
सदाय नजीक बिराजे छे अने जेणे भावमां अरिहंतने दूर कर्या तेने दूर छे. क्षेत्रे नजीक हो के न हो तेथी शुं?
भाव साथे मेळ करीने नजीकपणुं करवुं छे. अहो! अरिहंतना विरह भूलावी दीधा, कोण कहे छे–अत्यारे
अरिहंतप्रभु नथी!
विपरीतपणे मानतो होय अने अरिहंतनो यथार्थ निर्णय कर्या वगर तेमनी पूजा–भक्ति करता होय तेमने
मिथ्यात्वनो नाश होई शके नहि. जेणे अरिहंतनुं स्वरूप विपरीत मान्युं तेणे पोताना आत्मस्वरूपने पण
विपरीत ज मान्युं तेथी ते मिथ्याद्रष्टि छे. अहीं मिथ्यात्व नाश करवानो उपाय दर्शावे छे, जेओने मिथ्यात्व नाश
थई गयुं छे तेओने आ समजावता नथी पण जेओ मिथ्यात्वनो नाश करवा तैयार थया छे तेवा जीवोने माटे
आ कहेवाय छे. अत्यारे–आ काळे जीवने पोताना पुरुषार्थवडे मिथ्यात्वनो नाश थई शके छे माटे आ वात करी
छे, माटे ‘न समजाय’ ए मान्यता छोडीने समजवानो पुरुषार्थ करवो.
श्रेणीमां बेठो छे, माटे अमे अत्यारथी तेने दर्शनमोहनो क्षय कहीए छीए. भले अत्यारे साक्षात् तीर्थंकर नथी
तोपण एवा जोरदार निर्णयना भावे उपड्या छे के साक्षात् अरिहंत पासे थईने क्षायक समकित करी, क्षायक
श्रेणीना जोरे मोहनो सर्वथा क्षय करीने केवळज्ञान अरिहंतदशा प्रगट करवाना छे. पुरुषार्थनी ज वात छे, पाछा
फरवानी वात छे ज नहीं.
तेथी स्वभावना जोरे ते दशा प्रगटी, स्वभाव तो मारे पण परिपूर्ण छे, स्वभावमां कचाश नथी; बस! आ यथार्थ
भानमां द्रव्य–गुणनी प्रतीत थई गई अने द्रव्य–गुण तरफ पर्याय वळी. आत्माना स्वभाव सामर्थ्यनी द्रष्टि थई
अने विकल्पनी के परनी द्रष्टि टळी. आ रीते, आ ज उपायथी सर्व आत्माओ पोताना द्रव्य गुण उपर द्रष्टि करीने
क्षायक समकित पामे छे एम बधा आत्मानुं ज्ञान आव्युं; समकितनो बीजो कोई उपाय नथी.
स्वमां एकाग्रतानो ज भाव रहेतां क्षायकसम्यक्त्व थाय छे.
प्रतीत ते ज मोहक्षयनुं कारण छे. क्षणिक विकारी पर्यायमां रागनुं कर्तव्य माने तो ते जीवे अरिहंतना स्वरूपने
मान्युं नथी. ज्ञानमां अनंत परद्रव्यनुं कर्तृत्व मान्युं ते ज महा अधर्म छे अने ज्ञानमां अरिहंतनो निर्णय कर्यो त्यां
अनंत परद्रव्यनुं कर्तृत्व टळी गयुं ते ज धर्म छे. ज्ञानमांथी परनुं कर्तृत्व टळ्युं एटले हवे ज्ञानमां ज ठरवानुं रह्युं,
अने पर लक्षे जे विकारभाव थाय तेनुं कर्तापणुं पण न रह्युं, मात्र ज्ञातापणे रह्यो, आ ज मोहक्षयनो उपाय छे.
अरिहंतना स्वरूपने जाण्युं ते सम्यग्द्रष्टि धर्मात्मा छे, तेज जैन छे. जिनेन्द्र अरिहंतनो जेवो स्वभाव छे तेवो ज
पोतानो स्वभाव छे एम निर्णय करवो ते जैनपणुं छे अने पछी स्वभावना पुरुषार्थद्वारा तेवी पूर्णदशा प्रगट
करवी ते जिनपणुं छे. पोताना निजस्वभावने जाण्या विना जैनपणुं होई शके नहि.
करी शकुं के विकारथी धर्म थाय ए बधी ऊंधी मान्यताओ छूटी गई. हवे स्वभावना जोरे स्वभावमां एकाग्रता
करीने टकवानुं ज रह्युं, हवे तेने मोह क्यां टके? मोहनो क्षय ज थाय छे. मारा