करवानी वात छे. पोताना स्वभावनी निःशंकता न आवे तो अरिहंतना स्वरूपनो यथार्थ निर्णय नथी. आचार्य
भगवान पोताना स्वभावनी निःशंकताथी कहे छे के भले आ काळे क्षायकसम्यकत्व अने साक्षात् श्री अरिहंतनो
जोग नथी तोपण में मोहनी समस्त सेनाने जीतवानो उपाय मेळव्यो छे. पंचमकाळे मोहनो सर्वथा क्षय नथी–
वर्तमान ज मोहक्षयनो उपाय में मेळवी लीधो छे. अहो! संपूर्ण स्वरूपी आत्मानो साक्षात् अनुभव छे तो पछी
शुं नथी? आत्मानो स्वभाव ए ज मोहनो नाशक छे अने ए स्वभावनी प्राप्ति तो मने थई छे, तेथी मोहनो
क्षय थशे तेमां शंका पडती नथी. आत्मामां बधुं ज छे तेना ज जोरे दर्शनमोह अने चारित्रमोह बंनेनो सर्वथा
क्षय करीने केवळज्ञान प्रगट करीने साक्षात् अरिहंतदशा प्रगट करशुं. आवी संपूर्ण स्वभावनी निःशंकतानुं जोर
न आवे त्यां सुधी मोह टळे नहि.
अनंती हिंसा करतो, हवे साचुं भान करतां पोतानी साची दया प्रगटी अने स्वहिंसानुं महापाप टळी गयुं.
थयो. केवळज्ञानगम्य त्रिकाळ अवस्थाओ एक पछी एक थया ज करे छे. खरेखर तो मारा स्वभावमां जे
क्रमबद्ध अवस्था छे ते ज केवळज्ञानीए जाणी छे. (आ अभिप्रायनुं जोर स्वभाव तरफ ढळे छे) –आवो जेणे
निर्णय कर्यो तेणे पोताना स्वभावनी प्रतीति करी छे, स्वभावनी प्रतीति होय तेने पोतानी पर्यायनी शंका न
नथी; “घणा कर्मनो तीव्र उदय आवे तो हुं पडी जईश” आवी शंका ज्ञानीने कदापी न होय. ज्यां पाछा पडवानी
शंका छे त्यां स्वभावनी प्रतित नथी; अने ज्यां स्वभावनी प्रतित छे त्यां पाछा पडवानी शंका नथी. जेणे
अरिहंत जेवा ज पोताना स्वभावनो भरोसो करीने क्रमबद्ध–पर्याय अने केवळज्ञानने स्वभावमां समाडया तेने
क्रमबद्ध पर्यायमां केवळज्ञान थाय छे.
प्रगटवानी छे. आम जेने पोतानी अरिहंतदशानी प्रतीत न आवे तो तेने पोताना आखा द्रव्यनी प्रतीत नथी. जो
द्रव्यनी प्रतीत होय तो द्रव्यनी क्रमबद्धदशा खीलीने अरिहंतदशा थाय छे तेनी प्रतीति होय. मारा द्रव्यमांथी
नथी, केमके मारा स्वभावमां कर्मनी नास्ति ज छे. ‘आगळ जतां तीव्र कर्म उदयमां आवशे तो पडी जवाशे’ आवी
जेने शंका छे तेणे अरिहंतनो स्वीकार कर्यो नथी. अरिहंतो पोताना पुरुषार्थना जोरे कर्मनो क्षय करीने पूर्णदशा
पाम्या छे तेम हुं पण मारा पुरुषार्थना जोरे कर्मनो क्षय करीने पूर्णदशा पामवानो छुं, वच्चे कोई विघ्न नथी....
आ भागमां केवळी वीतराग भगवाननी निश्चयस्तुति अने व्यवहारस्तुतिनुं यथार्थस्वरूप
सुंदर रीते बताववामां आव्युं छे. पुष्ट २४१ किंमत २–०–० प्रकाशन–दिन वैशाख सुद–२.