तलकशी तरफथी सूचन आवेल अने श्रेष्ठ निबंध लखनार विद्यार्थीने रूा. १० नां
पुस्तको ईनाम आपवानुं ठरावेल हतुं. ते सुचनानुसार २९ विद्यार्थीओए निबंध
ईनाम मळ्युं हतुं. मळेला निबंधोमांथी बे निबंध अहीं आपवामां आवे छे.
दुःख एटले शुं? दुःख एटले ममता. दुःख क्षेत्रमां नथी परंतु आत्मस्वभावने भूलीने परमां रुचि अने
अने ममता छे. ज्यारे नरकना समकितिने पर उपरथी रुचि छूटी गई छे. तेने खात्री छे के ते बे त्रण भव पछी
अलौकिक अने अपूर्व अने आनंद स्वरूप केवळज्ञान पामीने मोक्ष जशे. दाखला तरीके एक केदी अने एक राजा
होय अने जो केदीने एम कहेवामां आवे के तने एक वर्ष पछी राजा बनावशुं अने राजाने केदी; तो केदीने सुख
छे कारणके तेने खबर छे के एक वर्ष पछी तो सुख छे अने तेथी तेनुं एक वर्ष क्यां पसार थई जाय छे तेनी
तेने खबर पडती नथी अने राजा ते वर्ष दुःखमां ज काढे छे कारणके तेने ए ज विचार आवे छे के एक वर्ष पछी
तो हुं केदी बनीश. तेवी ज रीते केदीने नरकनो समकिति लेखो अने राजाने मिथ्याद्रष्टि देव.
दुःख ते अंतरंग कषायने आधीन छे, नहि के अनुकूळ के प्रतिकूळ संयोगोने आधीन. नवमी ग्रैवेयकना देवने
घणा अनुकूळ संयोगो होय छे तो पण ते अनंतानुबंधी कषाय अने मिथ्यात्वनी आकुळताथी बळीझळीने दुःखी
थाय छे. बहारथी ते सुखी देखाय छे परंतु ते खरेखर तो दुःखी ज छे कारणके तेने मिथ्यात्व वर्ते छे. बाह्य सुख
अने दुःख ते तो कल्पना ज छे. ते खरूं सुखदुःख नथी. सुख अने दुःख ते तो अंतरनी आकुळता के निराकुळताने
आधीन छे. तेथी मिथ्याद्रष्टि देव एकांते दुःखी छे.
रूपी धारा निरंतर वह्या ज करे छे. तेणे जगतना बीजा पदार्थोना स्वाद करतां जुदो, अनंतो उपमारहित,
आत्माना सुख गुण अने आनंद गुणनो, अंशे सिद्ध परमात्मा जेवो स्वाद लीधो छे. तेथी ज ते सुखी छे.
मरण थोडा वखतमां थवानुं छे; तेथी ते घणी हायवोय करे छे अने घणो ज दुःखी थाय छे ते उपरांत
अवधीज्ञानथी जोवाथी पोते हलकी कोटिमां जन्म लेवानो छे ते खबर पडतां पण घणो दुःखी थाय छे.