Atmadharma magazine - Ank 030
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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सौथी मोटामां
मोटुं पाप,
सौथी मोटामां
मोटुं पुण्य
अने
सौथी पहेलामां
पहेलो धर्म
रात्रिर्चा उपरथी
ता. २९ – १२ – ४५
: ११० : आत्मधर्म : चैत्र : २४७२ :
प्रश्न:– जगतमां सौथी मोटामां मोटुं पाप कयुं?
उत्तर:– मिथ्यात्व ए ज सौथी मोटामां मोटुं पाप छे.
प्रश्न:– सौथी मोटामां मोटुं पुण्य कयुं?
उत्तर:– तीर्थंकर नामकर्म ते सौथी मोटामां मोटुं पुण्य छे; आ
पुण्य सम्यग्दर्शन पछीनी ज भूमिकामां शुभराग वडे बंधाय छे,
मिथ्याद्रष्टिने आ पुण्य होतां नथी.
प्रश्न:– सौथी पहेलांमां पहेलो धर्म क्यो?
उत्तर:– सम्यग्दर्शन ए ज सौथी पहेलामां पहेलो धर्म छे.
सम्यग्दर्शन वगर ज्ञान, चारित्र, तप, दया, वगेरे एके धर्म साचा होतां
नथी, ते बधा धर्मो सम्यग्दर्शन थया पछी ज होय छे, माटे सम्यग्दर्शन
ए ज धर्मनुं मूळ छे.
प्रश्न:– मिथ्यात्वने सौथी मोटामां मोटुं पाप शा माटे कह्युं?
उत्तर:– मिथ्यात्व एटले ऊंधी मान्यता, खोटी समजण. जीव
परनुं करी शके अने पुण्यथी धर्म थाय–एम जेणे मान्युं, तेनी ते ऊंधी
मान्यतामां एकेक क्षणमां अनंत पाप आवे छे. कई रीते? ते कहे छे.–
‘पुण्यथी धर्म थाय अने जीव बीजानुं करी शके’ एम जेणे मान्युं छे तेणे
‘पुण्यथी धर्म न थाय अने जीव परनुं कांई न करी शके–एम कहेनारा
खोटा’ एम पण मान्युं छे, अने तेथी ‘पुण्यथी धर्म न थाय अने जीव
परनुं न करे’ एम कहेनारा त्रणेकाळना अनंत तीर्थंकरो, केवळी
भगवंतो, संत–मुनिओ अने सम्यग्ज्ञानी जीवो ए बधायने तेणे एक
क्षणमां खोटा मान्या. आ रीते मिथ्यात्वना एक समयना ऊंधा वीर्यमां
अनंत सत्ना नकारनुं महापाप छे.
वळी, जेम हुं–जीव परनो कर्ता छुं अने पुण्य–पापनो कर्ता छुं
तेम जगतना सर्वे जीवो सदाकाळ परवस्तुना अने पुण्य–पापरूप
विकारना कर्ता छे–एम पण मिथ्याद्रष्टिजीवना अभिप्रायमां आव्युं, ए
रीते ऊंधी मान्यताथी तेणे जगतना बधा जीवोने परना कर्ता अने
विकारना धणी ठराव्या–एटले के बधा ज जीवोना शुद्ध अविकार
स्वरूपनुं पोताना ऊंधा अभिप्रायवडे खून कर्युं, ते महा ऊंधी द्रष्टिनुं
सौथी मोटुं पाप छे. त्रिकाळी सत्नो एक समयमां अनादर ते ज सौथी
मोटुं पाप छे.
वळी, एक जीव बीजा जीवनुं करी शके एटले के बीजा जीवो मारूं
कार्य करे अने हुं बीजा जीवोनुं कार्य करूं एम मिथ्यात्वी जीव माने छे,
तेथी जगतना बधा जीवो एक बीजाना ओशियाळा पराधीन छे एम
मान्युं; ए रीते पोतानी ऊंधी मान्यतामां जगतना बधा ज जीवोना
स्वाधीन स्वभावनी हिंसा करी, तेथी मिथ्यामान्यता ए ज महान
हिंसकभाव छे अने ते ज महानमां महान पाप छे.
श्री परमात्म प्रकाशमां कह्युं छे के:– सम्यक्त्वसहित नरकवास पण
भलो छे, अने मिथ्यात्वसहित स्वर्गवास पण बूरो छे; आथी नक्की थाय
छे के जे भावे नरक मळे ते अशुभ पापभाव करतां पण मिथ्यात्वनुं पाप
घणुं ज मोटुं छे. आम समजीने जीवोए सर्वथी पहेलांं साची समजण वडे
मिथ्यात्वनुं मोटुं पाप टाळवानो उपाय करवो जोईए.