Atmadharma magazine - Ank 032
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 10 of 17

background image
: जेठ : २४७२ : आत्मधर्म : १४९ :
नथी पण ज्ञानवडे ज नक्की थाय छे, अने ए रीते जाणनारूं ज्ञान पण प्रत्यक्षज्ञान जेवुं ज प्रमाणभूत छे.
जे कोई वस्तु वर्तमान अवस्था धारण करती होय ते वस्तु त्रिकाळ टकनार होय ज. जो त्रिकाळीपणुं न
होय तो तेने वर्तमान अवस्था पण होई शके नहि. जे जे वस्तुनी वर्तमान अवस्था जणाय छे ते ते वस्तुनुं
त्रिकाळ होवापणुं जाहेर करे छे. वर्तमानमां परमाणुनी अवस्था आ टोपी रूप छे ते एम जाहेर करे छे के पूर्वे
अमे कपास, दोरा वगेरे अवस्थारूपे हता अने भविष्यमां धूळ, अनाज वगेरे अवस्था रूपे रहेवाना; आ रीते
वर्तमान अवस्था वस्तुना त्रिकाळ होवापणानी जाहेरात करे छे. हवे विचारो के दूध पलटीने दहीं, दहीं पलटीने
माखण–घी, घी पलटीने विष्टा एम जे रूपांतर थया करे छे तेमां मूळ टकनारी कई वस्तु छे के जेना आधारे ते
रूपांतर थया करे छे? विचार करतां मालूम पडशे के नित्य टकनारी मूळ वस्तु परमाणु छे अने परमाणुओ
वस्तुपणे नित्य टकीने तेनी अवस्थामां रूपांतर थया करे छे. आ रीते सिद्ध थयुं के नजरे देखी शकातो न होवा
छतां पण परमाणु वस्तु छे.
जेम परमाणुनुं होवापणुं ज्ञान वडे नक्की करी शकाय छे तेवी रीते आत्मानुं होवापणुं पण ज्ञान वडे
नक्की करी शकाय छे. आत्मा न होय तो बधुं कोण जाणे? अरे, “आत्मा नथी” एवी शंका पण आत्मा सिवाय
बीजुं कोण करे? आत्मा छे अने ‘छे’ माटे ते त्रिकाळ टकनार छे.
जन्मथी मरण सुधीनो ज आत्मा नथी परंतु आत्मा त्रिकाळ छे. जन्म अने मरण ए तो शरीरना संयोग
अने वियोगनी अपेक्षाए छे, शरीरनी अपेक्षा काढी नाखो तो जन्म–मरण रहित आत्मा सळंगपणे त्रिकाळ छे.
खरेखर आत्मानो जन्म थतो नथी तेम ज आत्मानुं मरण थतुं नथी. आत्मा तो शाश्वत–अविनाशी वस्तु छे.
आत्मा वस्तु ज्ञान स्वरूप छे, ते पोताथी छे, पण शरीर वगेरे अन्य पदार्थोथी ते टकेलो नथी–एटले के
आत्मा पराधीन नथी, कर्मोने आधीन आत्मा नथी, आत्मा स्वाधीन छे.
– जीव अने अजीव –
‘आत्मा केवो छे’ एम प्रश्न थतां ज एटलुं तो तेमां आवी ज गयुं के आत्माथी विरूद्ध जातिवाळा एवा
बीजा पदार्थो पण छे अने तेनाथी आ आत्मानुं होवापणुं जुदुं छे; एटले आत्मा छे, आत्मा सिवाय परवस्तु छे
अने ते परवस्तुथी आत्मानुं स्वरूप जुदुं छे, तेथी आत्मा परवस्तुनुं कांई करी शकतो नथी एम पण आवी
गयुं, आटलुं यथार्थ समजे त्यारे जीव अने अजीवनुं होवापणुं नक्की कर्युं कहेवाय.
जीव पोते जाणनार स्वरूपे छे एम नक्की कर्युं तेमां ए पण आवी गयुं के जीव सिवायना बीजा पदार्थो
जाणनार स्वरूपे नथी. जीव जाणनार छे–चेतनस्वरूप छे एम कहेवानुं केम बन्युं? कारणके जाणपणाथी खाली–
अचेतन एवा अजीव पदार्थो पण छे, ते अजीव पदार्थोथी जीवनुं जुदापणुं ओळखी शकाय ते माटे जाणपणाचिह्नवडे
[चेतनपणावडे] जीवने ओळखाव्यो छे. जीव सिवायना बीजा कोई पण पदार्थोमां जाणपणुं नथी.
आ उपरथी जीव अने अजीव एवा बे जातना पदार्थोनुं होवापणुं नक्की थयुं. तेमांथी जीव द्रव्य संबंधी
तो अत्यार सुधीमां घणुं कहेवाई गयुं छे. अजीव पदार्थो पांच प्रकारना छे, तेमना नाम– पुद्गल, धर्म, अधर्म,
आकाश अने काळ. आ रीते कुल छ द्रव्यो थया–जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश अने काळ; तेमां एक जीव
ज ज्ञानवाळो छे, बाकीना पांचे ज्ञान वगरना छे, ते पांचे पदार्थो जीवथी विरुद्ध लक्षणवाळा होवाथी तेने
‘अजीव’ अथवा तो जड कहेवाय छे.
हवे आ छ द्रव्योनी विशेषपणे साबिती करवामां आवे छे: –
– १ – २. जीव द्रव्य अने पुद्गल द्रव्य –
जे स्थूळ पदार्थो नजरे देखाय छे एवां शरीर, पुस्तक, पत्थर लाकडुं वगेरेमां ज्ञान नथी एटले के ते
अजीव छे, ते पदार्थोने तो अज्ञानी पण जुए छे. ते पदार्थोमां वध–घट थया करे छे अर्थात् ते भेगां थाय छे
अने छूटा पडे छे–आवा नजरे देखाता पदार्थोने पुद्गल कहेवाय छे. रंग, गंध, रस अने स्पर्श ए गुणो पुद्गल
द्रव्यना छे, तेथी पुद्गल द्रव्य काळुं–धोळुं, सुगंधी–दुर्गंधी, खाटुं–मीठुं, हलकुं–भारे वगेरे प्रकारे जणाय छे, ए बधी
पुद्गलनी ज शक्ति छे. जीव तो काळो–धोळो, सुगंधी–दुर्गंधी वगेरे रूपे नथी, जीव तो ज्ञानवाळो छे. शब्द
अथडाय छे के बोलाय छे ते पण पुद्गलनी ज हालत छे. ते पुद्गलोथी जीव जुदो छे. लोकोमां बेभान माणसने
कहेवाय छे के–तारूं चेतन क्यां ऊडी गयुं?