: १३४ : आत्मधर्म : वैशाख : २४७२ :
चेतन द्रव्य आत्मा छे, आत्मा चैतन्य स्वरूप छे, चैतन्यगुण आत्मद्रव्यने आश्रित रहेल छे; कायम
टकनार आत्मद्रव्यना आश्रये ज्ञान रहेलुं छे, द्रव्यना आश्रये रहेल होवाथी ज्ञान ते गुण छे. अरिहंतोना गुणने
जोईने पोते आत्माना गुणो केवा छे ते नक्की करे छे. जेवो अरिहंतनो स्वभाव छे तेवो ज मारो स्वभाव छे.
द्रव्य–गुण त्रिकाळी छे, तेना क्षणक्षणवर्ती भेदो ते पर्यायो छे. पर्यायनी मर्यादा एक ज समय पूरती छे,
एक ज समयनी मर्यादा होवाथी बे पर्यायो कदी भेगी थती नथी. पर्यायो एकबीजामां अप्रवृत्त छे, एक पर्याय
बीजी पर्यायमां आवती नथी; आथी पहेली पर्याय विकाररूप होवा छतां बीजी पर्याय मारा स्वभावथी हुं
निर्विकारी करी शकुं छुं. एटले विकार एक समय पूरतो छे अने विकाररहित स्वभाव त्रिकाळ छे. पर्याय एक
समय पूरती ज छे एम जाणतां विकारनुं क्षणिकपणुं छे एम प्रतीत थाय छे. आ प्रमाणे अरिहंत साथे
सरखामणी करीने पोताना स्वरूपमां तेनी मेळवणी करे छे.
चेतननी एक समयवर्ती पर्यायो ते बधी ज्ञाननी ज गांठो छे, पर्यायनो संबंध चैतन्य साथे छे, खरेखर
राग ते चैतन्यनी पर्याय नथी केमके अरिहंतनी पर्यायमां राग नथी. जेटलुं अरिहंतनी पर्यायमां होय तेटलुं ज
आ आत्मानी पर्यायनुं स्वरूप छे.
अवस्था समय समयनी मर्यादावाळी छे, एक अवस्थानो बीजा समये नाश थाय छे तेथी एक
अवस्थामांथी बीजी अवस्था आवे नहि, पण द्रव्यमांथी ज अवस्था आवे छे, माटे पहेलांं द्रव्यनुं स्वरूप
बताव्युं; अवस्थामां विकार ते स्वरूप नथी पण गुण जेवी ज निर्विकार अवस्था जोईए, एथी पछी गुणनुं
स्वरूप बताव्युं; राग के विकल्पमांथी पर्याय प्रगटती नथी केमके पर्यायो एक बीजामां प्रवर्तती नथी. पर्यायने
चिद्दविवर्तननी ग्रंथि केम कीधी? पर्याय पोते तो एक समय पूरती छे परंतु एक समयनी पर्यायवडे त्रिकाळी
द्रव्यने जाणवानुं सामर्थ्य छे. एक ज समयनी पर्यायमां त्रिकाळी द्रव्यनो निर्णय समाय छे–एवुं पर्यायनुं सामर्थ्य
बताववा तेने चिद्दविवर्तननी ग्रंथि कीधी छे.
अरिहंतने केवळज्ञानदशा वर्ते छे, केवळज्ञानदशा ते चिद्दविवर्तननी खरी ग्रंथि छे, अधूरूं ज्ञान ते स्वरूप
नथी. केवळज्ञान थतां एक ज पर्यायमां लोकालोकनुं ज्ञान समाय छे, मति–श्रुतपर्यायमां पण घणा घणा
भावोनो निर्णय समाय छे.
भले पर्याय पोते एक समयनी छे तोपण ते एक समयमां सर्वज्ञना परिपूर्ण द्रव्य–गुण–पर्यायने पोताना
ज्ञानमां समावी दे छे, आखा अरिहंतनो निर्णय एक समयमां करी लेती होवाथी पर्याय ते चैतन्यनी गांठ छे.
अरिहंतनी पर्याय सर्वत: विशुद्ध छे, ए विशुद्ध पर्यायने ख्यालमां लीधी ते वखते पोताने तेवी पर्याय
वर्तमान वर्तती नथी छतां ‘मारी अवस्थानुं स्वरूप अनंत ज्ञान शक्तिरूप संपूर्ण छे, रागादि ते मारी पर्यायनुं
मूळ स्वरूप नथी’ आम निर्णय थाय छे.
आ रीते अरिहंतना लक्षे द्रव्य–गुण–पर्यायस्वरूपे पोताना आत्माने शुभविकल्प वडे जाण्यो. आ रीते
द्रव्य–गुण–पर्यायना स्वरूपने एक साथे जाणी लेतो जीव पछी शुं करे छे अने तेनो मोह क्यारे नाश पामे छे ते
हवे कहे छे.
“हवे ए रीते.........अवश्यमेव प्रलय पामे छे.” (गाथा८० टीका, पानुं ११९)
द्रव्य–गुण–पर्यायनुं यथार्थ स्वरूप जाणतां त्रिकाळीक द्रव्यने एक काळमां जीव नक्की करी ले छे; आत्मा
त्रिकाळी होवा छतां एक काळमां तेना त्रिकाळी स्वरूपने जीव कळी ले छे. अरिहंतने द्रव्य–गुण–पर्यायथी जाणतां
पोतामां शुं फळ प्रगट्युं ते बतावे छे. जेवा अरिहंत प्रभु त्रिकाळी आत्मा छे तेवो ज हुं त्रिकाळी आत्मा छुं एम
त्रिकाळी पदार्थने लक्षमां ले छे. त्रिकाळी पदार्थने जाणतां त्रिकाळ जेटलो वखत लागतो नथी पण वर्तमान एक
पर्यायद्वारा त्रिकाळीनो ख्याल आवी जाय छे. आ क्षायकसमकित केम थाय तेनी वात छे, शरुआतनी क्रिया आ
ज छे, आ ज क्रियावडे मोहनो क्षय थाय छे.
जीवने सुख जोईए छे, आ जगतमां संपूर्ण स्वाधीन सुखी तो श्री अरिहंत छे, माटे ‘सुख जोईए छे’
एनो अर्थ ए थयो के अरिहंतने जे दशा छे ते दशारूपे पोताने थवुं छे. जेणे अरिहंत जेवो पोतानो आत्मा
मान्यो होय ते ज अरिहंत जेवी दशारूपे थवानी भावना करे. जेणे पोताने अरिहंत जेवो मान्यो तेणे अरिहंत
जेवा द्रव्य–गुण–पर्याय सिवाय बीजुं बधुं पोताना आत्मामांथी