रहेशे–आम जाण्युं त्यां ‘काळ’ सिद्ध थई गयो. भूत, वर्तमान, भविष्य अथवा तो जुनुं–नवुं, दिवस, कलाक
वगेरे जे भेदो प्रवर्ते छे ते भेदो कोई एक मूळ वस्तु वगर होई शके नहि, उपर्युक्त बधा भेदो काळ द्रव्यना छे,
जो काळ द्रव्य न होय तो ‘नवुं–जुनुं’ , ‘पहेलांं–पछी’ एवी कोई प्रवृत्ति होई शके नहि, माटे काळद्रव्य सिद्ध
थयुं– (६). आ रीते टोपी उपरथी छ द्रव्यो सिद्ध थया.
ओळखावी शकाय नहि, जो धर्मद्रव्य अने अधर्मद्रव्य न होय तो टोपीमां थतो फेरफार (क्षेत्रांतर अने स्थिरता)
ओळखावी शकाय नहि, अने जो काळद्रव्य न होय तो ‘पहेलांं’ जे टोपी सीधी हती ते ज अत्यारे वांकी छे’–एम
पूर्वे टोपीनुं होवापणुं नक्की न थई शके, माटे टोपीने सिद्ध करवा माटे छए द्रव्यनो स्वीकार करवो पडे छे.
जगतनी कोई पण एक वस्तुने कबुलतां व्यक्तपणे के अव्यक्तपणे छ ए द्रव्यनो स्वीकार थई जाय छे.
आ शरीर कांई जाणतुं नथी. शरीरनो कोई भाग कपाई जवा छतां जीवनुं ज्ञान कपाई जतुं नथी, जीव तो
आखो ज रहे छे केमके शरीर अने जीव सदाय जुदा ज छे. बंनेनुं स्वरूप जुदुं छे अने बंनेना काम पण जुदां ज
छे. आ जीव अने पुद्गल तो स्पष्ट छे.–(१–२) जीव अने शरीर क्यां रहेलां छे? अमुक ठेकाणे पांच फूट
जग्यामां, बे फूट जग्यामां वगेरेमां रहेला छे, आ रीते ‘जग्या’ कहेतां आकाशद्रव्य सिद्ध थयुं– (३).
ज रह्यो छे, रंग, गंध वगेरे शरीरमां ज छे पण आकाश के जीव वगेरे कोईमां ते नथी, आकाशमां रंग, गंध
वगेरे नथी तेमज ज्ञान पण नथी, ते अरूपी–अचेतन छे, जीवमां ज्ञान छे पण रंग, गंध वगेरे नथी एटले ते
अरूपी–चेतन छे, पुद्गलमां रंग, गंध वगेरे छे पण ज्ञान नथी एटले ते रूपी–अचेतन छे, आ रीते त्रणे द्रव्यो
एक बीजाथी जुदा–स्वतंत्र छे. स्वतंत्र वस्तुओने कोई बीजी वस्तु कांई करी शके नहि. जो एक वस्तुमां बीजी
वस्तु कांई करती होय तो वस्तुने स्वतंत्र केम कहेवाय?
४०–५० वर्षो वगेरेनी कहेवाय छे अने जीव अनादि–अनंत होवापणे छे. ‘आ मारा करतां पांच वर्ष नाना,
आ पांच वर्ष मोटा’ एम कहेवाय छे, त्यां शरीरना कदथी नाना–मोटा–पणानी वात नथी पण काळ
अपेक्षाए नाना–मोटापणानी वात छे, जो काळद्रव्यनी अपेक्षा न ल्यो तो ‘आ नानो, आ मोटो, आ बाळक,
आ युवान, आ वृद्ध’ एम कही शकाय नहि. जुनी–नवी दशा बदलाया करे छे ते उपरथी काळद्रव्यनुं
होवापणुं नक्की थाय छे. (४).
नक्की थई शकतुं नथी. गमनरूपदशा अने स्थिर रहेवारूप दशा ए बंनेने जुदा जुदा ओळखवा माटे ते बंने
दशामां जुदा जुदा निमित्तरूप एवा बे द्रव्योने ओळखवा पडशे. धर्मद्रव्यना निमित्तवडे जीव–पुद्गलनुं गमन
ओळखी शकाय छे. अने अधर्मद्रव्यना निमित्त वडे जीव पुद्गलनी स्थिरता ओळखी शकाय छे. जो आ धर्म
अने अधर्मद्रव्यो न होय तो गमन अने स्थिरताना भेदने ओळखी शकाय नहीं. (५–६).