Atmadharma magazine - Ank 032
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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: १५४ : आत्मधर्म : जेठ : २४७२ :
३–द्रव्यत्वगुणने लीधे द्रव्य निरंतर एक अवस्थामांथी बीजी अवस्थामां द्रव्या करे छे–परिणम्या करे छे. द्रव्य
त्रिकाळ अस्तिरूप होवा छतां ते सदा एक सरखुं (कूटस्थ) नथी परंतु निरंतर नित्य बदलतुं–परिणामी छे. जो
द्रव्यमां परिणमन न होय तो जीवने संसार–दशानो नाश थईने मोक्षदशानी उत्पत्ति केम थाय? शरीरनी बाल्य
दशामांथी युवक दशा केम थाय? छ ए द्रव्योमां द्रव्यत्व शक्ति होवाथी बधाय स्वतंत्रपणे पोतपोतानी पर्यायमां
परिणमी रह्यां छे, कोई द्रव्य पोतानी पर्याय परिणमाववा माटे बीजा द्रव्यनी मदद के असर राखतुं नथी.
४–प्रमेयत्वगुणने लीधे द्रव्यो ज्ञानमां जणाय छे. छ ए द्रव्योमां आ प्रमेयशक्ति होवाथी ज्ञान छए
द्रव्यना स्वरूपनो निर्णय करी शके छे. जो वस्तुमां प्रमेयत्व गुण न होय तो “आ वस्तु छे” एम ते पोताने केवी
रीते जणावी शके? जगतनो कोई पदार्थ ज्ञानद्वारा अगम्य नथी, आत्मामां प्रमेयत्व गुण होवाथी आत्मा पोते
पोताने जाणी शके छे.
५–अगुरुलघुत्वगुणने लीधे दरेक वस्तु निज निज स्वरूपे ज टकी रहे छे. जीव बदलीने कदी परमाणुरूपे
थई जतो नथी, परमाणु बदलीने कदी जीव रूपे थई जता नथी. जड सदाय जड रूपे अने चेतन सदाय चेतन
रूपे ज रहे छे. ज्ञाननो उघाड विकार दशामां गमे तेटलो ओछो थाय तो पण जीवद्रव्य तद्न ज्ञान वगरनुं थई
जाय–एम कदी न बने. आ शक्तिने लीधे द्रव्यना गुणो छूटा पडी जता नथी, तेमज कोई बे वस्तु एकरूप थईने
त्रीजी नवी जातनी वस्तु उत्पन्न थती नथी, केमके वस्तुनुं स्वरूप कदापी अन्यथा थतुं नथी.
६–प्रदेशत्वगुणने लीधे दरेक द्रव्योने पोतपोतानो आकार होय छे. दरेक द्रव्यो पोतपोताना स्व आकारमां
ज रहे छे. सिद्धदशा थतां एक जीव बीजा जीवमां भळी जतो नथी पण दरेक जीव पोताना प्रदेशाकारमां
स्वतंत्रपणे टकी रहे छे.
आ छ सामान्यगुणो मुख्य छे, आ सिवाय बीजा सामान्यगुणो पण छे. आ रीते गुणोद्वारा द्रव्यनुं
स्वरूप वधारे स्पष्टताथी जाणी शकाय छे.
– प्रयोजनभुत –
आ रीते छ द्रव्यनुं स्वरूप अनेक प्रकारे वर्णव्युं. आ छ द्रव्योमां समये समये परिणमन थाय छे तेने
‘पर्याय’ (हालत, अवस्था, condition) कहेवाय छे; धर्म–अधर्म–आकाश अने काळ ए चार द्रव्योनी पर्याय
तो सदाय शुद्ध ज छे, बाकीना जीव अने पुद्गल ए बे द्रव्योमां शुद्ध पर्याय होय छे अने अशुद्ध पर्याय पण होई
शके छे.
जीव अने पुद्गल ए बे द्रव्योमांथी पण पुद्गल द्रव्यमां ज्ञान नथी, तेनामां जाणपणुं नथी अने तेथी
तेनामां ज्ञाननी ऊंधाईरूप भूल नथी, माटे पुद्गलने सुख के दुःख होतां नथी. साचा ज्ञानवडे सुख अने ऊंधा
ज्ञान वडे दुःख थाय छे, परंतु पुद्गल द्रव्यमां ज्ञान गुण ज नथी तेथी तेने सुखदुःख नथी, तेनामां सुखगुण ज
नथी. आम होवाथी पुद्गल द्रव्यने तो अशुद्धदशा हो के शुद्ध–दशा हो–बंने समान छे; शरीर पुद्गलद्रव्यनी
अवस्था छे माटे शरीरमां सुख–दुःख थतां नथी– ए ध्यान राखवुं. शरीर नीरोग हो के रोगी हो ते साथे सुख–
दुःखनो संबंध नथी.
– हवे बाकी रह्यो जाणनारो जीव –
छए द्रव्योमां आ एक ज द्रव्य ज्ञान सामर्थ्यवान छे. जीवमां ज्ञानगुण छे अने ज्ञाननुं फळ सुख छे तेथी
जीवमां सुख गुण छे. जो साचुं ज्ञान करे तो सुख होय, परंतु जीव पोताना ज्ञानस्वभावने ओळखतो नथी अने
ज्ञानथी जुदी अन्य वस्तुओमां सुखनी कल्पना करे छे, आ तेना ज्ञाननी भूल छे अने ते भूलने लीधे ज जीवने
दुःख छे. अज्ञान ते जीवनी अशुद्ध पर्याय छे. जीवनी अशुद्ध पर्याय ते दुःख होवाथी ते दशा टाळीने साचा ज्ञान
वडे शुद्ध दशा करवानो उपाय समजाववामां आवे छे केमके बधा ज जीवो सुख ईच्छे छे अने सुख तो जीवनी
शुद्धदशामां ज छे; माटे जे छ द्रव्यो जाण्या तेमांना जीव सिवायना पांच द्रव्योना गुण पर्याय साथे तो जीवने
प्रयोजन नथी पण पोताना गुण–पर्याय साथे ज जीवने प्रयोजन छे.
दरेक जीव पोताने सुख चाहे छे एटले के अशुद्धता दूर करवा मागे छे. मात्र शास्त्रो वांचीने पोताने ज्ञानी
माने ते ज्ञानी नथी, पण पर द्रव्योथी भिन्न पोताना आत्माने पुण्य–पापनी क्षणिक अशुद्ध वृत्तिओथी जुदा स्वरूपे
जे यथार्थ जाणे ते ज ज्ञानी छे. कोई पर वस्तु आत्माने लाभ–नुकशान करती नथी, पोतानी अवस्थामां पोताना
ज्ञाननी भूलथी ज दुःखी हतो, पोताना स्वभावनी समजण वडे ते भूल पोते टाळे तो दुःख टळीने