Atmadharma magazine - Ank 031
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४७२ : आत्मधर्म : १३३ :
भेदो ते पर्याय छे, कोई पण वस्तु पर्याय वगर होई शके नहि.
आत्मद्रव्य कायम रहीने तेनी अवस्था बदल्या करे छे. द्रव्य अने गुण तो एकरूप छे तेमां भेद नथी पण
अवस्थामां अनेक प्रकारे फेरफार थाय छे तेथी अवस्थमां भेद छे. पहेलांं द्रव्य–गुण–पर्यायनुं स्वरूप जुदुं जुदुं
ओळखावीने पछी त्रणेने अभेदद्रव्यमां समावी देशे. आ रीते द्रव्य–गुण–पर्यायनी व्याख्या पूरी थई.
– शरुआतनुं कर्तव्य –
अरिहंत भगवानना द्रव्य–गुण–पर्यायने बराबर जाणवा ते ज धर्म छे. अरिहंत भगवानना द्रव्य–गुण–
पर्यायने जाणनार जीव पोताना आत्माने पण जाणे छे; आ जाण्या वगर दया, भक्ति, पूजा, व्रत, तप, ब्रह्मचर्य
के शास्त्र अभ्यास ते बधुं करवा छतां धर्म थतो नथी, अने मोह टळतो नथी; माटे पहेलांं पोताना ज्ञानवडे
अरिहंत भगवानना द्रव्य–गुण–पर्यायनो निर्णय करवो जोईए, आ ज धर्म करवा माटे शरुआतनुं कर्तव्य छे...
[ – पोष वद २. ता. १९ – १ – १९४६ – ]
पूर्वे द्रव्य–गुण–पर्यायनुं स्वरूप बताव्युं. अरिहंतना द्रव्य गुण पर्यायने जाणनार जीव पोताना द्रव्य–
गुणपर्यायमय आत्माने जाणी ले छे–एम हवे कहे छे.
“सर्वत: विशुद्ध एवा ते भगवान अर्हंतमां (अर्हंतना स्वरूपनो ख्याल करतां) जीव त्रणे प्रकरना
समयने (द्रव्यगुणपर्यायमय निज आत्माने) पोतना मनवडे कळी ले छे–समजी ले छे–जाणी ले छे.”
[गाथा ८० टीका, लाईन – ५]
अरिहंतभगवाननुं स्वरूप सर्वत: विशुद्ध छे एटले के तेओ द्रव्यथी, गुणथी अने पर्यायथी संपूर्ण शुद्ध छे
तेथी द्रव्य–गुण–पर्यायपणे तेमना स्वरूपने जाणतां पोतानुं स्वरूप द्रव्यथी–गुणथी अने पर्यायथी केवुं छे ते
जीवने ख्यालमां आवे छे.
आ आत्मानुं अने अरिहंतनुं स्वरूप परमार्थे समान छे, तेथी जे अरिहंतना स्वरूपने जाणे ते पोताना
स्वरूपने जाणे. अने जे पोताना स्वरूपने जाणे तेना मोहनो क्षय थाय छे.
– सम्यकत्वसन्मुख दशा –
जेणे पोताना ज्ञानवडे अरिहंतना द्रव्य–गुण–पर्यायने लक्षमां लीधा ते जीवने अरिहंतनो ख्याल करतां
परमार्थे पोतानो ज ख्याल आवे छे. अरिहंतना द्रव्यगुण पूरा छे अने तेमनी अवस्था संपूर्ण ज्ञानमय छे, तद्न
विकाररहित छे एम निर्णय करतां पोताना द्रव्य–गुण पूरा छे अने अवस्था संपूर्ण ज्ञानरूप, विकाररहित होवी
जोईए एम प्रतीत थाय छे. जेवा भगवान अरिहंत तेवो ज हुं एम, अरिहंतने जाणतां स्वसमयने मनवडे
जीव कळी ले छे. अहीं सुधी हजी अरिहंतना स्वरूप साथे पोताना स्वरूपनी सरखामणी करे छे, एटले
अरिहंतमां लक्षे पोताना आत्मानुं स्वरूप नक्की करवा मांड्युं छे, अहीं परलक्षे निर्णय होवाथी मनवडे पोताना
आत्माने कळी ले छे एम कह्युं छे. भले, अहीं विकल्प छे तोपण विकल्प द्वारा जे निर्णय करी लीधो छे ते
निर्णयरूप ज्ञानमांथी ज मोक्षमार्गनी शरुआत थवानी छे. मनवडे विकल्पथी ज्ञान कर्युं छे तोपण निर्णयना जोरे
ज्ञानमांथी विकल्प तोडीने स्वलक्षे साचुं समजी मोहक्षय करवानो ज छे–एवी शैलि छे. जेणे मनवडे आत्मानो
निर्णय कर्यो तेने सम्यकत्वसन्मुख दशा थई छे.
– अरिहंत साथे सरखामणी –
अरिहंतने द्रव्य–गुण पर्यायपणे जाणनार जीव द्रव्यगुण–पर्यायस्वरूप पोताना आत्माने केवी रीते कळी
ले छे तेनुं स्वरूप हवे बतावे छे. अरिहंतने जाणनार जीव पोताना ज्ञानमां पोताना द्रव्य–गुण–पर्यायने आ
प्रमाणे विचारे छे–
‘आ चेतन छे’ एवो जे अन्वय ते द्रव्य छे, अन्वयने आश्रित रहेलुं ‘चैतन्य’ एवुं जे विशेषण ते गुण
छे अने एक समयनी मर्यादावाळु जेनुं काळपरिमाण होवाथी परस्पर अप्रवृत्त एवा जे अन्वयव्यतिरेको (एक
बीजामां नहि प्रवर्तता एवा जे अन्वयना व्यतिरेको) ते पर्यायो छे–के जेओ चिद्दविवर्तननी (आत्माना
परिणमननी) ग्रंथिओ छे.
[गाथा ८० टीका, लाईन ८]
पहेलांं अरिहंत भगवानने सामान्यपणे जाणीने हवे तेमना स्वरूपने लक्षमां राखीने द्रव्य–गुण–
पर्यायथी विशेषपणे विचारे छे. “आ अरिहंत आत्मा छे” एम द्रव्यने जाण्युं, ज्ञानने धरनार जे कायमी द्रव्य ते
ज आत्मा छे, आ रीते अरिहंत साथे आत्माने मेळवे छे.