Atmadharma magazine - Ank 030
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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: ११६ : आत्मधर्म : चैत्र : २४७२ :
दशामां रागद्वेष नथी. रागने आधारे भगवाननी पूर्णदशा थई नथी. भगवाननी पूर्णदशा क्यांथी आवी?
तेमनी पूर्ण दशा तेमना द्रव्य–गुणना ज आधारे आवी छे; जेम अरिहंतनी पूर्णदशा तेमना द्रव्य–गुणना आधारे
प्रगटी छे तेम मारी पूर्णदशा पण मारा द्रव्य–गुणना ज आधारे प्रगटे छे; विकल्पनो के परनो आधार मारी
पर्यायने पण नथी. “अरिहंत जेवी पूरी दशा ते मारूं स्वरूप छे अने अधूरी दशा ते मारूं स्वरूप नथी” आवो में
निर्णय कर्यो छे ते निर्णयरूप दशा मारा द्रव्यगुणना ज आधारे थई छे, आ रीते जीवनुं लक्ष अरिहंतना द्रव्य–
गुण–पर्याय उपरथी खसीने पोताना द्रव्य–गुण–पर्याय तरफ वळे छे अने ते पोताना स्वभावने प्रतीतमां ल्ये
छे. स्वभावने प्रतीतमां लेतां स्वभाव तरफ पर्याय एकाग्र थाय छे एटले मोहने पर्यायनो आधार रहेतो नथी;
ए प्रमाणे निराधार थयेलो मोह अवश्य क्षय पामे छे.
सौथी पहेलांं अरिहंतनुं लक्ष होय छे खरूं, पण पछी अरिहंतना लक्षथी पण खसीने स्वभावनी श्रद्धा
करतां सम्यग्दर्शन दशा प्रगटे छे. सर्वज्ञअरिहंत ते आत्मा छे अने हुं पण आत्मा छुं–एम प्रतीत कर्या पछी
पोतानी पर्यायमां सर्वज्ञथी जेटली अधूराश छे ते टाळवा माटे स्वभावमां एकाग्रतानो प्रयत्न करे छे.
अरिहंतने जाणतां जगतना बधा आत्माओनो निर्णय थई गयो के जगतना जीवो पोतपोतानी
पर्यायथी ज सुखी दुःखी छे. अर्हंतप्रभु पोतानी पूर्ण पर्यायथी ज स्वयं सुखी छे, तेथी सुख माटे तेमने आहार,
पाणी, वस्त्र वगेरे अन्य कोई पदार्थनी जरूर पडती नथी अने जगतना जे जीवो दुःखी छे तेओ पोतानी
पर्यायना दोषथी ज दुःखी छे. पर्यायमां फक्त रागदशा जेटलो ज पोताने मानी बेठा छे अने आखा स्वभावने
भूली गया छे तेथी रागनुं ज वेदन करीने दुःखी थाय छे, पण कोई निमित्तना कारणे के कर्मोना कारणे दुःख
नथी, तेम ज अनाज, वस्त्र वगेरे न मळवाना कारणे पण दुःख नथी. दुःखनुं कारण पोतानी पर्याय छे, अने ते
दुःख टाळवा माटे अरिहंतने ओळखवा जोईए. अरिहंतना द्रव्य–गुण–पर्यायने जाणीने तेमना जेवडो ज
पोताने माने के अहो! हुं फक्त रागदशा जेटलो नथी पण हुं तो रागरहित पूरेपूरा ज्ञानस्वभाववाळो छुं, मारा
ज्ञानमां दुःख न होई शके–एम जो पोताने अरिहंत जेवा ज द्रव्य–गुण–पर्याय स्वभावे माने तो वर्तमान राग
उपरथी पोतानुं लक्ष खसेडीने द्रव्य–गुण स्वभाव उपर लक्ष करे अने पोताना स्वभावनी एकाग्रता करीने
पर्यायनुं दुःख टाळे. आम होवाथी जगतना कोई जीवोने पराधीनपणुं नथी, पर जीवनुं के जड पदार्थनुं कांई हुं
करी ज शकतो नथी, बधा पदार्थो स्वतंत्र छे, मारे मारी पर्यायनो उपयोग स्व तरफ करवानो छे, आ ज सुखनो
उपाय छे, आ सिवाय जगतमां बीजो कोई उपाय सुखनो नथी.
देश वगेरेनां कार्यो हुं करी दउं–एवी मान्यता ते तो तद्न मिथ्या छे, ते मान्यतामां तो तीव्र आकुळतानुं
दुःख छे, जगतना जीवोनुं दुःख हुं टाळी शकुं ए मान्यता पोताने ज महान दुःखनुं कारण छे, परने दुःख के सुख
करवा कोई समर्थ नथी. जगतना जीवोने संयोगनुं दुःख नथी पण पोताना ज्ञानादि स्वभावनी पूर्णदशाने जाणी
नथी तेनुं ज दुःख छे. जो अरिहंतना आत्मा साथे पोताना आत्माने मेळवे तो पोतानो स्वतंत्र स्वभाव
प्रतीतमां आवे. अहो! अरिहंतदेव कोई बहारना संयोगथी सुखी नथी, पण पोताना ज्ञान वगेरेनी पूर्णदशाथी
ज तेओ संपूर्ण सुखी छे, माटे सुख ते आत्मानुं ज स्वरूप छे; आम स्वभावने ओळखीने रागद्वेष रहित थईने
परमानंद दशाने प्रगट करे. अरिहंतना वास्तविक स्वरूपने जाण्युं नथी तेथी पोताना स्वरूपने पण जाण्युं नथी,
अने पोताना स्वरूपने बराबर जाण्युं नथी माटे ज भूल छे.
मारे परिपूर्ण स्वतंत्र सुखदशा जोईए छे, सुख माटे जेवी स्वतंत्र दशा होवी जोईए तेवी पूर्ण स्वतंत्र
दशा आ अरिहंतने छे अने अरिहंत जेवो ज बधानो स्वभाव छे माटे हुं पण तेवा ज पूर्ण स्वभाववाळो छुं
आम पोताना स्वभावनी प्रतीत पण साथे भेळवीने वात छे. जेणे पोताना ज्ञानमां आ नक्की कर्युं तेने सुख
माटे पराधीन द्रष्टिनो अनंत खदबदाट शमी गयो. पहेलांं अज्ञानथी ज्यां त्यां खदबदाट करतो के पैसामांथी
सुख लऊं, रागमांथी सुख लऊं देव–गुरु–शास्त्र पासेथी सुख लऊं के पुण्य करीने सुख लऊं–एम पर लक्षे सुख
मानतो ते मान्यता टळी गई, अने एकला पोताना स्वभावने ज सुखनुं साधन मान्युं, आ समजण थतां
सम्यग्दर्शन थाय छे.