Atmadharma magazine - Ank 030
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४७२ : आत्मधर्म : ११७ :
आ गाथामां सम्यक्त्व केम थाय तेनी वात करी छे. भगवान अरिहंतने पाप नथी अने पुण्य पण
जराय नथी, तेओ पुण्य–पाप रहित छे, तेमना ज्ञान, दर्शन, सुखमां उणप नथी–तेम मारा स्वरूपमां पण पुण्य–
पाप के उणप नथी–आम प्रतीत करतां द्रव्यद्रष्टि थई. अपूर्णत मारुं स्वरूप नहि एटले हवे अधूरी अवस्था
तरफ जोवानुं न रह्युं पण पूरी शुद्धदशा प्रगट करवा माटे स्वभावमां ज एकाग्रता करवानुं रह्युं. शुं शुद्धदशा
बहारथी प्रगटे छे के स्वभावमांथी प्रगटे छे? स्वभावमांथी प्रगटती अवस्था प्रगट करवा माटे स्वभावमां ज
एकाग्रता करवानी छे. आटलुं जाणतां कोई पण बीजा पदार्थनी मददथी मारूं कार्य थाय ए मान्यता टळी गई,
अने वर्तमान पर्यायमां अधूराश छे ते स्वभावनी एकाग्रताना पुरुषार्थ वडे पूर्ण करवानुं रह्युं, एटले के एकला
ज्ञानमां ज क्रिया करवानुं रह्युं. आमां पर्याये पर्याये सम्यक् पुरुषार्थनुं ज कार्य छे.
कोईने एम शंका थाय के अत्यारे तो अरिहंत नथी तो पछी अरिहंतने जाणवानी वात केम करी? तो
तेनुं समाधान करे छे. अहीं अरिहंतनी हाजरीनी वात करी नथी पण अरिहंतनुं स्वरूप जाणवानी वात करी छे,
अरिहंतनी साक्षात् हाजरी होय तो ज तेनुं स्वरूप जाणी शकाय–एम नथी. अमुक क्षेत्र अपेक्षाए अत्यारे अर्हंत
नथी पण तेमनुं होवापणुं अन्यत्र–महाविदेहक्षेत्र वगेरेमां तो अत्यारे पण छे. अरिहंतप्रभु सामे साक्षात्
बिराजता होय त्यारे पण तेमनुं स्वरूप तो ज्ञानद्वारा ज नक्की थाय छे, त्यां अरिहंत तो आत्मा छे तेमना
द्रव्य–गुण के पर्याय नजरे तो देखाता नथी छतां ज्ञानद्वारा तेमना स्वरूपनो निर्णय थई शके छे, तोपछी तेओ
दूर होय त्यारे पण ज्ञानद्वारा तेमनो निर्णय अवश्य थई शके छे. साक्षात् बिराजता होय त्यारे पण अरिहंतनुं
शरीर देखाय छे, शुं शरीर ते अरिहंतना द्रव्य–गुण–पर्याय छे? के शुं दिव्यवाणी ते अरिहंतना द्रव्य–गुण–पर्याय
छे? ना, ए बधुं तो आत्माथी जुदुं छे. चैतन्यस्वरूप आत्मा द्रव्य, तेना ज्ञान–दर्शनादि गुणो अने तेनी
केवळज्ञानादि पर्याय ते अरहिंत छे, ते द्रव्य–गुण–पर्यायने यथार्थपणे ओळखे तो अरिहंतनुं स्वरूप जाण्युं
कहेवाय. साक्षात् अरिहंत प्रभुनी सामे बेसीने स्तवन करे परंतु तेमना द्रव्य–गुण पर्यायनुं स्वरूप न समजे तो
तेणे अरिहंतनी स्तुति करी नथी.
क्षेत्रथी नजीक अरिहंतनी हाजरी होय के न पण होय तेनी साथे संबंध नथी पण पोताना ज्ञानमां
तेमना स्वरूपनो निर्णय छे के नहि तेनी साथे संबंध छे. क्षेत्रथी नजीक अरिहंत प्रभु बिराजता होय परंतु ते
वखते जो ज्ञान वडे पोते तेमना स्वरूपनो निर्णय न करे तो ते जीवने आत्मा जणाय नहि अने तेना माटे तो
अरिहंत प्रभु घणा दुर छे. अने अत्यारे क्षेत्रथी नजीक अरिहंत प्रभु न होवा छतां पण जो पोताना ज्ञानवडे
अत्यारे पण अरिहंत प्रभुना स्वरूपनो निर्णय करे तो आत्मानी ओळखाण थाय अने तेना माटे अरिहंत प्रभु
नजीक हाजराहजुर छे. क्षेत्र अपेक्षाए वात नथी पण भाव अपेक्षाए वात छे. साची समजणनो संबंध तो
भाव साथे छे.
अरिहंत क्यारे छे अने अरिहंत क्यारे नथी–ते कह्युं. महाविदेहक्षेत्रमां अथवा तो भरतक्षे्रत्रमां चोथा
काळे साक्षात् अरिहंत वखते पण जे आत्माओए द्रव्य–गुण–पर्यायपणे अरिहंतना स्वरूपनो खरो निर्णय
पोताना ज्ञानमां न कर्यो ते जीवोने माटे तो ते वखते पण अरिहंतनी हाजरी नथी, अने भरतक्षेत्रमां पंचमकाळे
साक्षात् अरिहंतनी गेरहाजरीमां पण जे आत्माओए द्रव्य–गुण पर्यायपणे अरिहंतना स्वरूपनो खरो निर्णय
पोताना ज्ञानमां कर्यो तेओने माटे तो अरिहंतप्रभु साक्षात् मौजुद बिराजे छे.
समवसरणमां पण जे जीवो अरिहंतना स्वरूपनो निर्णय करीने आत्मस्वरूप समज्या ते जीवोने माटे ज
अरिहंतप्रभु निमित्त कहेवाणां, पण जेओए निर्णय न कर्यो तेमने माटे तो साक्षात् अरिहंतप्रभु निमित्त पण
कहेवाया नहीं. अत्यारे पण जे अरिहंतनो निर्णय करीने आत्मस्वरूप समजे तेने तेना ज्ञानमां अरिहंतप्रभु
निमित्त कहेवाय छे.
जेनी द्रष्टि निमित्त उपर छे ते क्षेत्रने जुए छे के अत्यारे आ क्षेत्रे अरिहंत नथी; भाई रे! अरिहंत नथी
परंतु अरिहंतने नक्की करनारूं तारूं ज्ञान तो छे ने? जेनी द्रष्टि उपादान उपर छे ते पोताना ज्ञानना जोरे
अरिहंतनो निर्णय करीने क्षेत्रभेद काढी नांखे छे. अरिहंत तो निमित्त छे, अहीं अरिहंतनो निर्णय करनार
ज्ञाननो महिमा छे. मूळ सूत्रमां “
जो जाणदि” एम कह्युं छे एटले जाणनारूं ज्ञान ते मोहक्षयनुं कारण छे परंतु
अरिहंत तो जुदा छे तेओ आ आत्मानो मोहक्षय करता नथी.