गयां छे.)
आजे आठमीवार आ समयसारजीना वांचननी शरुआत थाय छे. सभामां प्रवचनरूपे आठमी वार
छे. केवळज्ञान थाय त्यारे समयसारना भाव पूरा पडे. समयसारना भावनो आशय समजीने पोते एकावतारी
थई जाय–एटलुं करी शके. परंतु वाणीद्वारा भाव पूरा पडे तेम नथी. श्रुतकेवळी पण वाणी द्वारा विवेचनथी आ
समयसारनो संपूर्ण सार न कही शके–एवा महान भावो भरेला छे. आ ग्रंथाधिराज छे तेमां ब्रह्मांडना भावो
भरेला छे. तेनी अंतरना आशयने समजीने शुद्धात्मानी श्रद्धा–ज्ञान–स्थिरता वडे पोताना समयसारनी पूर्णता
करी शकाय छे. भले, अत्यारे विशेष पडखांना जाणपणानो विच्छेद होय, परंतु यथार्थ तत्त्वज्ञान समजवा पूरता
ज्ञाननो विच्छेद नथी, तत्त्व समजवानी ताकात अत्यारे पण छे. जे यथार्थ तत्त्वज्ञान करे तेने एकावतारीपणानो
निःसंदेह निर्णय थई शके छे. कुंद–कुंदाचार्यदेवे महान उपकार कर्या छे. सं. १९७८ मां आ समयसार हाथमां
आव्युं–वांच्युं अने अभ्यास करतां अलौकिक भावो नीकळ्या. आ समयसार आ काळे भव्य जीवोनो महान
आधार छे; लोको क्रियाकांडी अने व्यवहारना पक्षकार छे, तत्त्वना विरहा थई पड्या छे, निश्चय–स्वभाव गूल
निश्चय स्वभावने प्रगट करे छे.
आदर कर्यो छे. जेने जे वंदन करे तेने तेनो द्रष्टिमां आदर आव्या वगर साचुं वंदन होई शके नहि.....
हुं मारा आत्मामा अत्यारे प्रस्थानुं मूकुं छुं के हुं सिद्ध छुं अल्पकाळे सिद्ध थवानो छुं, आ प्रस्थानां पाछा नहि
फरे... सिद्ध छुं एवी श्रद्धानी भींस लागतां आत्मामांथी विकारनो नाश थईने सिद्धभाव ज रही जाओ! हवे
सिद्ध सिवायना भावोनो आदर नथी.... आ सांभळीने हकार लावनार पण सिद्ध छे. हुं सिद्ध अने तुं पण
४१ निश्चयनयना अनुसार ज्ञान–
दर्शन–चारित्र–तप वीर्य ए
४२ समयसार
४३ अध्यात्मरस
४४ समतादिरूप निश्चयनयथी छ
आवश्यक छे ते स्वरूप
४५ अभेद रत्नत्रयरूप
४६ वीतराग सामायिक
४७ परम शरण उत्तम मंगल
४८ केवळज्ञान उत्पत्तिनुं कारण
४९ समस्त कर्मोना नाशनुं कारण
ज्ञान–चारित्र अने तपना भेदथी चार
प्रकारनी आराधना छे ते स्वरूप
५२ शुद्धात्मानी भावनाथी उत्पन्न जे
सुख तेनी अनुभूति रूप परमकळा
५३ दिव्य कळा
५४ परम अद्वैत
५५ अमृतस्वरूप परम धर्मध्यान
५६ शुक्लध्यान
५७ रागादि विकल्पो रहित ध्यान
५८ निष्कल ध्यान
५९ परम स्वास्थ्य
६१ परम समतारूप
६२ परम एकत्व
६४ परम समरसीभाव
१४. संपूर्ण रागादि विकल्पोनी
उपाधिथी रहित अने परम आह्लाद
सुखरूप लक्षणनुं धारक जे ध्यान छे
ते स्वरूप निश्चय मोक्षमार्गना
कहेनारा आ सिवाय बीजा पण घणा
जीव–पर्यायी नामो छे, धर्मात्मा
जीवने प्रगटेला धर्मने आ बधां
नामो लागु पडे छे–एम जाणवुं.