ज्ञप्ति एकली ज रही गई अर्थात् आत्मअनुभव करवामां केवळी अने श्रुतकेवळीनुं समानपणुं ज थयुं.
अमे भेद पाडता ज नथी. तीर्थंकरनी वाणी सांभळीने अमे कहीए छीए अने जेने आ वात समजाणी ते बधा
अभेदपणे सरखा ज छे, साधक दशाना भेद गौण करीने साध्यपणे बधा सरखा ज छे. अहा! कुंदकुंद भगवंतना
ऊंडा–ऊंडा रहस्यने अमृतचंद्राचार्यदेवे टीकामां खूल्लां कर्यां छे. टीकामां घणी खीलवट करी छे....
अने अधर्मरूप असत् क्रियानो नाश थाय छे; साची समजणवडे बाल–युवान–वृद्ध सौ कोई जीवो सम्यग्दर्शन
प्राप्त करी शके छे, माटे वस्तु–स्वरूपनी साची समजण करवी. वस्तुस्वरूपनुं वर्णन करतां नव तत्त्वो, द्रव्य–पर्याय
निश्चय–व्यवहार, उत्पाद–व्यय–ध्रौव्य, अस्ति–नास्ति, नित्य–अनित्य, सामान्य–विशेष वगेरेनुं स्वरूप टुंकमां
बताव्युं हतुं. आ बधुं पूर्वे (अंक २६ तथा ३० मां) बतावाई गयुं छे. हवे छ द्रव्योनी विशेषपणे सिद्धि करीने
वस्तुस्वरूप संबंधी खास जाणवा जेवी केटलीक बाबतो जणाववामां आवे छे, अने छेवट तेनुं प्रयोजन
बतावीने आ विषय पूरो करवामां आवे छे.
(परमाणु) आंखद्वारा जाणी शकातो नथी पण ज्ञानद्वारा ते नक्की करी शकाय छे. जेम पाणी अने हाईड्रोजन
भेगां थतां ओकसीजन बने छे, त्यां ओकसीजनमां हाईड्रोजन के पाणी आंखथी देखातां नथी छतां ज्ञानथी ते
जाणी शकाय छे; तेम अनेक परमाणुओ भेगा थईने कागळ, सोनुं, लाकडुं वगेरे दश्यमान स्थूळ पदार्थोरूपे थया
छे ते उपरथी परमाणुनुं होवापणुं नक्की थई शके छे. जे जे स्थूळ पदार्थो देखाय छे ते बधाय परमाणुनी जातना
(अचेतन–वर्णादि सहित) जणाय छे, तेनो छेल्लो अंश ते परम–अणु छे; आथी नक्की थयुं के आंखथी न
देखावा छतां परमाणुनुं नित्य होवापणुं ज्ञानमां जणाय छे.
पेढी उपरनो बाप हतो–एम माने छे के नहि? वर्तमान पोते छे अने पोताने बाप छे तेथी सात पेढी पहेलानो
बाप पण हतो एम, नजरे जोया विना, निःशंकपणे नक्की करे छे; परंतु “मारा सात पेढी पहेलांना बापने
नजरे जोयो नथी माटे ते हशे के नहि” एम शंका थती नथी. वस्तुनुं होवापणुं आंख वडे नक्की थतुं