: जेठ : २४७२ : आत्मधर्म : १५३ :
अपेक्षा आवे छे; जाणे ते जीव–एम कहेतां ज “जाणपणा वगरनां अन्य द्रव्यो छे ते जीव नथी” एम अजीवनी अपेक्षा
आवी जाय छे, जीव अमुक जग्याए छे एम बतावतां आकाशनी अपेक्षा आवे छे. आ प्रमाणे छए द्रव्योमां
अरसपरस समजी लेवुं. एक आत्मद्रव्यनो निर्णय करतां छए द्रव्यो जणाय छे. ए ज्ञाननी विशाळता छे, अने ज्ञाननो
स्वभाव सर्व द्रव्योने जाणी लेवानो छे एम सिद्ध थाय छे. एक द्रव्यने सिद्ध करतां छए द्रव्यो सिद्ध थई जाय छे तेमां
द्रव्यनी पराधीनता नथी परंतु ज्ञाननो महिमा छे. जे पदार्थ होय ते ज्ञानमां जरूर जणाय, पूर्ण ज्ञानमां जेटलुं जणाय ते
सिवाय अन्य कांई आ जगतमां नथी. पूर्ण ज्ञानमां छ द्रव्यो जणाया छे, छ द्रव्यथी अधिक बीजुं कांई नथी.
– कर्मो उपरथी छ द्रव्योनी सिद्धि –
कर्मो ते पुद्गलनी अवस्था छे; जीवना विकारी भावना निमित्तथी ते रहेलां छे; केटलाक कर्मो बंधरूपे
स्थिर थयां छे तेने अधर्मास्तिकायनुं निमित्त छे; क्षणे क्षणे कर्मो उदयमां आवीने खरी जाय छे, खरी जवामां
क्षेत्रांतर थाय छे तेमां तेने धर्मास्तिकायनुं निमित्त छे; कर्मनी स्थिति कहेवाय छे के ७० कोडाकोडीनुं कर्म अथवा
अंतरमुहूर्तनुं कर्म, एमां ‘काळ’ द्रव्यनी अपेक्षा आवे छे; घणा कर्मपरमाणुओ एक क्षेत्रे रहेवामां आकाशद्रव्यनी
अपेक्षा छे. आ रीते छ द्रव्यो सिद्ध थया.
– द्रव्योनी स्वतंत्रता –
आ उपरथी ए पण सिद्ध थाय छे के जीवद्रव्य अने पुद्गल द्रव्य (–कर्म) बंने तद्न जुदी जुदी वस्तुओ
छे, अने बंने पोतपोतामां स्वतंत्र छे, कोई एक बीजामां कांई ज करता नथी. जो जीव अने कर्मो भेगां थई
जाय तो आ जगतमां छ द्रव्यो ज रही शके नहि, जीव अने कर्म सदाय जुदा ज छे. द्रव्योनो स्वभाव
अनादिअनंत टकीने समये समये बदलवानो छे. बधाय द्रव्यो पोतानी ताकातथी स्वतंत्रपणे अनादि अनंत
टकीने पोते ज पोतानी हालत बदलावे छे. जीवनी हालत जीव बदलावे छे, पुद्गलनी हालत पुद्गल बदलावे
छे. पुद्गलनुं कांई जीव करे नहि अने जीवनुं कांई पुद्गल करे नहि.
– उत्पाद – व्य – धु्रव –
द्रव्यनो कोई कर्ता नथी. जो कोई कर्ता होय तो तेणे द्रव्योने कई रीते बनाव्या? शेमांथी बनाव्या? ते
कर्ता पोते शेनो बन्यो? जगतमां छ द्रव्यो पोताना स्वभावथी ज छे, तेनो कोई कर्ता नथी. कोई पण नवा
पदार्थनी उत्पत्ति थती ज नथी. कोई पण प्रयोगे करीने नवा जीवनी के नवा परमाणुनी उत्पत्ति थई शके नहि,
पण जे पदार्थ होय ते ज रूपांतर थाय. अर्थात् जे द्रव्य होय ते नाश पामे नहि, जे द्रव्य न होय ते उत्पन्न थाय
नहि अने जे द्रव्य होय ते पोतानी हालत क्षणेक्षणे बदल्या ज करे, आवो नियम छे. आ सिद्धांतने उत्पाद–व्यय–
धु्रव अर्थात् नित्य टकीने बदलवुं (permanency with a change) कहेवाय छे.
द्रव्यनो कोई बनावनार नथी माटे नवुं सातमुं कोई द्रव्य थई शकतुं नथी, अने कोई द्रव्यनो कोई–नाश
करनार नथी माटे छ द्रव्योमांथी कदी ओछा थता नथी. शाश्वतपणे छ ज द्रव्यो छे. संपूर्ण ज्ञान वडे सर्वज्ञ
भगवाने छ द्रव्यो जाण्या अने ते ज उपदेशमां दिव्यवाणी द्वारा कह्या. सर्वज्ञ वीतराग देव प्रणीत परम
सत्यमार्ग सिवाय आ छ द्रव्यनुं साचुं स्वरूप बीजे क्यांय छे ज नहि.
– द्रव्यनी शक्ति (गुण) –
द्रव्यनी खास शक्ति (चिह्न; विशेष गुण) संबंधी पूर्वे संक्षिप्तमां कहेवाई गयुं छे; एक द्रव्यनी जे खास शक्ति
होय ते अन्य द्रव्योमां होती नथी, तेथी खास शक्ति वडे द्रव्यना स्वरूपने ओळखी शकाय छे. जेमके–ज्ञान ते जीव
द्रव्यनी खास शक्ति छे, जीव सिवायना अन्य कोई द्रव्यमां ज्ञान नथी, तेथी ज्ञानशक्ति वडे जीव ओळखी शकाय छे.
अहीं हवे द्रव्योनी सामान्यशक्ति संबंधी थोडुं कहेवामां आवे छे. जे शक्ति बधा द्रव्योमां होय तेने
सामान्यशक्ति (सामान्यगुण) कहेवाय छे. अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, अगुरुलघुत्व अने प्रदेशत्व
आ छ सामान्य गुणो मुख्य छे, ते बधा ज द्रव्योमां छे.
१–अस्तित्वगुणने लीधे द्रव्यना होवापणानो कदी नाश थतो नथी. द्रव्यो अमुक काळ माटे छे अने पछी
नाश पामे छे–एम नथी, द्रव्यो नित्य टकी रहेनारां छे. जो अस्तित्वगुण न होय तो वस्तु ज होई शके नहि,
अने जो वस्तु ज न होय तो समजाववानुं कोने?
२–वस्तुत्वगुणने लीधे द्रव्य पोतानुं प्रयोजनभूत कार्य करे छे; जेम घडो पाणीने धारण करे छे तेम द्रव्य
पोते ज पोताना गुण–पर्यायोनुं प्रयोजनभूत कार्य करे छे. एक द्रव्य बीजा कोईनुं कार्य करतो नथी.