
उत्तर:– मिथ्यात्व ए ज सौथी मोटामां मोटुं पाप छे.
प्रश्न:– सौथी मोटामां मोटुं पुण्य कयुं?
उत्तर:– तीर्थंकर नामकर्म ते सौथी मोटामां मोटुं पुण्य छे; आ
मिथ्याद्रष्टिने आ पुण्य होतां नथी.
उत्तर:– सम्यग्दर्शन ए ज सौथी पहेलामां पहेलो धर्म छे.
नथी, ते बधा धर्मो सम्यग्दर्शन थया पछी ज होय छे, माटे सम्यग्दर्शन
ए ज धर्मनुं मूळ छे.
उत्तर:– मिथ्यात्व एटले ऊंधी मान्यता, खोटी समजण. जीव
मान्यतामां एकेक क्षणमां अनंत पाप आवे छे. कई रीते? ते कहे छे.–
‘पुण्यथी धर्म थाय अने जीव बीजानुं करी शके’ एम जेणे मान्युं छे तेणे
खोटा’ एम पण मान्युं छे, अने तेथी ‘पुण्यथी धर्म न थाय अने जीव
परनुं न करे’ एम कहेनारा त्रणेकाळना अनंत तीर्थंकरो, केवळी
भगवंतो, संत–मुनिओ अने सम्यग्ज्ञानी जीवो ए बधायने तेणे एक
क्षणमां खोटा मान्या. आ रीते मिथ्यात्वना एक समयना ऊंधा वीर्यमां
अनंत सत्ना नकारनुं महापाप छे.
विकारना कर्ता छे–एम पण मिथ्याद्रष्टिजीवना अभिप्रायमां आव्युं, ए
रीते ऊंधी मान्यताथी तेणे जगतना बधा जीवोने परना कर्ता अने
विकारना धणी ठराव्या–एटले के बधा ज जीवोना शुद्ध अविकार
सौथी मोटुं पाप छे. त्रिकाळी सत्नो एक समयमां अनादर ते ज सौथी
मोटुं पाप छे.
तेथी जगतना बधा जीवो एक बीजाना ओशियाळा पराधीन छे एम
मान्युं; ए रीते पोतानी ऊंधी मान्यतामां जगतना बधा ज जीवोना
स्वाधीन स्वभावनी हिंसा करी, तेथी मिथ्यामान्यता ए ज महान
हिंसकभाव छे अने ते ज महानमां महान पाप छे.
छे के जे भावे नरक मळे ते अशुभ पापभाव करतां पण मिथ्यात्वनुं पाप
घणुं ज मोटुं छे. आम समजीने जीवोए सर्वथी पहेलांं साची समजण वडे
मिथ्यात्वनुं मोटुं पाप टाळवानो उपाय करवो जोईए.