: फागण : २४७२ : आत्मधर्म : ९५ :
शाश्वत सुखनो मार्ग दर्शावतुं मासिक
वर्ष: ३ फागण
अंक: ५ २४७२
‘त समज’
“भाई, तुं समज” आ एक वाक्यमांथी तो आखा जैनशासननी सिद्धि थई जाय छे. ‘तुं समज’ ए
वाक्यमांथी नीचे प्रमाणे सिद्धि थई जाय छे:–
(१) ‘तुं समज’ एम कहेता कोईक समजनार छे, आ शरीर तो जड छे ते कांई समजनार नथी पण
शरीरथी जुदुं कोईक तत्त्व छे के जेमां समजवानी ताकात छे, समजवानी ताकातवाळुं जडथी जुदुं तत्त्व ते आत्मा
छे–एम सिद्ध थयुं.
(२) समजनार आत्मा छे पण पहेलांं ते समज्यो न हतो अने हवे समजवा तैयार थयो छे तेने
समजवानुं कहेवाय छे. एटले अणसमजणरूप दशा बदलावीने साची समजणरूप दशा थई शके छे अने
समजनारो बंने वखते कायम रहे छे. आमां वस्तुनुं बदलवापणुं (उत्पाद–व्यय) सिद्ध थयुं, अने बदलवा छतां
समजनार वस्तु तो तेने ते ज टकी रहे छे एम (धु्रव) पण आव्युं.
(३) साची समजण करवानी ताकात आत्मामां छे तेथी गमे त्यारे ते समजण करी शके छे. ‘तुं समज’
एम कह्युं छे एटले समजवानी महेनत (पुरुषार्थ) पोते ज करे छे, कोई बीजानी तेमां मदद नथी एम
पुरुषार्थनी स्वतंत्रता सिद्ध थई.
(४) ‘तुं समज’ एम कहेनार सामा जीवनो आशय ख्यालमां लेनार पोते ज्ञानस्वरूप छे, अने ज्ञान
वडे ज पोते समजी शके छे–एम ज्ञान स्वरूप नक्की कर्युं.
(५) समजनार तत्त्वनी हैयाति छे एटले के समजनार तत्त्वमां सदा टकी रहेवानी ताकात (अस्तित्व
गुण) छे एम नक्की थयुं.
(६) समजनार तत्त्व पोतामां पोतानी समजणरूप क्रिया करी शके छे एटले के समजनार वस्तुमां
पोतानी प्रयोजनभूत क्रिया करवानी ताकात (वस्तुत्त्वगुण) छे–एम नक्की थयुं.
(७) जगतमां केटलाक जीवो समजेला छे अने केटलाक अणसमजेला पण छे, पोते अणसमजण टाळी
समजण करे छे एटले बीजा जीवोथी पोतानुं परिणमन जुदुं छे अर्थात् द्रव्यत्वगुण छे एम नक्की थयुं.
(८) ‘तुं समज’ एम कहेनार जीव समजनारमां समजवानी ताकात छे एम जाणीने कहे छे–एटले के
समजनार तत्त्वमां बीजाना ज्ञानमां जणावारूप शक्ति (प्रमेयत्वगुण) छे एम नक्की थयुं.
(९) ‘तुं समज’ एम कहेतां अणसमजण टाळवानुं कह्युं, अणसमजण क्षणिक छे अने ते आत्मानुं
स्वरूप नथी माटे ते टळी शके छे, अने समजण ते पोतानो स्वभाव छे, आ रीते अणसमजण ते विकार छे तेनुं
क्षणिकपणुं अने आत्माना स्वभावनुं तेनाथी जुदापणुं बताव्युं, आमां आत्मानुं परिणमन पण सिद्ध थई गयुं.
(१०) जीवने दुःख छे ते दुःख टाळवा माटे ज समजवानुं कह्युं छे. एटले एम नक्की थाय छे के जीवने
कोई बीजी वस्तुना कारणे दुःख नथी, पण पोतानी ज अणसमजणना कारणे दुःख छे अने ते दुःख टाळवामां
कोई बीजी वस्तुनी मदद नथी पण पोतानी समजणथी ज ते दुःख टळे छे.
(११) अणसमजण ते आत्मानो स्वभाव नथी पण विकार छे अने विकारमां पर वस्तुनुं निमित्त छे,
केमके चेतन वस्तु ज्यारे पोतानुं लक्ष चूकीने पोताथी विरुद्ध जातनी कोई वस्तु उपर लक्ष करीने त्यां अटक्यो छे
त्यारे तेने समजवानुं कहेवाय छे–जो जीव पोतामां ज लक्ष करीने टकी रह्यो होत तो ‘तुं सहज’ एम तेने कहेवानी
जरूर न पडत, परंतु तेनुं लक्ष चेतनपणाथी रहित एवी वस्तु उपर छे अने ते वस्तु जड छे. –पुद्गल छे–आ रीते
पुद्गलनी हैयाति पण सिद्ध थई जाय छे. जो पुद्गलनी हैयाति न होय तो एकला चेतनना लक्षे भूल थाय नहि.
(१२) जे समजनार वस्तु छे तेनामां समजण शक्ति पूरेपूरी ज होय, अने वस्तुमां जे शक्ति होय ते
कोईकने संपूर्णपणे अवश्य प्रगट होय ज. एटले जेमणे पूरेपूरी समजण शक्ति प्रगट करी छे तेवा सवर्ज्ञदेव छे,
एम नक्की थयुं.
(१३) पोताने ‘तुं समज’ एम जे कहे छे ते कहेनार (सामी व्यक्ति) ए समजण करी छे पण हजी
पूर्णदशा तेने प्रगटी नथी, केमके जो तेमने पूर्ण दशा होत तो ‘तुं समज’ एम कहेवानो विकल्प तेमने न होत,
माटे पूर्णदशा प्रगट थतां पहेलांं पण साची समजण होय छे एटले के साधक जीवो होय छे–एम सिद्ध थयुं.