: १२६ : आत्मधर्म : वैशाख : २४७२ :
– ज्ञान गोष्टि –
[वीर सं. २४७१ मां उनाळानी रजा दरमियान जैनदर्शन शिक्षणवर्गना विद्यार्थीओए करेला
प्रश्नोत्तर: आ पहेलांंनां १ थी ६८ प्रश्नोत्तर आत्मधर्म अंक २९ मां आपवामां आव्या छे.]
६९. प्रश्न–कुदेव–कुगुरुनी भक्ति करवाथी जीवने शुं लाभ थाय?
उत्तर–कुदेव–कुगुरुनी भक्ति करवाथी जीवने कांई ज लाभ न थाय पण महान अज्ञानने लीधे
मिथ्यात्वने पोषण आपीने अनंत संसारमां रखडे.
७०. प्र–अगृहीत मिथ्यात्वनुं फळ शुं? अने गृहीत मिथ्यात्वनुं फळ शुं?
उ–बंनेनुं फळ संसार ज छे; अगृहीत मिथ्यात्व अनादिथी चाल्युं आवे छे, गृहीत मिथ्यात्व नवुं ग्रहण
करेलुं छे. अने ते गृहीत मिथ्यात्व अगृहीत मिथ्यात्वने पोषण आपे छे.
प्र–मिथ्याज्ञान अने सम्यग्ज्ञान वच्चे शुं तफावत छे?
उ–मिथ्याज्ञान ते संसारनुं कारण छे, सम्यग्ज्ञान ते मोक्षनुं कारण छे. अनादिथी जीवने मिथ्याज्ञान छे, जे
जीव साची समजण करे तेने सम्यग्ज्ञान थईने अल्प काळमां मोक्ष थाय. मिथ्याज्ञानी जीव सदाय ‘पुण्यथी धर्म थाय
अने शरीरादिनुं हुं करी शकुं’ एम माने छे पण सम्यग्ज्ञानी जीव कदापी ‘पुण्यथी धर्म थाय के शरीरादिनी क्रिया हुं
करी शकुं’ एम मानता नथी, आ ज मिथ्यात्व अने सम्यग्ज्ञान वच्चे आकाश–पाताळ जेवडो महान तफावत छे.
७२. प्र–जेने सुचारित्र होय अने जेने कुचारित्र होय तेमने गृहीत मिथ्यात्व होय के नहि?
उ–जेने सुचारित्र होय तेने तो मिथ्यात्व होय ज नहि, अने जेने कुचारित्र होय तेमां कोईने गृहीत
मिथ्यात्व होय अने कोईने न पण होय.
७३. प्र–गृहीत मिथ्यात्व छुटवाथी सम्यग्दर्शन थई शके के नहि?
उ–ना, फक्त गृहीत मिथ्यात्व छुटवाथी ज सम्यग्दर्शन थई शकतुं नथी, पहेलांं गृहीत मिथ्यात्व छोडीने
जो आत्मानी साची समजण करे तो ज सम्यग्दर्शन थाय छे. गृहीत मिथ्यात्व छोडीने पण जो साचा देव–गुरु–
शास्त्र तरफ ज रोकाई जाय पण पोताना आत्मानी साची समजण न करे तो तेने सम्यग्दर्शन थतुं नथी. अने
अगृहीत मिथ्यात्व टळतुं नथी. गृहीत अने अगृहीत बंने मिथ्यात्व टाळे तेने ज सम्यग्दर्शन थाय छे.
७४. प्र–पहेलांं गृहीत मिथ्यात्व टळे के अगृहीत?
उ–पहेलां गृहीत मिथ्यात्व टाळ्या वगर कदी पण अगृहीत मिथ्यात्व टळे नहि. कोईने गृहीत अने
अगृहीत बंने साथे पण टळी जाय; परंतु अगृहीत टळे अने गृहीत न टळे एम तो कदापी न बने; जेने गृहीत
मिथ्यात्व होय तेने अगृहीत मिथ्यात्व पण होय ज.
७५. प्र–एक जीव कोमळ वस्तु वडे पूंजे छे अने एम माने छे के मने आ क्रियाथी धर्म थाय छे, ते ज
वखते बीजो जीव लडाई लडे छे अने तेने आत्मानी ओळखाण छे के पुण्य–पाप मारूं स्वरूप नथी–तो आ बे
जीवोमांथी ते वखते कोने वधारे पाप थतुं हशे?
उ–जे जीव पूंजवानी क्रियाथी धर्म माने छे ते जीवने वधारे पाप छे केमके पूंजणी ते तो जडनी क्रिया छे
अने जडनी क्रियानो पोताने कर्ता माने छे तेथी तेने ते वखते मिथ्यात्वनुं महापाप बंधाय छे. परनी क्रियानो हुं
कर्ता नथी अने पुण्य–पापथी मने धर्म नथी एम समजनार ज्ञानी जीवने लडाई वखते पण मिथ्यात्वनुं महापाप
तो बंधातुं ज नथी; साची श्रद्धा होवाने लीधे लडाई वखते पण तेने आत्मभान वर्ते छे अने अज्ञानीने साची
श्रद्धा नहि होवाथी पूंजती वखते पण ते संसार ज वधारी रह्यो छे. साची समजण वगर आत्माने कोई रीते
लाभ थाय नहि अने आत्मानी अणसमजण जेटलुं नुकशान आत्माने बीजी कोई रीते थतुं नथी.
७६. प्र–“आ शरीर जीवने दुःखी करे छे” आ वाक्यमां कांई भूल छे?
उ–ते वाक्य खोटुं छे. खरेखर शरीर जीवने दुःखी करतुं ज नथी पण शरीर प्रत्येनो जीवनो मोहभाव छे
ते ज जीवने दुःखी करे छे. जीवने सुख–दुःख पोतानां ज भावथी थाय छे, पण शरीरथी सुख–दुःख थतुं नथी.
७७. प्र–रागद्वेष वधारे नुकशान करे के राग–द्वेषने पोतानां मानवां ते?
उ–राग–द्वेषने पोतानां मानवां ते ज सौथी वधारे नुकशाननुं कारण छे. राग–द्वेष ते तो चारित्रनो दोष
छे अने राग–द्वेषने पोतानां मानवा ते श्रद्धानो दोष छे, श्रद्धानो दोष सर्व दोषनुं मूळ छे.
अनुसंधान पान–१२९