Atmadharma magazine - Ank 030
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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: ११४ : आत्मधर्म : चैत्र : २४७२ :
द्रव्य–गुण तो सदाय शुद्ध ज छे, परंतु पर्यायनी शुद्धता करवानी छे, पर्यायनी शुद्धता करवा माटे द्रव्य–
गुण अने पर्यायनी शुद्धतानुं स्वरूप केवुं छे ते जाणवुं जोईए. अरिहंत भगवाननो आत्मा द्रव्य–गुण अने
पर्याय त्रणे प्रकारे शुद्ध छे, अने बीजा आत्माओ पर्यायपणे पूर्ण शुद्ध नथी माटे अरिहंतना स्वरूपने जाणवानुं
कह्युं छे. जेणे अरिहंतना द्रव्यगुणपर्याय स्वरूपने यथार्थ जाण्यां तेने शुद्धस्वभावनी प्रतीत थई एटले तेनी
पर्याय शुद्ध थवा मांडी अने तेनो दर्शन–मोह विनष्ट थयो.
सोनामां सोळवली शुद्ध दशा थवानी ताकात छे, ज्यारे अग्निवडे ताप आपीने तेनी लालप दूर करवामां
आवे त्यारे ते शुद्ध थाय छे, अने ए रीते ताप आपतां आपतां छेल्ली आंचथी ते संपुर्ण शुद्ध थाय छे–अने ए
ज सोनानुं मुळ स्वरूप छे; ते सोनुं पोताना द्रव्य–गुण पर्यायथी पूर्णताने पाम्युं छे. तेम अरिहंतनो आत्मा पूर्वे
अज्ञानदशामां हतो, पछी आत्मज्ञान अने स्थिरतावडे क्रमेक्रमे शुद्धता वधारी पूर्ण दशा प्रगट करी छे, हवे तेओ
द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेथी पूर्ण शुद्ध छे अने अनंतकाळ ए प्रमाणे ज रहेशे, तेमने अज्ञाननो, रागद्वेषनो के
भवनो अभाव छे. आम अरिहंतना आत्माने, तेना गुणोने अने तेमनी अनादि अनंत पर्यायोने जे जाणे छे
ते पोताना आत्माना यथार्थ स्वरूपने जाणे छे अने तेनो मोह क्षय पामे ज छे. अरिहंतनो आत्मा परिस्पष्ट
छे–सर्व प्रकारे चोकखो छे, तेमने जाणतां एम थाय छे के, अहो! आ तो मारा शुद्ध स्वभावनुं ज प्रतिबिंब छे;
मारूं स्वरूप आवुं ज छे–आम यथार्थ प्रकारे भान थतां शुद्ध सम्यक्त्व प्रगट थाय ज छे.
अरिहंतना आत्मा ज पूर्ण शुद्ध छे, गणधरदेव मुनिराज वगेरे आत्माओने पूर्णशुद्धदशा नथी तेथी
तेमने जाणतां आत्माना पूर्ण शुद्ध स्वरूपनो ख्याल आवतो नथी. अरिहंत भगवानना आत्माने जाणतां
पोताना आत्माना शुद्धस्वरूपनुं ज्ञान अनुमान प्रमाण द्वारा थाय छे अने तेथी शुद्धस्वरूपनी जे ऊंधी मान्यता
ते क्षय पामे छे. “अहो! आत्मानुं स्वरूप तो आवुं सर्वप्रकारे शुद्ध छे, पर्यायमां विकार ते पण मारूं स्वरूप नथी.
आ अरिहंत जेवी ज पूर्ण दशा थवामां जे कांई बाकी रही जाय छे ते मारूं स्वरूप नथी, जेटलुं अरिहंतमां छे
तेटलुं ज मारा स्वरूपमां छे.” आम पोतानी प्रतीति थई एटले अज्ञान अने विकारनुं कर्तृत्व टळीने स्वभाव
तरफ वळ्‌यो. अने स्वभावमां द्रव्य–गुण–पर्यायनी एकता थतां सम्यग्दर्शन थयुं. हवे ते ज स्वभावना आधारे
पुरुषार्थ द्वारा राग–द्वेषनो सर्वथा क्षय करी अरिहंतप्रभु जेवी ज पूर्णदशा प्रगट करीने मुक्त थशे. माटे
अरिहंतना स्वरूपने जाणवुं ते ज मोहक्षयनो उपाय छे.
आ वात खास समजवा जेवी छे. तेथी खूब स्पष्ट करवामां आवे छे. अरिहंत तरफथी ज उपाड्युं छे.
एटले खरेखर तो आत्माना पूर्ण शुद्ध स्वरूप तरफथी ज उपाड्युं छे. अरिहंत जेवो ज आ आत्मानो पूर्ण शुद्ध
स्वभाव स्थापीने, तेने जाणवानी वात करी छे, पहेलांं पूर्ण शुद्ध स्वभावने जे जाणे तेने धर्म थाय पण जे
जाणवानो पुरुषार्थ ज न करे तेने तो कदी धर्म थाय नहि; एटले आमां ज्ञान अने पुरुषार्थ बंने साथे छे; तथा
सत् निमित्त तरीके अरिहंतदेव ज छे एम पण आवी गयुं.
आठ वलुं सोनुं अने सोळ वलुं सोनुं ते बंनेनो स्वभाव सरखो छे, पण वर्तमान हालतमां फेर छे. आठ
वला सोनामां अशुद्धता छे, ते अशुद्धता काढवा माटे तेने सोळवला साथे मेळववुं जोईए, पण जो तेने बारवला
सोना साथे मेळवे तो तेनुं खरूं शुद्ध स्वरूप ख्यालमां आवे नहि अने कदी ते शुद्ध थाय नहि. सोळवला साथे
मेळवे तो सोळवलुं शुद्ध करवानो प्रयत्न करे, पण बारवला सोनाने ज शुद्ध सोनुं मानी ल्ये तो ते कदी शुद्ध सोनुं
पामी शके नहि, तेम आत्मानो स्वभाव तो शुद्ध ज छे; परंतु वर्तमान हालतमां अशुद्धता छे. अरिहंतने अने
आ आत्माने वर्तमान हालतमां फेर छे. वर्तमान हालतमां जे अशुद्धता छे ते दूर करवानी छे; ते माटे अरिहंत
भगवानना पूर्ण शुद्ध द्रव्य–गुण–पर्याय साथे मेळवणी करवी जोईए के ‘अहो! आ आत्मा तो केवळज्ञान
स्वरूप छे, पूर्ण ज्ञानसामर्थ्य छे अने विकार जरा पण नथी, मारूं स्वरूप पण आवुं ज छे, हुं पण अरिहंत जेवा
ज स्वभाववाळो छुं.’ आवी प्रतीत जेणे करी तेने हवे स्वद्रव्यनी पूर्णतामां ज जोवानुं रह्युं. निमित्तो तरफ
जोवानुं न रह्युं, केमके पोतानी पूर्णदशा पोताना स्वभावना पुरुषार्थमांथी आवे छे पण निमित्तमांथी आवती
नथी; तथा पुण्य–पाप तरफ के अधूरीदशा तरफ पण