Atmadharma magazine - Ank 031
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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: १३२ : आत्मधर्म : वैशाख : २४७२ :
अरिहंतने जे टकी रहेल छे ते आत्मद्रव्य छे. जे आत्मा पहेलांं अज्ञानरूप हतो ते ज अत्यारे ज्ञानरूप छे–आवी
पहेलांं–पछीनी जोडरूप जे पदार्थ ते द्रव्य छे. पर्यायो पहेलांं–पछीनी जोडरूप नथी, अवस्था तो पहेलांं–पछीनी
छूटी छूटी (व्यतिरेकरूप) छे, अने द्रव्य पहेलांं–पछीना संबंधरूप (अन्वयरूप) छे. एक अवस्था ते बीजी नहि,
बीजी अवस्था ते त्रीजी नहि–आम अवस्थामां जुदापणुं छे, पण जे द्रव्य पहेला समये हतुं ते ज बीजा समये
छे, बीजा समये हतुं ते ज त्रीजा समये छे–आम द्रव्यमां सळंग सदशपणुं छे.
जेम सोनानी अवस्थाना घाट अनेक प्रकारना थाय छे, तेमां वींटीरूप घाट वखते कुंडळ न होय, कुंडळरूप
घाट वखते कडुं न होय–एम दरेक पर्यायना घाटनुं जुदापणुं छे, पण जे सोनुं वींटीरूपे हतुं ते ज सोनुं कुंडळरूपे
छे, जे कुंडळरूपे हतुं ते ज कडारूपे छे–बधा घाटमां सोनुं तो एक ज छे, कया घाट वखते सोनुं नथी? बधी
अवस्था वखते सोनुं छे, तेम अज्ञानदशा वखते साधकदशा न होय, साधकदशा वखते साध्यदशा न होय–आ
रीते दरेक पर्यायनुं जुदापणुं छे. पण जे आत्मा अज्ञानदशामां हतो ते ज साधकदशामां छे, अने जे साधकदशामां
हतो ते ज साध्यदशामां छे, बधी अवस्थामां आत्मद्रव्य तो एक ज छे, कई अवस्थामां आत्मा नथी? बधी
अवस्थामां कायम साथे रहीने गमन करनार आत्मद्रव्य छे.
पहेलांं अने पछी जे टकी रहे ते द्रव्य छे. अरिहंत प्रभुनो आत्मा पोते ज पहेलांं अज्ञानदशामां हतो
अने अत्यारे अरिहंतदशामां पण ते ज छे–आ प्रमाणे अरिहंतना आत्मद्रव्यने ओळखवुं. आ ओळखाण करतां
एम प्रतीत थाय छे के अत्यारे अधूरी दशा होवा छतां पूर्ण अरिहंतदशामां पण हुं ज टकी रहेवानो छुं, आमां
आत्मानुं त्रिकाळीपणुं लक्षमां आव्युं.
– गुण –
‘अन्वयनुं विशेषण ते गुण छे.’ पहेलांं द्रव्यनी व्याख्या करीने हवे गुणनी व्याख्या करे छे. कडुं–कुंडळ
अने वींटी बधी अवस्थामां रहेनार सोनुं ते द्रव्य छे एम तो कह्युं, परंतु सोनुं केवुं छे? सोनुं पीळुं छे, सोनुं
भारे छे, सोनुं चीकणुं छे–एम पीळाश, वजन अने चीकाश विशेषणो सोनाने लागु पाड्यां, तेथी ते पीळाशादि
सोनाना गुण छे, तेम अरिहंतनी पूर्व–पछीनी अवस्थामां जे टकी रहे ते आत्मद्रव्य छे एम कह्युं, परंतु
आत्मद्रव्य केवुं छे? आत्मा ज्ञानस्वरूप छे, आत्मा दर्शनस्वरूप छे, आत्मा चारित्रस्वरूप छे–एम ज्ञान, दर्शन,
चारित्र विशेषणो आत्मद्रव्यने लागु पडे छे माटे ज्ञानादि आत्मद्रव्यना गुण छे. द्रव्यनी शक्तिने गुण कहेवाय
छे. आत्मा ते चेतनद्रव्य छे अने चैतन्य तेनुं विशेषण छे. परमाणुमां जे पुद्गल ते द्रव्य छे अने वर्ण, गंध
वगेरे तेना विशेषणो–गुणो छे. वस्तुमां कांईक विशेषण तो होय ज. जेम कडवाश ते अफीणनुं विशेषण छे,
गळपण ते गोळनुं विशेषण छे, तेम आत्मद्रव्यनुं विशेषण शुं? अरिहंत भगवान आत्मद्रव्य कई रीते छे ते
पूर्वे कह्युं छे, अरिहंतमां राग जरापण नथी, अने पूरेपुरूं ज्ञान छे एटले के ज्ञान ते आत्मद्रव्यनुं विशेषण छे.
अहीं मुख्यपणे ज्ञानथी वात करी छे, तेवी रीते दर्शन, चारित्र, वीर्य, अस्तित्व वगेरे अनंत गुणो छे ते बधा
आत्माना विशेषणो छे. अरिहंत ते आत्मद्रव्य छे अने ते आत्मामां अनंत सहवर्ती गुणो छे, तेवो ज हुं पण
आत्मद्रव्य छुं अने मारामां ते बधा गुणो वर्ती रह्या छे. आम जे अरिहंतना आत्माने द्रव्य–गुण पणे जाणे ते
पोताना आत्माने पण द्रव्य–गुणपणे जाणे, द्रव्य–गुणने जाणतां हवे पर्यायमां शुं करवुं ते पोते समजे छे अने
तेथी तेने धर्म थाय छे. द्रव्य–गुण तो जेवा अरिहंतने छे तेवा ज बधा आत्माने सदा एकरूप छे, द्रव्यगुणमां तो
फेर नथी, अवस्थामां संसार–मोक्ष छे. द्रव्य–गुणमांथी पर्याय प्रगटे छे तेथी पोताना द्रव्य–गुणने ओळखीने ते
द्रव्य–गुणमांथी पर्यायनो जेवो घाट पोते घडे तेवो करी शकाय छे.
आ रीते द्रव्यपणे अने गुणपणे आत्मानी ओळखाण करावी, तेमां गुण छे ते द्रव्यने ज ओळखावनार छे.
– पर्याय –
‘अन्वयना व्यतिरेको ते पर्यायो छे’–आमां पर्यायोनी व्याख्या छे. द्रव्यना जे भेदो ते पर्यायो छे. द्रव्य
तो त्रिकाळ छे, ते द्रव्यने क्षणक्षणना भेदपणे (एटले के क्षणक्षणवर्ती हालतपणे) लक्षमां लेवुं ते पर्याय छे.
पर्यायनो स्वभाव व्यतिरेकरूप छे एटले एक पर्याय वखते बीजी पर्याय होय नहि. गुणो अने द्रव्य सदा साथे
होय पण पर्याय एक पछी एक होय छे. अरिहंतप्रभुने केवळज्ञान पर्याय छे ते वखते पूर्वनी अधूरी ज्ञानदशा
होती नथी. वस्तुना जे एक एक समयना जुदा जुदा