Atmadharma magazine - Ank 029
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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: फागण : २४७२ : आत्मधर्म : ९९ :
मंद कषाय ते आत्माना कल्याणनुं साधन नथी
ता. १९–२–४६ माह वद–३ ना रोज लींबडीना भाईश्री वाडीलाल पानाचंद शेठ [उ. व. ४२] तथा तेमनां
धर्मपत्नी समरतबेन [उ. व. ४०] तेमणे सजोडे पू. सद्गुरुदेव पासे आजीवन ब्रह्मचर्य अंगीकार कर्युं छे.

प्रश्न:– शुभभावथी आत्माने लाभ केम न थाय? आत्मा शुभभाव करे त्यारे कषाय पातळो पडे अने
कषाय पातळो पडवाथी आत्माना स्वभावने विध्न ओछुं थाय, तेथी शुभराग वडे आत्माने लाभ थाय ने?
उत्तर:– ना, ना. शुभरागवडे आत्माने लाभ थतो नथी. जेने आत्माना शुद्ध स्वभावनुं लक्ष नथी तेनुं
लक्ष राग उपर छे अने तेथी तेना अभिप्रायनुं जोर कषाय उपर ज रहे छे. कषायना ज अभिप्रायपूर्वक
अशुभराग छोडीने शुभ राग कर्यो छे, ते शुभरागमां वर्तमान पूरतो अशुभराग ओछो थयो तेटलुं वीर्य छे
खरूं–परंतु–मंदकषायथी लाभ थाय एवा अभिप्रायपूर्वक मंद थयेलो कषाय ते आत्माने लाभनुं किंचित कारण
नथी. कषायने लाभनुं साधन मानवाथी अज्ञानी जीव उलटो आखा स्वभावने विपरीत पणे मानीने
मिथ्यात्वरूपी महा नुकशान करे छे. मंद कषायने अकषाय स्वभावनुं साधन मानवुं ते ज अनंतो कषाय छे अने
ते ज आत्माना स्वभावने महा विध्न करीने अनंत संसारमां रखडावनार छे.
पर अपेक्षाए कषाय मंद पड्यो छे तेथी बहारना संयोगमां फेर पडशे परंतु स्व अपेक्षाए तो एवो ने
एवो कषाय छे, मंद कषायथी जेणे लाभ मान्यो छे तेने पोताना स्वभाव उपर पूरेपूरो कषाय छे. पोताना कषाय
रहित स्वभावना भान वगर घणो शुभराग करी मंद कषाय करीने नवमी ग्रैवेयके जाय तोपण तेने स्वभावनुं
साधन अंशमात्र नथी. अने साचुं ज्ञान करतां ते ज क्षणे अनंत कषाय टळी जाय छे ते ज स्वभावनुं साधन छे.
अज्ञानी घणो शुभराग करे तोपण ते वखते ते अनंत कषायी छे केमके रागवडे लाभ मानीने पोताना
स्वभावने ते क्षणे क्षणे हणी रह्यो छे.
ज्ञानीने अशुभराग थाय तोपण ते अल्प कषायी छे केमके कषायने ते पोतानुं स्वरूप मानता नथी तेथी
कषाय रहित पोताना स्वरूपनी तेओ हिंसा करता नथी. माटे सिद्ध थाय छे के–
शुभराग ते स्वभावनुं साधन नथी, पण रागरहित पोताना आत्मानी साची समजण ते ज स्वभावनुं
साधन छे. अने कषाय टाळवानो उपाय ज्ञान ज छे. (२४७२ मागशर सुद १०–समयसार)
सच समजण
सौथी पहेलांं कुदेव–कुगुरु–कुशास्त्रनी मान्यता छोडीने साचा देव–गुरु–शास्त्रने ओळखवा जोईए, तेम
करवाथी तीव्र मिथ्यात्व छूटे छे; साचा देव–गुरु–शास्त्रने मानवाथी मिथ्यात्वनी मंदता थाय पण अभाव न
थाय; तेमज साचा देव–गुरु–शास्त्रने मानवाथी अशुभ भाव टळीने शुभ भाव वधे, परंतु ए तो बंधभावमां
तफावत पड्यो, अशुभ अने शुभ बंने बंधभाव ज छे, एक प्रकारनो बंधभाव बदलावीने बीजा प्रकारना
बंधभावमां आव्यो, परंतु आत्माना भान वगर बंधभावथी छूटीने मुक्ति मार्गमां प्रवेश थतो नथी. साचा
देव–गुरु–शास्त्रनुं लक्ष ते अशुभबंधने रोके छे पण शुभबंधने रोकी शकतुं नथी. अने कुदेव–कुगुरु–कुशास्त्रनी
मान्यता तो अशुभबंधने पण रोकवा समर्थ नथी. अबंध आत्मस्वभावना भान वडे अशुभबंध अने शुभबंध
बंनेने रोकी शकाय छे.
प्रश्न:– अशुभ तो बंधन ज छे अने शुभ पण बंधन ज छे तो पछी साचा देव–गुरु–शास्त्रनुं लक्ष करी
शुभराग शा माटे करवो?
उत्तर–भाई! शुभराग पण करवा जेवो तो नथी ज, जो तने शुभ अशुभ भाव रहितना आत्माना
स्वभावनी ओळखाण होय अने स्वभावमां टकी रहेवानो पुरुषार्थ होय तो आ ज क्षणे शुभने पण छोडीने शुद्धात्म
उपयोगमां स्थिर थवुं योग्य छे. शुभ–अशुभ राग रहित स्वभावनी ओळखाण होय पण तेमां स्थिरता वडे
शुद्धउपयोग न थई शके तो ज्ञानीने पण अशुभ भावथी बचवा माटे शुभराग थाय. अशुभ राग करतां तो शुभ
राग ठीक छे परंतु शुभराग पण बंधन ज छे तेनाथी पण आत्माने किंचित् धर्म नथी; आम प्रथम समजवुं जोईए.
ज्ञानीओ ‘पुण्यथी धर्म न थाय’ एम समजावे छे, परंतु तरत ज पुण्य छोडी देवानुं कहेता नथी. नीचली
दशामां पुण्यभाव होय खरो पण तेनाथी धर्म नथी एम समजवुं जोईए. ‘पुण्यथी धर्म नथी’ एम मानवाथी
पुण्य घटी जतां नथी पण सत्ना लक्षे ऊंचा