Atmadharma magazine - Ank 032
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४७२ : आत्मधर्म : १५१ :
द्रव्यो छे अने तेम मानवाथी ज यथार्थ वस्तुनी सिद्धि थाय छे. जो आ छ सिवाय सातमुं कोई द्रव्य होय तो तेनुं
कार्य बतावी आपो! एवुं कोई कार्य नथी के जे आ छ द्रव्योथी बहार होय, माटे सातमुं द्रव्य छे ज नहि. वळी,
जो आ छ द्रव्योमांथी एक पण ओछुं होय तो ते द्रव्यनुं कार्य कोण करे ते बतावी आपो! छमांथी एक पण द्रव्य
एवुं नथी के जेना वगर विश्व–नियम चाली शके!
– छ द्रव्यो विषे केटलीक माहिती –
१–जीव–आ जगतमां अनंत जीवो छे. जाणपणाना चिह्न (विशेष गुण) वडे जीव ओळखाय छे केमके
जीव सिवायना कोई पदार्थोमां जाणपणुं नथी. अनंत जीवो छे ते बधाय एक बीजाथी तद्न जुदा छे.
२. पुद्गल–आ जगतमां अनंतानंत पुद्गलो छे, स्पर्श, रस, गंध, रंग ए चिह्न वडे पुद्गलो ओळखाय
छे, केमके पुद्गलो सिवाय अन्य कोई पदार्थोमां स्पर्श, रस, गंध के रंग नथी. ईन्द्रियो द्वारा जे जे जणाय छे ते
बधुंय पुद्गल द्रव्यनां बनेलां स्कंधो छे.
३. धर्म–अहीं ‘धर्म’ कहेतां आत्मानो धर्म न समजवो, पण ‘धर्म’ नामनुं द्रव्य छे ते समजवुं. आ द्रव्य
एक अखंड छे ते आखा लोकमां रहेलुं छे. जीव अने पुद्गलोने गति करती वखते आ द्रव्य निमित्तरूप
ओळखाय छे.
४. अधर्म–अहीं ‘अधर्म’ कहेतां आत्माना दोष न समजवा परंतु ‘अधर्म’ नामनुं द्रव्य समजवुं. आ
एक–अखंड द्रव्य छे ते आखा लोकमां रहेलुं छे. जीव अने पुद्गलो गति करीने ज्यारे स्थिर थाय छे त्यारे आ
द्रव्य निमित्तरूप ओळखाय छे.
५. आकाश–आ एक अखंड सर्वव्यापक द्रव्य छे. बधा पदार्थोने जग्या आपवाना निमित्तरूप आ द्रव्य
ओळखाय छे. आ द्रव्यना जेटला भागमां अन्य पांचे द्रव्यो रहेलां छे तेटला भागने ‘लोकाकाश’ कहेवाय छे,
अने जेटलो भाग अन्य पांच द्रव्योथी खाली छे तेने ‘अलोकाकाश’ कहेवाय छे. ‘खाली जग्या’ कहेवाय छे तेनो
अर्थ ‘एकलुं आकाश’–एवो थाय छे.
६. काळ–असंख्य काळ द्रव्यो छे, आ लोकना असंख्य प्रदेशो छे ते दरेक प्रदेश उपर एक एक काळ–द्रव्य
रहेलुं छे. असंख्य काळाणुओ छे ते बधाय एक बीजाथी छुटा छे. वस्तुमां रूपांतर (फेरफार) थवामां निमित्तरूप
आ द्रव्य ओळखाय छे.
आ छ द्रव्योने सर्वज्ञ सिवाय कोई पण प्रत्यक्ष जाणी शके नहि. सर्वज्ञदेवे ज आ छ द्रव्यो जाण्या छे अने
तेओए ज तेनुं साचुं स्वरूप कह्युं छे, तेथी सर्वज्ञना सत्य मार्ग सिवाय अन्य कोई जग्याए छ द्रव्योनुं स्वरूप
होई शके ज नहि; केमके बीजा अपूर्ण जीवो ते द्रव्योने जाणी शके नहि; माटे छ द्रव्यना स्वरूपनी साची समजण
करवी जोईए.
– टोपी उपरथी छ द्रव्योनी सिद्धि –
जुओ, आ लुगडानी टोपी छे, ते अनंत परमाणुओ भेगा थईने बनेली छे अने ते फाटी जतां
परमाणुओ छूटा थाय छे, आ रीते भेगा थवुं अने छुटा थवुं एवो पुद्गलनो स्वभाव छे; वळी आ टोपी सफेद
छे, बीजी कोई काळी, राती वगेरे रंगनी टोपी पण होय छे; रंग ए पुद्गल द्रव्यनुं चिह्न छे, तेथी नजरे देखाय
छे ते पुद्गल द्रव्य छे (१). ‘आ टोपी छे पण चोपडी नथी’ एम जाणनार ज्ञान छे अने ज्ञान ते जीवनुं चिह्न
छे तेथी जीव पण सिद्धथयो. (२). हवे विचारीए के टोपी क्यां रहेली छे? जो के निश्चयथी तो टोपी टोपीमां ज
छे, परंतु टोपी टोपीमां ज छे एम कहेवाथी टोपीनो बराबर ख्याल न आवी शके, तेथी निमित्त तरीके “अमुक
जग्यामां टोपी रहेली छे” एम ओळखावाय छे. ‘जग्या’ कहेवाय छे ते आकाशद्रव्यनो अमुक भाग छे आ रीते
आकाशद्रव्य सिद्ध थयुं–(३).
ध्यान राखजो, हवे आ टोपी बेवडी वळे छे. टोपी ज्यारे सीधी हती त्यारे आकाशमां हती अने बेवडी
छे त्यारे पण आकाशमां ज छे, तेथी आकाशना निमित्त वडे टोपीनुं बेवडापणुं ओळखी शकातुं नथी. तो पछी
टोपीनी बेवडी थवानी क्रिया थई तेने कया निमित्त वडे ओळखशुं? टोपी बेवडी थई एटले के पहेलांं तेनुं क्षेत्र
लांबु हतुं हवे ते टुंका क्षेत्रमां रहेली छे–आ रीते टोपी क्षेत्रांतर थई छे अने ते क्षेत्रांतर थवामां जे वस्तु निमित्त
छे ते धर्मद्रव्य छे– (४). हवे टोपी वळांकरूपे स्थिर पडी छे, तो स्थिर पडी छे एमां तेने कोण निमित्त छे?
आकाश द्रव्य तो मात्र जग्या आपवामां निमित्त छे. टोपी चाले के स्थिर रहे तेमां आकाशनुं निमित्त नथी;
ज्यारे टोपीए सीधी दशामांथी वांकी दशारूपे थवा माटे गमन कर्युं त्यारे धर्मद्रव्यनुं निमित्त हतुं, तो हवे स्थिर
रहेवानी क्रियामां तेना करतां विरुद्ध निमित्त जोईए, गतिमां धर्मद्रव्य निमित्त हतुं हवे स्थिर रहेवामां