Atmadharma magazine - Ank 030
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४७२ : आत्मधर्म : ११३ :
(लेखांक बीजो) ।। ।। (पोष वद १ : २४७२)
परम पूज्य सद्गुरुदेवश्रीनुं व्याख्यान अरिहंत सौ जयवंत वर्तो श्री प्रवचनसारजी गाथा ८०
जे खरेखर अर्हंतने जाणे छे ते पोताना आत्माने जाणे ज छे.
। जे जाणतो अर्हंतने गुण द्रव्यने पर्ययपणे, ते जीव जाणे आत्मने तसु मोह पामे लय खरे. ८०।

गतांकमां कह्युं हतुं के जे अरिहंतने द्रव्यपणे गुणपणे अने पर्यायपणे जाणे छे ते पोताना आत्माने जाणे
छे अने तेनो मोह क्षय पामे ज छे. अरिहंतने द्रव्य–गुण–पर्यायपणे कई रीते जाणवा अने मोहनो नाश कई
रीते थाय छे ते हवे कहेवाय छे.
श्रीप्रवचनसारजीनी आ ८०–८१–८२ मी गाथामां आखा शास्त्रनो सार छे. अनंत तीर्थंकरोना उपदेशनुं
रहस्य आमां समाई जाय छे. आचार्यप्रभु ८२ मी गाथामां कहेशे के ८०–८१ मां कह्युं ते ज विधिथी सर्वे
अरिहंतो मुक्त थया छे, बधाय तीर्थंकरो आ ज उपायवडे तर्या छे अने भव्यजीवोने एनो ज उपदेश आप्यो छे,
अत्यारना भव्य जीवोने पण ए ज उपाय वर्ते छे, ए सिवाय बीजो कोई उपाय मोहनाश करवा माटे नथी.
जे आत्माओने पात्र थईने पोतानी योग्यताना पुरुषार्थवडे स्वभावने मेळववो छे–अने मोहनो क्षय
करवो छे ते आत्माओए शुं करवुं? ते अहीं बताव्युं छे. प्रथम तो अरिहंतने द्रव्य–गुण–पर्यायपणे जाणवा.
भगवान अरिहंतनो आत्मा केवो हतो, तेना आत्माना गुणोनी शक्ति–सामर्थ्य केवां हतां अने तेमनी पूर्ण
पर्यायनुं शुं स्वरूप छे–एना यथार्थ भावने जे नक्की करे छे ते खरेखर पोताना ज द्रव्य–गुण–पर्याय स्वरूपने
नक्की करे छे. अरिहंतने जाणतां एम प्रतीत करे छे के “आवो ज पूर्ण स्वभाव छे, आवुं ज मारूं स्वरूप छे.”
अरिहंतना आत्माने जाणतां पोतानो आत्मा केवी रीते जणाय छे तेनुं हवे कारण बतावे छे.
‘खरेखर जे अरिहंतने जाणे छे ते खरेखर पोताना आत्माने जाणे छे केमके बंनेमां निश्चयथी तफावत नथी.
’ जेवा अरिहंतना द्रव्य–गुण–पर्याय छे तेवा ज आ आत्माना द्रव्य–गुण–पर्याय छे. वस्तु, तेनी शक्ति अने
तेनी हालत जेवा अरिहंतदेवने छे तेवा ज मारे पण छे, आम पोताना पूर्ण स्वरूपनी जे प्रतीत करे तेणें ज
अरिहंतने यथार्थपणे जाण्या छे. अरिहंतना स्वरूपने जाणे अने पोताना आत्मानुं स्वरूप न जणाय एम
बने नहि.
अहीं स्वभावनी मेळवणी करीने कहे छे के अरिहंतनो अने पोतानो आत्मा सरखो ज छे तेथी जे
अरिहंतने जाणे ते पोताना आत्माने जरूर जाणे अने तेनो मोह क्षय पामे. अहीं “अरिहंतने जाणे ते पोताने
जाणे” एम अरिहंतना आत्मा साथे ज आ आत्माने केम मेळव्यो, बीजा साथे केम न मेळव्यो? “जे जगतना
आत्माओने जाणे छे ते पोताने जाणे छे” एम न कह्युं, परंतु “जे अरिहंतना आत्माने जाणे छे ते पोताना
आत्माने जाणे छे” एम कह्युं, तेनी हवे वधारे स्पष्टता करे छे–“वळी अर्हंतनुं स्वरूप, छेल्ला तापने पामेला
सुवर्णना स्वरूपनी माफक परिस्पष्ट (सर्व प्रकारे स्पष्ट) छे; तेथी तेनुं ज्ञान थतां सर्व आत्मानुं ज्ञान थाय छे.”
जेम छेल्लो ताप आपेलुं सोनुं तद्न चोकखुं होय छे तेम भगवान अर्हंतनो आत्मा द्रव्य–गुण–पर्यायथी
समस्तपणे शुद्ध छे. आचार्यप्रभु कहे छे के अमारे तो आत्मानुं शुद्ध स्वरूप बताववुं छे, विकार ते आत्मानुं
स्वरूप नथी, आत्मा विकार रहित शुद्ध पूर्ण स्वरूपे छे एम दर्शाववुं छे, अने ए शुद्ध आत्मस्वरूपना प्रतिबिंब
समान श्री अर्हंतनो आत्मा छे केमके तेओ सर्व प्रकारे शुद्ध छे. बीजा आत्माओ सर्व प्रकारे शुद्ध नथी, * द्रव्य–
गुणथी बधा शुद्ध छे परंतु पर्यायथी शुद्ध नथी माटे ते आत्माओ न लेतां अर्हंतनो आत्मा ज लीधो छे.
अरिहंतना आत्मानी पूर्ण शुद्धता तो तेमनी पासे छे, अने ते शुद्धस्वरूपने जे जाणे छे ते पोताना आत्माने
जाणे छे, अने तेनो मोह क्षय पामे छे; एटले अहीं आत्मानुं शुद्धस्वरूप जाणवानी ज वात आवी. आत्माना
शुद्ध स्वरूपने जाणवा सिवाय मोहक्षयनो बीजो कोई उपाय नथी.
* [सिद्ध भगवानने पण पूर्वे अरिहंतदशा
हती तेथी अरिहंतनुं स्वरूप जाणतां तेओनुं स्वरूप पण जणाय छे. अरिहंतदशापूर्वक ज सिद्धदशा होय छे.]