: चैत्र : २४७२ : आत्मधर्म : १२१ :
सुख थाय अने जन्म मरणनो अंत आवे.
– महामिथ्यात्व क्यारे टळे? –
पोताना स्वरूपनी साची समजण वडे अनादिनी महाभूल टाळवानो जेने उपाय करवो होय तेणे ते माटे
आत्मज्ञानी सत्पुरुष पासेथी शुद्धात्मानुं स्वरूप सीधुं सांभळवुं जोईए अने तेनो जाते अभ्यास करवो जोईए.
ए ध्यान राखवुं के मात्र सांभळ्या करवाथी अगृहीत–मिथ्यात्व टळतुं नथी, पण पोताना स्वभाव साथे
मेळवणी करीने जाते निर्णय करवो जोईए. जीव पोते अनंतवार तीर्थंकरभगवानना समोसरणमां जईने तेमनो
उपदेश सांभळी आव्यो छे पण स्वाश्रय स्वभावनी श्रद्धा कर्या वगर तेने धर्म थयो नथी. “आत्मा तो ज्ञान
स्वरूप छे, परनुं ते कांई ज करी शकतो नथी, पुण्यथी आत्मानो धर्म थतो नथी” आवी निश्चयनी साची वात
सांभळीने तेनो हकार आववाने बदले जीव नकार करे छे के ‘आ वात आपणा माटे अत्यारे कामनी नथी,
कांईक पराश्रय जोईए अने पुण्य पण करवा जोईए, पुण्य विना एकलो आत्मा टकी शके?’ आ प्रमाणे
पोतानी पराश्रयनी ऊंधी मान्यताने द्रढ करीने सांभळ्युं. सत् सांभळवा छतां ते तेणे आत्मामां ग्रहण कर्युं नहि
तेथी महामिथ्यात्व टळ्युं नहीं.
शरूआतथी ज आत्माना स्वावलंबी शुद्ध स्वरूपनी समजण, तेनी श्रद्धा अने तेनुं ज्ञान करवानो मार्ग
छे ते रुच्यो नहि पण पराश्रय अनादिथी रुच्यो छे तेथी सत् सांभळता घणा जीवोने एम थाय छे के अरे! जो
आत्मानुं आवुं स्वरूप मानशुं तो समाजव्यवस्था केम नभशे? समाजमां रह्या छीए माटे एक बीजानुं कांईक
करवुं तो जोईए ने! आवी पराश्रीत मान्यतावडे संसारनो पक्ष छोड्यो नहि अने आत्मानी समजण करी नहीं.
– सत्य समजणनी जरूर –
स्वाधीन सत्यनो स्वीकार करवाथी जीवने कदापी नुकसान थाय ज नहि, अने सत्य तत्त्वने मानवाथी
समाजने पण नुकशान थाय ज नहि. समाज पोतपोतानी अज्ञानताथी ज दुःखी छे अने पोतपोतानी
समजणथी ज ते दुःख टळी शके छे, माटे सत्य समजण करवी जोईए. साची समजण करवाथी नुकसान थशे
एम जे माने छे ते सत्यनो महान अनादर करे छे. मिथ्यात्वनुं महापाप टाळवा माटे प्रथममां प्रथम साचा
तत्त्वनी साची ओळखाणनो अभ्यास करवानी जरूर छे.
सर्वज्ञ वीतराग देव, निर्ग्रंथगुरु अने तेमना कहेला अनेकान्तमय सत्–शास्त्रोनो बराबर निर्णय करवो
जोईए. पोते हित–अहितनो निर्णय करीने, सत्य समजवानी जिज्ञासावाळो थईने ज्ञानीओ पासेथी
शुद्धआत्मानी वात सांभळी, विचारद्वारा निर्णय करवो जोईए; आ ज मिथ्यात्व टाळवानो उपाय छे.
– भगवाना उपदेशनो सार –
प्रश्न:– भगवाननां उपदेशमां मुख्य पणे शुं कथन होय?
उत्तर:– भगवान पोते पोताना पुरुषार्थवडे स्वरूपनी साची श्रद्धा अने स्थिरता करी पूर्णदशा पाम्या छे
तेथी तेमना उपदेशमां पण पुरुषार्थवडे आत्मानी साची श्रद्धा अने स्थिरता करवानो उपदेश मुख्यपणे आवे छे.
भगवानना उपदेशमां नवतत्त्वोनुं स्वरूप बताववामां आवे छे; जो ‘आत्मा शुद्ध छे’ एम आत्मा–आत्मा
ज कोई कह्या करे तो अज्ञानी जीवो कांई समजी शके नहि तेथी आत्मानो शुद्ध स्वभाव शुं, तेनी विकारी के अविकारी
दशा शुं, आत्माने सुखनुं कारण शुं, दुःखनुं कारण शुं, संसार मार्ग शुं, मोक्षमार्ग शुं, नव तत्त्व शुं, देव–गुरु–शास्त्र
शुं–ए वगेरे समजाववामां आवे छे, पण तेमां आत्मानुं स्वरूप समजवाना उपदेशनी मुख्यता होय छे.
– नवतत्त्वो –
आत्मानो स्वभाव तो शुद्ध ज छे, परंतु अवस्थामां विकारी अने अविकारी एवा भेद छे. पुण्य–पाप ते
विकार छे अने तेनुं फळ आस्रव तथा बंध छे. आ चारे (पुण्य, पाप, आस्रव अने बंध) जीवने दुःखनुं कारण
छे, तेथी ते छोडवा जेवा छे, अने आत्मस्वरूपनी साची समजण करीने पुण्य–पाप टाळीने स्थिरता करवी ते
संवर–निर्जरा मोक्ष छे. आ त्रणे आत्माने सुखनुं कारण छे, तेथी ते प्रगट करवा योग्य छे. जीव पोते ज्ञानमय
छे पण पोते ज्ञानरहित एवी अजीव वस्तुना लक्षे भूल करे छे, तेथी जीव अजीवनुं जुदापणुं समजावाय छे. आ
रीते नव तत्त्वोनुं स्वरूप समजवुं जोईए.
– द्रव्य अने पर्याय –
आत्मा पोतानी शक्तिथी त्रिकाळ शुद्ध छे, पण वर्तमान पर्याय तेनी बदल्या करे छे. एटले के
शक्तिस्वभावे कायम टकीने अवस्थामां फेरफार (परिणमन) थया करे छे. अवस्थामां पोते पोतानुं स्वरूप भूलीने