव्यनी पर्याय छे.)
११ दान:– पर्याय छे; जीव द्रव्यना चारित्र गुणनी रागवाळी मलिन पर्याय छे. (पैसानुं जवुं ते जड द्रव्यनी पर्याय छे.)
१२ कर्म:– पर्याय छे; पुद्गल द्रव्यनी पर्याय छे.
१३ केवळज्ञान:– पर्याय छे; जीव द्रव्यना ज्ञानगुणनी शुद्ध पर्याय छे.
१४ मोक्ष:– पर्याय छे; जीव द्रव्यना बधा गुणनी शुद्ध पर्याय तो मोक्ष छे.
१५ संसार–पर्याय छे; जीव द्रव्यना गुणोनी अशुद्ध पर्याय ते संसार छे.
१६ चारित्रदशा:– पर्याय छे; जीव द्रव्यना चारित्र गुणनी शुद्ध पर्याय छे. (चारित्रपर्याय शरीरमां रहेती नथी पण
आत्मामां रहे छे).
१७ श्रावक:– पर्याय छे; जीव द्रव्यनी अंशे शुद्ध पर्याय छे. ज्यारे आत्मानी ओळखाण वडे सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान करे
छे अने पछी केटलोक राग टाळे छे त्यारे श्रावकदशा कहेवाय छे. सम्यग्दर्शन वगर श्रावक दशा होती नथी.
१८ दोडवुं–बेसवुं–चालवुं–पर्याय छे; पुद्गल द्रव्यमां गमन करवानी शक्ति (गुण) छे तेनी पर्याय छे. (पुद्गलनी
पर्याय जीवमां थती नथी.)
१९ मिथ्यात्व:– पर्याय छे; जीव द्रव्यना श्रद्धा गुणनी ऊंधी पर्याय छे. आ मिथ्यात्वदशा ज जीवने घोर संसार दुःखनुं
कारण छे अने महापाप छे.
२० सम्यक्त्व:– पर्याय छे; जीव द्रव्यना श्रद्धागुणनी सवळी पर्याय छे; आ सम्यक्त्व ज जीवने अल्पकाळमां मोक्षनुं
कारण छे.
२१ स्वतंत्रता:– पर्याय छे; जीवना पोताना गुणनी पूरेपूरी खीलवट (शुद्धदशा) ते स्वतंत्रता छे; स्वतंत्रतारूप पर्याय
जीवमां थाय छे. आ स्वतंत्रतारूप दशा ते सुख छे.
२२ पराधीनता:– पर्याय छे; जीवना पोताना गुणनो विकास पर लक्षे अटकवो (अशुद्ध दशा) ते पराधीनता छे.
पराधीनतारूप दशा ते दुःख छे. पराधीनतारूप दशा जीवमां थाय छे.
२३ ज्ञान:– जीव द्रव्यनो गुण छे.
२४ रूप–रंग–रस:– पुद्गल द्रव्यना गुण छे.
२५ जैन–पर्याय छे; जीवद्रव्यना श्रद्धा, ज्ञान अने चारित्र गुणनी शुद्ध पर्यायने ‘जैन’ तरीके ओळखावाय छे; जे
जीवने सम्यक्श्रद्धा न होय ते ‘जैन’ नथी.
मुद्रक:– चुनीलाल माणेकचंद रवाणी, शिष्ट साहित्य मुद्रणालय, दासकुंज, मोटा आंकडिया, काठियावाड.
प्रकाशक:– जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट सोनगढ वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, मोटा आंकडिया ता. २–३–४६