आमां जीव अने पुद्गल ए बे द्रव्योनी साबिती थई.
एक वस्तु छे एम नक्की थयुं. जो आकाशथी पाताळ सुधी कांई ज वस्तु न होय तो ‘आकाशथी पाताळ सुधीनो
ते वस्तुने ‘आकाशद्रव्य’ कहेवाय छे, आ द्रव्य ज्ञानरहित छे अने अरूपी छे, तेनामां रंग, रस वगेरे नथी.
जाय छे. ते बधा काळमां अमारो हक्क छे, एम काळनो स्वीकार करे छे. तेमज ‘अमारी लीलीवाडी सदाय रहे’
एमां पण भविष्यकाळनो स्वीकार कर्यो. अहीं तो फक्त काळने सिद्ध करवा माटे लीलीवाडीनी वात छे;
लीलीवाडी रहेवानी भावना तो मिथ्याद्रष्टिनी ज छे. वळी ‘अमे तो सात पेढीथी सुखी छीए’ एम कहे छे त्यां
पण भूतकाळ स्वीकारे छे. भूतकाळ वर्तमानकाळ के भविष्यकाळ ए बधा प्रकार काळद्रव्यनी व्यवहार पर्यायना
छे आ काळद्रव्य पण अरूपी छे अने तेनामां ज्ञान नथी.
तो सिद्ध थाय छे, हवे बाकीना बे द्रव्योने सिद्ध करवां छे, ‘राजकोटथी सोनगढ आव्या’ आम कह्युं तेमां धर्म
द्रव्य सिद्ध थई जाय छे. राजकोथी सोनगढ आव्या एटले शुं? के जीव अने शरीरना परमाणुओनी गति थई,
एक क्षेत्रथी बीजुं क्षेत्र बदल्युं. हवे आ क्षेत्र बदलवाना कार्यमां निमित्त द्रव्य कोने कहेशो? केमके एवो नियम छे
के दरेक कार्यमां उपादान अने निमित्त कारण होय ज छे. जीव अने पुद्गलोने राजकोटथी सोनगढ आववामां
कयुं द्रव्य निमित्त छे ते विचारीए. प्रथम तो जीव अने पुद्गल ए उपादान छे, उपादान पोते निमित्त न
कहेवाय, निमित्त तो उपादानथी जुदुं ज होय. माटे जीव के पुद्गल ते क्षेत्रांतरनुं निमित्त नथी. काळद्रव्य ते तो
परिणमनमां निमित्त छे एटले के पर्याय बदलवामां ते निमित्त छे, पण क्षेत्रांतरनुं निमित्त काळद्रव्य नथी;
आकाश द्रव्य ते बधा द्रव्योने रहेवा माटे जग्या आपे छे, राजकोटमां हता त्यारे पण जीव अने पुद्गलने
नथी. तो पछी क्षेत्रांतररूप जे कार्य थयुं तेनुं निमित्त आ चार द्रव्यो सिवाय कोई अन्य द्रव्य छे एम नक्की थाय
छे. गति करवामां कोई एक द्रव्य निमित्त तरीके छे पण ते द्रव्य कयुं छे तेनो जीवे कदी विचार कर्यो नथी तेथी
तेनी तेने खबर नथी. क्षेत्रांतर थवामां निमित्तरूप जे द्रव्य छे ते द्रव्यने ‘धर्मद्रव्य’ कहेवाय छे. आ द्रव्य पण
अरूपी छे, अने ज्ञानरहित छे.
नथी, केमके आकाशनुं निमित्त तो रहेवा माटे छे, गति वखते पण रहेवामां आकाश निमित्त हतुं तेथी स्थितिनुं
निमित्त कोई अन्य द्रव्य जोईए. ते द्रव्य अधर्मद्रव्य छे, आ पण अरूपी छे अने ज्ञानरहित छे.