Atmadharma magazine - Ank 031
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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: १३० : आत्मधर्म : वैशाख : २४७२ :
श्रश्ररु न्ि
वैशाख सुद–२.......... आजे भक्तमंडळना हृदय आनंदथी उल्लसी
रह्यां छे...बधानी मूद्रा उपर भक्ति रेलाई रही छे......आजे भक्तोने आटलो
बधो भक्तितो उल्लास केम छे?...अहा, आजे तो संपूर्ण आत्मस्वरूपनी
प्राप्तिनो अप्रतिहतमार्ग दर्शावनारा श्री सद्गुरुजीनो भेटो थयो
छे...आजना दिवसे तेओश्रीए भारतभुमिने पावन करी छे...


हे स्वरूपदान दातार परम कृपाळु दयानिधि श्री सद्गुरुदेव! आजना महा पवित्र मंगळिक प्रसंगे
आपश्री प्रत्ये विनयपूर्वक अर्पणता करीए छीए–भाव–अंजलि अर्पिए छीए....
शुद्धात्मस्वरूपमां आपश्रीनो उत्साहभाव, ज्ञायकस्वरूप प्रत्येनी आपनी भक्ति अने पवित्र करुणाथी
भरपूर आपनो शासनप्रेम–ए सर्वे गुणो पर अमारूं शीर नमी पडे छे.
हे गुरुदेव! आपश्रीना उपकारोने केवी रीते वर्णवीए? ज्यारे ज्यारे आपश्रीना उपकारोने स्मरणमां
लईए छीए त्यारे त्यारे आपश्रीना पावनकारी साक्षात् दर्शनना महाभाग्यने लीधे अमारूं हृदय हर्षथी खीली
ऊठे छे. आपश्रीना पवित्र योगे, आजे श्री कुंदकुंदप्रभुजीना जीवंत अक्षरदेहरूप “समयसार” चेतनवंत थईने,
भव्यात्माओने शुद्धात्मानुं दर्शन करावे छे... अमसारीखडां अनेक जीवो पर आपश्रीना परम उपकारनी अपार
भक्तिथी अमे–समस्त भक्त मंडळ आपश्रीने भाव–अंजलि अर्पिए छीए.
अहा! आप तो स्वरूप–जीवन जीवनारा छो. ए अध्यात्मज्ञानथी ऊछळता आपश्रीना आत्मजीवनने–
आपश्रीना स्वरूप–जीवनने अमे कई रीते वर्णवीए? नाथ! आपश्री स्वयं ज ज्ञानी पुरुषोनुं पवित्र जीवन–
रहस्य अमने अहर्निश दर्शावी रह्या छो–ए अंतर्जीवनने ओळखवानी अमोने शक्ति प्रगटो!
हे गुरुदेव! आपे वहावेली अध्यात्मज्ञाननी सरिताए अनेक आत्मार्थीओने आत्मजीवन अर्प्युं छे अने
आजे अर्पे छे. घणा वर्षोना दुष्काळ पछी अमृतवर्षा वरसतां तृषातूर जीवोने केटलो आनंद थाय अने केटली
होंशथी ते अमृतवर्षा झीले...?...तेम–अनादि अनादि काळथी बेभानदशामां अमृतस्वरूप परमशुद्धात्माना विरह
पड्या, स्वरूपना पान वगर वर्षोनां वर्षो अने भवोनां भवो वीती गयां...अनंत काळथी जन्म–मरणना आतापमां
रखडतां क्यांय स्वरूपना पाननो छांटोय न मळ्‌यो अने जीवन शोषावा लाग्युं...दुःखनुं असह्यवेदन थई
पड्युं...हवे...शांतिस्वरूपना पाननी अति झंखना जागृत थई...एवा टाणे...,हे गुरुदेव! आपश्री पवित्र वाणीद्वारा
स्वरूपानुभवना धोधमार वरसाद वरसावीने आत्मतृषित जीवोने संपूर्ण स्वरूपामृतनुं पान करावी रह्यां छो!....
हे परम उपकारी श्री सद्गुरुदेव! अनंत संसारमां रखडता जीवोने आप अपूर्व करुणापूर्वक आत्मस्वरूपनो
भेटो करावो छो....स्वरूपने भेटतां कया जीवने उल्लास न जागे? कोण जीव स्वरूपनुं पान न करे? अम जीवोने
वर्तमानकाळे दिव्यध्वनिना संदेशनो बोध आपनार आप ज छो. संसारना थाकथी थाकेला जगतना भवकलांत
जीवोने आप विसामारूप छो...अने ज्ञानामृतना पानद्वारा तेमने शांति आपीने स्वरूपना अमृतमार्गमां आपे ज
स्थित कर्यां छे,–आप स्थित करो छो. आपश्रीना पुनित प्रतापे आजे शासननो जयकार वर्ती रह्यो छे.
हे गुणभंडार गुरुदेव! अमे पामर जीवो आपश्रीनी शुं स्तवना करीए? अमारी कोई वाणी वडे,
अमारा कोई शब्दो वडे के अमारा अल्पज्ञान वडे आपनी स्तवना थई शके तेम नथी. आपश्रीना पवित्र गुणो
प्रत्ये अत्यंत उल्लास आवतां हृदयमां भक्ति उछळ्‌या वगर रही शकती नथी–तेथी–आपश्रीनी कंईक अंशे
स्तवना करीए छीए.
आत्मउन्नतिनो सुमधुर मार्ग दर्शावीने अपूर्व स्वरूपसंपदानुं दान आपनार
दिव्य दानेश्वरी हे सद्गुरुदेव! आपश्रीने परमभक्तिए नमस्कार करीए छीए...
आपश्रीना पवित्र उपकारोनी विमल यादीमां फरी फरी नमस्कार करीए छीए.