Atmadharma magazine - Ank 032
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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: १४८ : आत्मधर्म : जेठ : २४७२ :
भेद माने छे ज कोण? निमित्त छोड्युं एटले खरेखर तो निमित्तने अनुसरतो भाव ज दूर कर्यो छे–ए रीते
ज्ञप्ति एकली ज रही गई अर्थात् आत्मअनुभव करवामां केवळी अने श्रुतकेवळीनुं समानपणुं ज थयुं.
आमां तो एम आव्युं के एकला ज्ञानअनुभवनी जेने प्रतीत आवी ते जीव तीर्थंकरनी वाणीने समज्यो
छे, जेने केवळज्ञाननी ओळखाण थई तेने केवळीनी ओळखाण थई, जे तीर्थंकरनी वाणीने समज्यो छे ते जीव
तीर्थंकरोनी जातनो ज थई गयो छे. कुंदकुंद भगवानश्री कहे छे के अमारो उपदेश सांभळनारमां अने अमारामां
अमे भेद पाडता ज नथी. तीर्थंकरनी वाणी सांभळीने अमे कहीए छीए अने जेने आ वात समजाणी ते बधा
अभेदपणे सरखा ज छे, साधक दशाना भेद गौण करीने साध्यपणे बधा सरखा ज छे. अहा! कुंदकुंद भगवंतना
ऊंडा–ऊंडा रहस्यने अमृतचंद्राचार्यदेवे टीकामां खूल्लां कर्यां छे. टीकामां घणी खीलवट करी छे....
पात्रतानुं पहेलुं पगथियुं
: : : ग ह त अ न अ ग ह त म थ्य त्व न त्यग
[लेखांक त्रीजो: रा. मा. दोशी]
[मिथ्यात्व एटले आत्माना स्वरूपनी खोटी मान्यता; मिथ्यात्व ए ज सौथी मोटुं पाप छे अने ते ज
हिंसा छे; आत्मानी साची समजण वडे ते टाळी शकाय छे. साची समजण करतां ज धर्मनी सत्क्रिया शरु थाय छे
अने अधर्मरूप असत् क्रियानो नाश थाय छे; साची समजणवडे बाल–युवान–वृद्ध सौ कोई जीवो सम्यग्दर्शन
प्राप्त करी शके छे, माटे वस्तु–स्वरूपनी साची समजण करवी. वस्तुस्वरूपनुं वर्णन करतां नव तत्त्वो, द्रव्य–पर्याय
निश्चय–व्यवहार, उत्पाद–व्यय–ध्रौव्य, अस्ति–नास्ति, नित्य–अनित्य, सामान्य–विशेष वगेरेनुं स्वरूप टुंकमां
बताव्युं हतुं. आ बधुं पूर्वे (अंक २६ तथा ३० मां) बतावाई गयुं छे. हवे छ द्रव्योनी विशेषपणे सिद्धि करीने
वस्तुस्वरूप संबंधी खास जाणवा जेवी केटलीक बाबतो जणाववामां आवे छे, अने छेवट तेनुं प्रयोजन
बतावीने आ विषय पूरो करवामां आवे छे.
]
– वस्तुना होवापणानो निर्णय –
प्रश्न:– आत्मा अने परमाणु वस्तु छे एम कह्युं, परंतु जो परमाणु ते वस्तु होय तो ते आंखे केम
देखातां नथी? अने आत्मा पण आंखथी केम जणातो नथी? जे वस्तु होय ते आंखे जणावी तो जोईए ने?
उत्तर:– आंखथी देखाय तेटलुं ज मानवुं–ए सिद्धांत व्याजबी नथी; आंखथी देखाय तो ज ते वस्तु होई
शके–ए मान्यता बराबर नथी. वस्तु आंखथी न जणाय पण ज्ञानमां जाणी शकाय. एक छूटो रजकण
(परमाणु) आंखद्वारा जाणी शकातो नथी पण ज्ञानद्वारा ते नक्की करी शकाय छे. जेम पाणी अने हाईड्रोजन
भेगां थतां ओकसीजन बने छे, त्यां ओकसीजनमां हाईड्रोजन के पाणी आंखथी देखातां नथी छतां ज्ञानथी ते
जाणी शकाय छे; तेम अनेक परमाणुओ भेगा थईने कागळ, सोनुं, लाकडुं वगेरे दश्यमान स्थूळ पदार्थोरूपे थया
छे ते उपरथी परमाणुनुं होवापणुं नक्की थई शके छे. जे जे स्थूळ पदार्थो देखाय छे ते बधाय परमाणुनी जातना
(अचेतन–वर्णादि सहित) जणाय छे, तेनो छेल्लो अंश ते परम–अणु छे; आथी नक्की थयुं के आंखथी न
देखावा छतां परमाणुनुं नित्य होवापणुं ज्ञानमां जणाय छे.
वळी, जो एम कहेशो के अमे तो नजरे जोईए तेटलुं ज मानीए, बीजुं न मानीए; तो तेना समाधान
माटे पूछीए छीए के–पोताना सात पेढी पहेलाना बापने कोईए नजरे जोयो छे? नजरे जोयो नथी, छतां सात
पेढी उपरनो बाप हतो–एम माने छे के नहि? वर्तमान पोते छे अने पोताने बाप छे तेथी सात पेढी पहेलानो
बाप पण हतो एम, नजरे जोया विना, निःशंकपणे नक्की करे छे; परंतु “मारा सात पेढी पहेलांना बापने
नजरे जोयो नथी माटे ते हशे के नहि” एम शंका थती नथी. वस्तुनुं होवापणुं आंख वडे नक्की थतुं