अभेद चैतन्यस्वभावी भगवान आत्मामां लक्ष करीने त्यां ज एकाकारपणे प्रवर्तता ते जीवने चैतन्यनो अकंप
प्रकाश प्रगटतां मोहअंधकारने रहेवानुं कोई स्थान रह्युं नहि एटले ते मोहांधकार निराश्रय थयो थको
अवश्यमेव क्षय पामे छे. ज्यारे भेद तरफ ढळतो त्यारे अभेदचैतन्यस्वभावनो आश्रय न होवाथी चैतन्यप्रकाश
प्रगट न हतो अने अज्ञानना आश्रये मोहअंधकार टकी रह्यो हतो, हवे अभेद चैतन्यना आश्रयमां पर्याय ढळी
गई अने सम्यग्ज्ञान प्रकाश प्रगट्यो पछी मोह कोना आश्रये रहे? मोहनो आश्रय अज्ञान हतुं तेनो तो नाश
थयो छे, स्वभावना आश्रये मोह रही शके नहि माटे ते क्षय ज पामे छे. ज्यारे पर्यायनुं लक्ष परमां हतुं त्यारे ते
पर्यायमां भेद हतो अने ते भेदनो आश्रय मोहने हतो, पण ज्यारे ते पर्याय स्वलक्षमां वळी त्यारे ते अभेद
थई अने अभेद थतां मोहने कांई आश्रय न रह्यो तेथी आश्रय रहित थयेलो ते मोह जरूर क्षय पामे छे.
बंने विकार छे आम जाणीने पुण्य–पाप बंनेमां समभाव थई जाय छे ते ज श्रद्धारूपी सामायिक छे. पुण्य सारूं
अने पाप खराब एम मानीने जे पुण्यने आदरणीय गणे छे तेना भावमां पुण्य पाप वच्चे विषमभाव छे, तेने
साची श्रद्धारूपी सामायिक नथी. साची श्रद्धा थतां मिथ्यात्वभावथी पाछो फरी गयो ते ज प्रथममां प्रथम
प्रतिक्रमण छे. सौथी मोटो दोष मिथ्यात्व छे अने सौथी पहेलांं ते मोटादोषथी ज प्रतिक्रमण थाय छे, मिथ्यात्वथी
प्रतिक्रमण कर्या वगर कोई जीवने साचुं प्रतिक्रमणादि कांई होय नहि.
निराश्रय थईने नाश पाम्यो, अने ए रीते अरिहंतने जाणनार जीवने सम्यग्दर्शन थयुं.
भगवान द्रव्य–गुण–पर्यायस्वरूपे संपूर्ण शुद्ध छे, जेवा अरिहंत छे तेवो ज्यांसुधी आ आत्मा न थाय त्यांसुधी
तेनी पर्यायमां दोष छे–अशुद्धता छे. अरिहंत जेवी अवस्था क्यारे थाय? पहेलांं अरिहंत उपरथी पोताना
आत्मानुं शुद्ध स्वरूप नककी करे अने ते शुद्ध स्वरूपमां एकाग्रता करीने, भेदने तोडी, अभेद स्वभावनो आश्रय
करतां पराश्रय बुद्धि नाश थाय छे, मोह टळे छे अने क्षायकसम्यकत्व थाय छे, क्षायकसम्यकत्व थतां अंशे
अरिहंत जेवी दशा प्रगटी; अरिहंत थवा माटे शरूआतनो उपाय सम्यग्दर्शन ज छे. अभेद स्वभावना भानद्वारा
सम्यग्दर्शन थया पछी जेम जेम ते स्वभावमां एकाग्रता वधती जाय छे तेम तेम राग टळतो जाय छे, अने जेम
जेम राग टळतो जाय छे तेम तेम व्रत, महाव्रतादि आवतां जाय छे; पण अभेद स्वभावना भान वगर कदी
पण व्रत के महाव्रत होतां नथी. पोताना आत्मानो आश्रय लीधा वगर आत्माना आश्रये प्रगटनारी
निर्मळदशा (श्रावकदशा, मुनिदशा वगेरे) होई शके नहि, अने निर्मळदशा प्रगट्या वगर धर्मनुं एकेय अंग
होय नहि. अरिहंतनी ओळखाण थतां पोतानी ओळखाण थाय छे अने पोतानी ओळखाण थतां मोहक्षय पामे
छे, माटे अरिहंतनी साची ओळखाण ते मोहक्षयनो उपाय छे.