अभेदनुं जाणपणुं छे, आ जाणवा वखते परलक्ष तेम ज द्रव्य–गुण–पर्यायना भेदनुं लक्ष छुटी गयुं छे.
करीने’ आमां पहेलां बोलमां पर्यायने द्रव्य साथे अभेद करवानी वात छे अने बीजामां गुणने द्रव्य साथे अभेद
करवानी वात छे. आ रीते पर्यायने अने गुणने द्रव्यमां अभेद करवानी वात क्रमथी समजावी छे, पण अभेदनुं
लक्ष करतां ते क्रम पडता नथी. जे क्षणे अभेद द्रव्य तरफ ज्ञान ढळ्युं ते ज क्षणे पर्यायभेद अने गुण–भेदनुं लक्ष
एक साथे टळी जाय छे, समजाववामां तो क्रमथी ज वात आवे.
आत्मा ज्ञानस्वभावी छे’ एवा गुण–गुणी भेदनी कल्पना दूर करीने गुणने द्रव्यमां ज अद्रश्य करवा. एकला
आत्माने लक्षमां लेतां ज्ञान अने आत्माना भेद संबंधी विचार अलोप थई जाय छे, गुण–गुणी भेदनो विकल्प
तुटीने एकाकार चेतन्यस्वरूपनो अनुभव थाय छे–आ ज सम्यग्दर्शन छे.
संबंधी विकल्पो छूटीने–मोती अने धोळाशने हारमां ज अद्रश्य करीने एकला हारनो ज अनुभव करवामां आवे
छे, तेम पहेलांं अरिहंतनो निर्णय करीने द्रव्य, गुण, पर्यायना स्वरूपने जाणे के आवी पर्याय मारूं स्वरूप छे,
आवा मारा गुणो छे अने हुं अरिहंत जेवो ज आत्मा छुं; आम विकल्प द्वारा जाण्या पछी पर्यायोना
अनेकभेदनुं लक्ष छोडीने ‘हुं ज्ञानस्वरूप आत्मा’ एम गुण–गुणी भेदवडे आत्माने लक्षमां ल्ये अने पछी तो
द्रव्य, गुण के पर्याय ए त्रणे संबंधी विकल्पो छोडीने एकला आत्मानो अनुभव करवा टाणे ते गुणगुणी भेद
पण गुप्त थई जाय छे–अर्थात् ज्ञान गुण आत्मामां ज समाई जाय छे, आ रीते केवळ आत्मानो अनुभव करवो
ते सम्यग्दर्शन छे.
समावी दईने–तेमना परनुं लक्ष छोडी दईने केवळ हारने ज जाणे छे. जो एम न करे तो हार पहेर्यानी स्थितिमां
पण धोळाश वगेरेना विकल्पो रहेवाथी हार पहेर्यानुं सुख वेदी शके नहि.” तेम आत्मस्वरूप समजनार
समजती वखते तो द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेनुं स्वरूप विचारे छे परंतु पछी गुण अने पर्यायने द्रव्यमां ज समाई
दईने–तेमना परनुं लक्ष छोडी दईने केवळ आत्माने ज जाणे छे. जो एम न करे तो द्रव्यनुं स्वरूप ख्यालमां
आववा छतां पण गुण–पर्याय संबंधी विकल्प रहेवाथी द्रव्यनो अनुभव करी शके नहि.
पहेली क्रिया छे, आ ज क्रियाथी अनंता अरिहंत–तीर्थंकरो क्षायकसम्यग्दर्शन पामीने केवळज्ञान अने मोक्षदशाने
प्राप्त थया छे, वर्तमानमां पण मुमुक्षुओने माटे आ ज उपाय छे अने भविष्यमां अनंत तीर्थंकरो थशे ते बधा
आ ज उपायथी थवाना छे.
जेवा अरिहंतना द्रव्य–गुण–पर्याय छे तेवा ज पोताना छे; अरिहंतने राग–द्वेष नथी, शरीरनुं कांई करता नथी,
परनुं कांई करता नथी, तेम ज दया के हिंसानी विकारी लागणीओ तेमने नथी, तेओ एकलुं ज्ञान ज करे छे तेम
हुं पण ज्ञान करनार ज छुं, बीजुं कांई मारूं स्वरूप नथी; वर्तमान मारा ज्ञानमां कचाश छे ते मारी अवस्थाना
दोषने कारणे छे, अवस्थानो दोष ते पण