उपभोग करे छे ते सर्व निर्जरानुं निमित्त छे; अने तेमां ज मोक्षअधिकारमां छठ्ठा गुणस्थाने मुनिने जे
प्रतिक्रमणादिनी शुभवृत्ति उठे तेने विषकुंभ कहेल छे. सम्यग्द्रष्टिनी अशुभ लागणी ते निर्जरानुं कारण अने
मुनिनी शुभ लागणी ते झेर–आनो मेळ कई रीते छे?
अपेक्षाए ते वात करी छे.
लागणी उठे ते तारा शुद्धात्म चारित्रने अने केवळज्ञानने रोकनार छे माटे ते झेर छे.
छे. जो भोगथी निर्जरा थती होय तो वधारे भोगथी वधारे निर्जरा थाय!! एम तो होय नहि. सम्यग्द्रष्टिने जे
रागनी वृत्ति उठे छे तेने द्रष्टि अपेक्षाए तो ते पोतानी मानता ज नथी, ज्ञान अपेक्षाए ‘पोताना पुरुषार्थनी
नबळाई छे तेथी राग थाय छे’ एम जाणे छे अने चारित्र अपेक्षाए ते रागने झेर माने छे, दुःख–दुःख लागे छे.
आ रीते दर्शन–ज्ञान अने चारित्रमांथी ज्यारे दर्शननी मुख्यताथी वात चालती होय त्यारे सम्यग्द्रष्टिना भोगने
पण निर्जरानुं ज कारण कहेवाय छे. स्वभावद्रष्टिना जोरे समये समये तेनी पर्याय निर्मळ थती जाय छे एटले
क्षणे क्षणे ते मुक्त ज थता जाय छे. राग थाय छे तेने जाणे छे खरा, परंतु स्वभावमां तेने अस्तिपणे मानता
नथी; अने आ मान्यताना जोरे ज रागनो सर्वथा अभाव करे छे. तेथी साची द्रष्टिनो अपार महिमा छे.
एम कहेवामां आवे छे, परंतु श्रद्धा साथे चारित्रनी अपेक्षा भूलवी न जोईए.
माने ते अशुभ लागणीने तो सारी केम माने? जेणे स्वभावना भानमां शुभवृत्तिने पण झेर मान्युं छे ते जीव
स्वभावना जोरे शुभवृत्तिने तोडीने पूर्ण शुद्धता प्रगट करशे, परंतु अशुभने तो कदापि आदरणीय नहि माने.
प्रयत्नवडे ते टाळवा मांगे छे, ज्ञान अपेक्षाए, जेटलो राग छे तेनो सम्यग्द्रष्टि ज्ञाता छे पण रागने निर्जरा के
मोक्षनुं कारण मानता नथी, अने जेम जेम पर्यायनी शुद्धता वधारतां राग टळतो जाय छे तेम तेम तेनुं ज्ञान
करे छे. आ रीते श्रद्धा–ज्ञान अने चारित्र ए त्रणे अपेक्षाए आ स्वरूप समजवुं जोईए.